राधा स्वामी पंथ का भंडाफोड़: एक विश्लेषण
प्रमुख आपत्तियाँ
- निराकार ईश्वर की अवधारणा: राधा स्वामी गुरु भगवान को निराकार (formless) मानते हैं, जबकि वेदों, गीता, बाइबिल और कुरान जैसे पवित्र ग्रंथ ईश्वर को साकार (human form) बताते हैं। इन शास्त्रों के अनुसार, पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब हैं। इस विरोधाभास के कारण, राधा स्वामी पंथ का ज्ञान अधूरा और गलत माना गया है।
- “राधा स्वामी” नाम की उत्पत्ति: लेख के अनुसार, “राधा स्वामी” नाम का उल्लेख किसी भी पवित्र ग्रंथ में नहीं है। यह नाम राय सालिग राम ने गढ़ा था, जो सेठ शिव दयाल जी की पत्नी नारायणी देवी को “राधा जी” कहकर बुलाते थे। इस तरह, “राधा स्वामी” का वास्तविक अर्थ “शिव दयाल जी” है।
- “पाँच नाम” की वास्तविकता: राधा स्वामी पंथ में दिए गए पाँच नाम गलत माने गए हैं। हाथरस के तुलसी दास जी ने इन नामों को काल (मृत्यु के देवता) का बताया है। कबीर साहेब के दो शब्दों “संतो शब्दई शब्द बखाना” और “कर नैनो दीदार” से यह पता चलता है कि राधा स्वामी गुरुओं ने इन नामों को सही ढंग से नहीं समझा है।
- पंथ के संस्थापकों से जुड़ी कमियाँ: लेख में यह भी आरोप लगाया गया है कि सेठ शिव दयाल सिंह जी हुक्का (तंबाकू) पीते थे, और बाबा जैमल सिंह जी को शिव दयाल जी से ब्यास में डेरा शुरू करने और नाम देने का कोई आदेश नहीं मिला था।
