तंबाकू, घोड़ा और गरीबदास जी | एक ऐसा गावं जहाँ हुक्का वर्जित है | Sant Rampal Ji Maharaj

Sant Garib Das was a spiritual leader and called Acharaya, spiritual reformer and founder of the Garibdasi panth who follow his preachings.

‘तम्बाकू से गधे-घोड़े भी घृणा करते हैं’’

संत गरीबदास जी की लीला और तंबाकू का श्राप

एक बार की बात है, संत गरीबदास जी अपने घोड़े पर सवार होकर जींद जिले के एक गांव में जा रहे थे। रास्ते में गाँव मालखेड़ी के खेत पड़ते थे। जब वह उन खेतों से गुजर रहे थे, तो उनका घोड़ा रास्ता छोड़कर खड़ी गेहूँ की फसल के बीच में चलने लगा। खेतों में मौजूद रखवालों ने यह देखा और लाठी-डंडे लेकर उन्हें मारने के लिए दौड़े। उन्होंने संत गरीबदास जी को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया, “क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? हमारी फसल बर्बाद कर दी! क्या घोड़े को सीधा नहीं चला सकते?”

जैसे ही उन्होंने संत गरीबदास जी को लाठी मारने की कोशिश की, उनके हाथ वहीं रुक गए। वे सभी पाँच मिनट तक पत्थर की मूर्तियों की तरह अपनी जगह पर खड़े रहे। संत गरीबदास जी ने जब अपना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठाया, तो उनकी स्तंभता टूट गई और वे सब पीठ के बल जमीन पर गिर पड़े। उनके हाथ से लाठियाँ छूट गईं और वे ऐसे हो गए जैसे उन्हें लकवा मार गया हो।

यह देखकर रखवालों को यह समझते देर नहीं लगी कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। वे सभी रोने लगे और संत से क्षमा याचना करने लगे। संत गरीबदास जी ने उनसे पूछा कि क्या वे रास्ते में मिलने वाले हर व्यक्ति के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। तब उन्होंने संत से पूछा कि घोड़ा फसल के बीच में क्यों गया था। संत गरीबदास जी ने उनसे पूछा कि इस फसल से पहले खेत में क्या बोया गया था। उन्होंने बताया कि पहले ज्वार बोई थी, और उससे पहले तंबाकू बोया गया था।


तंबाकू की बदबू और गाँव का श्राप

संत गरीबदास जी ने उन्हें बताया कि उस तंबाकू की बदबू अभी तक खेत में मौजूद है, जिससे परेशान होकर घोड़ा रास्ता छोड़कर दूर से जा रहा था। उन्होंने कहा कि “आप लोग इस तंबाकू का सेवन करते हो, तुम तो जानवरों से भी गए-गुजरे हो।”

उन्होंने गाँव वालों को सख्त चेतावनी दी कि आज के बाद इस गाँव में कोई भी हुक्का नहीं पिएगा और तंबाकू का सेवन नहीं करेगा। यदि उनकी आज्ञा का पालन नहीं हुआ, तो गाँव को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। उस समय तो सबने हाँ कर दी, लेकिन संत के जाने के बाद वे फिर से हुक्का भरने लगे। जैसे ही उन्होंने हुक्का भरने की कोशिश की, हाथ से चिलम छूटकर टूट गई। उन्होंने दूसरी चिलम उठाई, वह भी हाथ में ही चूर-चूर हो गई। खेत में जितने भी हुक्के थे, सब टूट गए और उनकी चिलमें फूट गईं। यह देखकर रखवाले डर गए। जब वे गाँव वापस लौटे, तो पता चला कि पूरे गाँव के हुक्के टूट चुके थे और चिलमें फूट गई थीं।

पूरे गाँव में हड़कंप मच गया और भय का माहौल छा गया। गाँव का नाम मालखेड़ी है, और कहा जाता है कि उस दिन के बाद से आज तक वहाँ कोई भी हुक्का नहीं पीता है।


सत्संग और ज्ञान की महत्ता

जो लोग हुक्का पीते हैं, वे कहते हैं कि उनके पास कड़वा तंबाकू है। संत गरीबदास जी ने बताया है कि मृत्यु के बाद यम के दूत उन लोगों के मुँह में पेशाब करते हैं, और कहते हैं कि “ले प्यारे, तू कड़वा तंबाकू पीना चाहता था, अब यह कड़वा पेशाब पी ले।”

यह घटना संत गरीबदास जी की एक लीला थी, जिसके माध्यम से उन्होंने लोगों को एक बड़ी बुराई छोड़ने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, ज्ञान का प्रभाव हमेशा के लिए होता है, और यह ज्ञान हमें सत्संग से ही मिलता है। इसलिए, सत्संग सुनने की रुचि पैदा करें और सत्संग सुनें।

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