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गुरु पूर्णिमा 2025: गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व
गुरु पूर्णिमा गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्ते को समर्पित एक विशेष दिन है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु के महत्व को दर्शाता है, जो अपने शिष्यों को जीवन के सही मार्ग का ज्ञान देकर उन्हें अज्ञान के अंधकार से बाहर निकालते हैं। इस वर्ष, गुरु पूर्णिमा रविवार, 20 जुलाई 2025 को है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाएगी।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास और महत्व
गुरु पूर्णिमा की उत्पत्ति से संबंधित कई मान्यताएं हैं:
- हिंदू धर्म: यह पर्व महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें 18 पुराणों और वेदों का रचनाकार माना जाता है। उन्हें आदि गुरु की उपाधि भी दी गई है।
- बौद्ध धर्म: बौद्ध परंपरा के अनुसार, भगवान बुद्ध ने इसी दिन अपना पहला उपदेश दिया था।
- जैन धर्म: जैन धर्म में, यह वह दिन है जब उनके प्रथम शिष्य गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से दीक्षा ली थी।
इस दिन, शिष्य अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, मंदिरों में जाते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। “गुरु” शब्द का अर्थ है “अंधेरे का निवारण करने वाला”। एक सच्चा गुरु अपने ज्ञान से शिष्य के जीवन से सभी प्रकार के अंधकार को मिटा देता है और उसे पूर्ण मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
पवित्र शास्त्रों में सच्चे गुरु की पहचान
पवित्र ग्रंथ सच्चे गुरु की पहचान के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण बताते हैं:
- श्रीमद्भगवद्गीता: अध्याय 4, श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता कहता है कि तत्वदर्शी संत ही सभी अनुष्ठानों का सही ज्ञान रखते हैं। इन संतों के पास जाकर, उन्हें दंडवत प्रणाम कर और कपट छोड़कर भक्ति करने पर, वे तत्वज्ञान प्रदान करते हैं।
- अध्याय 15, श्लोक 1-4 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताई गई है। वह संत संसार रूपी पीपल के वृक्ष के सभी भागों (जड़ से लेकर शाखाओं तक) का सही-सही ज्ञान देता है।
- अध्याय 17, श्लोक 23 में पूर्ण परमात्मा का मूल मंत्र ॐ, तत्, सत् बताया गया है, और इस मंत्र की सही जानकारी केवल एक तत्वदर्शी संत ही रखता है।
- पवित्र वेद: वेदों में प्रमाण है कि पूर्ण संत तीन बार की संध्या (सुबह, दोपहर और शाम) का विधान बताता है, जिसमें सुबह और शाम पूर्ण परमात्मा की स्तुति और दोपहर में सभी देवताओं की स्तुति करने को कहता है। यजुर्वेद अध्याय 40, मंत्र 10 के अनुसार, परमात्मा के सही स्वरूप का ज्ञान केवल एक तत्वदर्शी संत ही दे सकता है।
- सूक्ष्मवेद: संत गरीबदास जी ने सच्चे गुरु के लक्षणों का वर्णन किया है:
गरीब, सतगुरू के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कह अठारह बोध।।
अर्थात, सच्चा गुरु वेदों और शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान रखता है, और उसकी वाणी इतनी मधुर होती है कि वह आत्मा को आनंदित कर देती है। कबीर साहेब ने भी कबीर सागर में सच्चे गुरु के चार लक्षण बताए हैं:
- वह वेदों और शास्त्रों का सही ज्ञान रखता है।
- वह मन, वचन और कर्म से स्वयं भक्ति करता है।
- वह अपने सभी अनुयायियों के साथ समान व्यवहार करता है।
- वह सभी भक्ति कर्म वेदों के अनुसार करता और करवाता है।
वर्तमान में सच्चे गुरु
आज के समय में, इन सभी मापदंडों पर खरे उतरने वाले एकमात्र सच्चे गुरु संत रामपाल जी महाराज हैं। एक सच्चे साधक को अपनी भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि सभी पवित्र शास्त्रों के ज्ञान के आधार पर एक गुरु का चयन करना चाहिए।
संत रामपाल जी महाराज शास्त्र आधारित आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं और सही मंत्रों के साथ पूजा करने का सही तरीका सिखाते हैं। उनका मार्ग सच्चे भक्तों को सांसारिक दुखों से मुक्ति दिलाता है और उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से बाहर निकालता है।
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
कबीर, गुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छडे़ मूढ़ किसाना।
कबीर, गुरू बिन वेद पढै़ जो प्राणी, समझै न सार रहे अज्ञानी।।
ये दोहे स्पष्ट करते हैं कि गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव है। इसलिए, मानव जीवन को धन्य बनाने के लिए गुरु से वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर सही भक्ति करनी चाहिए।