मुसलमान धर्म में विवाह (निकाह/ Ijab-e-Qubool) की रीति | Marriage rituals in Muslim religion | Explained by Sant Rampal Ji | BKPK VIDEO

मुसलमान धर्म में केवल अपनी सगी बहन (माँ की जाई बहन) को छोड़ते हैं। चाचा, ताऊ की लड़कियाँ जो बहन ही होती हैं, उनसे विवाह करना अजीबो-गरीब लगता है। मुसलमानों ने विमर्श करके अपने बच्चों का विवाह अपने ही परिवारों में करना पड़ा। चाचे व ताऊ की लड़कियों से विवाह करने लगे जो मजबूरी तथा जरूरी था।

मुस्लिम धर्म में विवाह की रीति: एक विश्लेषण

प्रस्तुत लेख में मुस्लिम धर्म में चाचा-ताऊ की लड़कियों से विवाह करने की परंपरा पर संत रामपाल दास जी द्वारा दी गई एक व्याख्या प्रस्तुत की गई है। इस लेख में यह भी बताया गया है कि यह परंपरा एक ऐतिहासिक मजबूरी का परिणाम थी।


परंपरा का कारण

लेख के अनुसार, यह परंपरा एक मजबूरी के कारण शुरू हुई थी। जब पैगंबर मुहम्मद ने इस्लाम का प्रचार शुरू किया, तो उनके कबीले कुरैश और अन्य विरोधियों ने उनका और उनके अनुयायियों का बहिष्कार (बॉयकाट) कर दिया। मुसलमानों की संख्या बहुत कम थी, और उनके विरोधियों ने उनके बच्चों के विवाह अपनी जातियों में करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

इस समस्या के कारण, मुसलमानों को अपने वंश को आगे बढ़ाने और अपने धर्म का पालन करने के लिए आपस में ही विवाह करना पड़ा। इस मजबूरी के तहत, उन्होंने अपने चाचा और ताऊ की लड़कियों से विवाह करना शुरू कर दिया। समय बीतने के साथ, यह परंपरा एक सामान्य प्रथा बन गई और अब इसे सम्मान और इज्जत का प्रतीक माना जाता है।


इस्लामिक धर्म में पैगंबर मुहम्मद का स्थान

लेख में संत रामपाल दास जी ने मुसलमानों के कुछ सवालों का जवाब भी दिया है। एक सवाल यह था कि अगर हजरत मुहम्मद “बाखबर” (सच्चे ज्ञान के जानकार) नहीं थे, तो संत रामपाल जी महाराज कैसे बाखबर हो सकते हैं।

इसका उत्तर देते हुए, संत रामपाल दास जी ने कहा कि पैगंबर मुहम्मद को अल्लाह (प्रभु) के दर्शन नहीं हुए थे; उनसे केवल पर्दे के पीछे से बातचीत हुई थी। अल्लाह ने उन्हें रोजा, नमाज और अजान जैसी तीन साधनाएँ करने का आदेश दिया था।

लेख के अनुसार, अल्लाह ताला (सतपुरुष) ने उन नेक आत्माओं को सीधे अपने निवास स्थान सतलोक (अमरलोक) में ले जाकर दर्शन कराए थे। इन आत्माओं में कबीर साहेब भी शामिल थे। अल्लाह ने उन्हें बताया कि वे सभी आत्माएं काल ज्योति निरंजन के 21 ब्रह्मांडों में फँसी हुई हैं, और उन्हें वापस अपने मूल स्थान सतलोक में लाना चाहते हैं।

काल ज्योति निरंजन की भूमिका

लेख में कहा गया है कि काल ज्योति निरंजन ने एक कन्या के साथ दुर्व्यवहार किया था, जिसके कारण अल्लाह ने उसे और उसके साथ सभी आत्माओं को सतलोक से निकाल दिया था। काल ने अपने लोक में सतलोक की नकल करके जन्नत (स्वर्ग) बनाई है, जिससे भक्त भ्रमित होकर इसे ही परम स्थान मान लेते हैं। काल के लोक में जन्म-मृत्यु का चक्र सदैव चलता रहता है, और यहाँ कोई आत्मा स्थायी रूप से सुखी नहीं है।

अल्लाह कबीर ने उन नेक आत्माओं से कहा कि वे पृथ्वी पर जाकर लोगों को यह सच्चाई बताएँ, ताकि वे काल के जाल से मुक्त हो सकें और सतलोक वापस लौट सकें।


निष्कर्ष

लेख का निष्कर्ष है कि सच्चा ज्ञान केवल वही बता सकता है जिसने स्वयं परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन किया हो। अल्लाह कबीर ने अनेकों बार स्वयं धरती पर आकर नेक आत्माओं को यह ज्ञान दिया है। कलामे कबीर (सूक्ष्मवेद) में यही ज्ञान विस्तार से वर्णित है। संत रामपाल दास जी का मानना है कि उन्होंने जो ज्ञान बताया है, वह उन आत्माओं द्वारा आँखों देखा और अल्लाह से प्राप्त ज्ञान के अनुरूप है।

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