संत रामपाल जी महाराज: 28 अगस्त 2025 के हाई कोर्ट आदेश के आलोक में सकारात्मक तथ्य-आधारित विश्लेषण

सारांश

28 अगस्त 2025 को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपील लंबित रहने तक संत रामपाल जी महाराज की सजा निलंबित कर दी। अदालत ने विशेष रूप से दर्ज किया कि रिकॉर्ड पर मौजूद चिकित्सकीय साक्ष्यों पर “विवादित मुद्दे” हैं, मृतका के परिजनों का बयान अभियोजन के अनुरूप नहीं है, आयु व अब तक भुगती गई सजा का लंबा कालखंड है, और सहअभियुक्तों को पहले से जमानत मिली हुई है। यह आदेश अपील के अंतिम निपटारे से पहले दिया गया अंतरिम राहत है; यह दोषसिद्धि के गुण-दोष पर अंतिम राय नहीं है।


पृष्ठभूमि: 2018 का फैसला

विशेष न्यायालय (सेंट्रल जेल-I, हिसार) ने 11.10.2018 के निर्णय तथा 17.10.2018 के दंडादेश के तहत IPC धारा 343, 302 और 120-B में सजा सुनाई थी; 302 और 120-B में “आजीवन कारावास बिना किसी रिमिशन” और अर्थदंड निर्धारित किया गया।


28 अगस्त 2025 का हाई कोर्ट आदेश—मुख्य बातें

  • पीठ (माननीय न्यायमूर्ति गुरविंदर सिंह गिल एवं न्यायमूर्ति दीपिंदर सिंह नलवा) ने कहा कि अपील विचाराधीन रहने तक शेष सजा निलंबित रहेगी; अभियुक्त उपयुक्त जमानत/श्योरिटी पर रिहा होगा।
  • साथ ही स्पष्ट किया गया कि आदेश में की गई टिप्पणियाँ मुख्य केस के गुण-दोष पर अंतिम अभिमत नहीं मानी जाएँगी।

अदालत ने किन आधारों पर सजा निलंबित की

  1. चिकित्सकीय साक्ष्य पर गंभीर सवाल
    अदालत ने रिकॉर्ड पर आए मेडिकल साक्ष्यों को “विवादित” माना—यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण न्यायिक अवलोकन है।
  2. मृतका के परिजनों के बयान अभियोजन के विपरीत
    मृतका के पति और सास — जो नज़दीकी गवाह हैं — ने स्वीकार किया कि घटना से लगभग एक माह पहले से वह निमोनिया से पीड़ित थीं। यह बात बचाव पक्ष ने भी चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर रखी कि मौत प्राकृतिक (निमोनिया) थी।
  3. आयु और अब तक भुगती गई सजा
    अदालत के समक्ष प्रमाणित कस्टडी सर्टिफिकेट के अनुसार, संत रामपाल जी लगभग 74 वर्ष के हैं और वे 10 वर्ष 27 दिन की वास्तविक सजा पहले ही काट चुके हैं।
  4. समानता (Parity) का सिद्धांत
    13 सहअभियुक्त पहले ही जमानत पर हैं; अतः समानता के आधार पर भी सजा निलंबन उचित ठहरा।

इन समेकित परिस्थितियों पर विचार कर अदालत ने इसे सजा निलंबित करने योग्य मामला माना।


अभियोजन का आरोप

राज्य का कथन था कि मृतका सहित कई महिलाओं को आश्रम में बंधक जैसा रखकर पर्याप्त भोजन/आवास नहीं दिया गया और घुटन (suffocation) से मृत्यु हुई। यह आरोप आदेश में दर्ज है, किन्तु अदालत ने साथ ही कहा कि मेडिकल साक्ष्य पर प्रश्न हैं और परिजनों ने अभियोजन का साथ नहीं दिया।


“झूठे केस में फँसाने” की बात—समर्थकों के तर्क

सकारात्मक नज़रिए से देखें तो, स्वयं आदेश में दर्ज तथ्य समर्थकों के तर्क को बल देते हैं कि यह मामला बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया:

  • चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार मृत्यु निमोनिया से—अर्थात प्राकृतिक कारण से—हुई बताई गई।
  • निकट संबंधी गवाहों का अभियोजन से असहयोग और पूर्व-रोग का स्पष्ट उल्लेख।
  • मेडिकल साक्ष्य “विवादित” होने की स्वयं न्यायालय की टिप्पणी।
  • उन्नत आयु, दीर्घ कारावास (10 वर्ष 27 दिन) और सहअभियुक्तों को जमानत—ये सभी परिस्थितियाँ यह दर्शाती हैं कि संत रामपाल जी को कठोर और एकतरफा कथनों के सहारे अनुचित रूप से फँसाया गया प्रतीत होता है।

कानूनी स्थिति स्पष्ट रूप में

  • दोषसिद्धि अभी समाप्त नहीं हुई है। वर्तमान में सजा निलंबित है; अंतिम निर्णय अपील में होगा।
  • आदेश की तारीख और पीठ: 28.08.2025; माननीय न्यायमूर्ति गुरविंदर सिंह गिल एवं न्यायमूर्ति दीपिंदर सिंह नलवा।

संक्षिप्त समयरेखा

  • 11 अक्टूबर 2018: विशेष अदालत द्वारा दोषसिद्धि।
  • 17 अक्टूबर 2018: सजा—धारा 302/120-B में आजीवन कारावास (बिना रिमिशन) सहित।
  • 28 अगस्त 2025: अपील लंबित रहते हुए सजा निलंबित; जमानत/श्योरिटी पर रिहाई।

निष्कर्ष

हाई कोर्ट का 28 अगस्त 2025 का आदेश यह दर्शाता है कि इस मामले में चिकित्सकीय साक्ष्य पर गंभीर प्रश्न, परिजनों के बयानों का अभियोजन से असहमत होना, लंबी अवधि की कारावास और समानता के आधार—ये सभी ऐसे ठोस कारण हैं जिन्होंने न्यायालय को सजा निलंबित करने के लिए आश्वस्त किया। समर्थकों के नज़रिए से यह घटनाक्रम इस धारणा को सुदृढ़ करता है कि संत रामपाल जी महाराज को झूठे आरोपों में फँसाया गया था; और अब अपील में तथ्यों की गहन न्यायिक जाँच के बाद सच्चाई और स्पष्ट होगी। साथ ही, कानूनी रूप से यह एक इंटरिम राहत है; अंतिम फैसला अपील के निर्णयन पर निर्भर है।

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