बाबा फरीद (हजरत ख्वाजा फरीद्दुद्दीन गंजशकर – حضرت بابا فرید الدین مسعود گنج شکر) की जीवनी | Sant Rampal Ji Maharaj

शेख फरीद की कथा

एक समय की बात है, एक शेख फरीद नाम के मुस्लिम भक्त थे, जो बचपन में बहुत शरारती थे। उनकी माता चाहती थीं कि वह नमाज़ पढ़ें, लेकिन वह नहीं मानते थे। एक दिन उनकी माँ ने उन्हें बताया कि अगर वह नमाज़ करेंगे तो अल्लाह उन्हें खजूर देगा, जो कि फरीद को बहुत पसंद थे। फरीद ने कहा कि अगर अल्लाह ने खजूर नहीं दिए तो वह कभी नमाज़ नहीं करेंगे। माँ ने यह सोचकर मान लिया कि इससे वह शरारत करना छोड़ देगा, और अपने काम कर पाएगी।

माँ ने एक चादर बिछाकर फरीद को आँखें बंद कर नमाज़ करने को कहा और चादर के नीचे थोड़े खजूर रख दिए। फरीद ने आँखें खोलीं तो खजूर देखकर बहुत खुश हुआ। वह उन्हें खाकर खुशी से उछल पड़ा और हर रोज़ नमाज़ करने लगा। एक दिन माँ खजूर रखना भूल गईं। फरीद ने चादर उठाई और देखा कि खजूर वहाँ पहले से ही मौजूद थे। माँ हैरान रह गईं कि वह खजूर रखना भूल गई थीं, फिर भी खजूर कहाँ से आए? उसे एहसास हुआ कि यह तो सचमुच परमात्मा ने ही भेजे हैं। यह इस बात का संकेत था कि फरीद पिछले जन्म का संस्कारी हंस (पवित्र आत्मा) था और ऐसे भक्तों के लिए पूर्ण परमात्मा स्वयं उनके साथ रहते हैं।

कबीर साहिब ने कहा है:

जो जन हमरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।

गेल-गेल लाग्या रहूँ, जब तक धरती आकाश।।


तपस्या और गुरु की परीक्षा

बड़े होकर शेख फरीद को भगवान की तलाश में वैराग्य हुआ और उन्होंने घर छोड़ दिया। उन्होंने एक सूफी संत को अपना गुरु बनाया, जो तपस्या के माध्यम से परमात्मा को पाने का उपदेश देते थे। शेख फरीद के गुरु ने उन्हें बताया कि जितना अधिक तप करेंगे, उतना ही जल्द अल्लाह के दर्शन होंगे। गुरु का फरीद के प्रति अधिक लगाव था, जिससे अन्य शिष्य ईर्ष्या करने लगे।

एक दिन, जब शेख फरीद की सेवा करने की बारी आई, तो ईर्ष्यालु शिष्यों ने गुरु का हुक्का भरने के लिए तैयार की गई आग पर पानी डाल दिया। उन्हें पता था कि गुरु को खाना खाने के तुरंत बाद हुक्का चाहिए और देरी होने पर वह बहुत क्रोधित होते हैं। जब फरीद ने देखा कि आग बुझ गई है, तो वह गाँव की ओर दौड़ा, जो लगभग आधा किलोमीटर दूर था। वहाँ उसने एक बुढ़िया माई को आग जलाते हुए देखा। माई ने धुएं से परेशान होकर कहा कि अगर आग चाहिए तो अपनी आँख फोड़वा लो। यह सुनते ही फरीद ने चिमटे से अपनी आँख निकाल दी और माई से आग मांगी। माई यह देखकर डर गई और उसे आग दे दी।

फटी हुई आँख पर कपड़ा बांधकर फरीद तुरंत गुरु के पास पहुँचा। गुरु ने जब उसकी आँख के बारे में पूछा तो उसने बहाना बनाया कि वह एक झाड़ी से टकरा गया था। गुरु ने हुक्का पीकर आराम किया और सो गए।

सुबह, वह माई आँख लेकर गुरु के पास आई और माफी मांगने लगी। गुरु ने फरीद को बुलाया और जब उसने कपड़ा हटाया तो उसकी आँख पहले जैसी ही थी, बस थोड़ी छोटी हो गई थी। इस घटना से यह सिद्ध हुआ कि गुरु बहुत शक्तिशाली थे, पर यह शक्ति केवल मोक्ष दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं थी।


सच्चे ज्ञान की तलाश

कुछ समय बाद गुरु का निधन हो गया। फरीद ने सोचा कि अगर इस जीवन में परमात्मा के दर्शन नहीं हुए तो यह जीवन व्यर्थ है। अपने गुरु की शिक्षा के अनुसार, वह घोर तपस्या करने लगा। वह एक कुएँ में उल्टा लटककर घंटों तप करता था और दिन में बहुत कम भोजन लेता था। 12 वर्षों में उसने केवल 50 किलो अन्न खाया था, जिससे उसका शरीर केवल अस्थि-पंजर रह गया था।

एक दिन वह बहुत निराश और कमजोर होकर कुएँ से बाहर लेटा था। कौवे उसे मरा समझकर उसकी आँखें खाने आए, लेकिन जब उसने उनसे अपनी आँखें न खाने की विनती की और कहा कि वह अभी भी अल्लाह के दर्शनों की आशा में है, तो वे उड़ गए।

एक दिन, जब वह कुएँ में लटककर रो रहा था, पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब सतलोक से आए और उसे बाहर निकाला। कबीर साहेब ने उससे पूछा कि वह कुएँ में क्या कर रहा है। फरीद ने बताया कि वह अल्लाह के दीदार का प्रयत्न कर रहा है। जब कबीर साहेब ने कहा कि वही अल्लाह हैं, तो फरीद ने उनका उपहास किया और कहा कि अल्लाह तो निराकार है।

कबीर साहेब ने उसे समझाया कि अगर अल्लाह निराकार है, तो वह उनके दर्शन (दीदार) के लिए तपस्या क्यों कर रहा है? यह सुनते ही फरीद को एहसास हुआ कि कबीर साहेब ही सच्चे ज्ञानी हैं। वह कबीर साहेब के चरणों में गिर गया और उनसे सच्चा मार्ग दिखाने की विनती की। कबीर साहेब ने बताया कि तपस्या से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती, यह केवल राजभोग और फिर नरक की ओर ले जाती है। उन्होंने कहा:

कबीर, ज्ञान हीन जो गुरु कहावे, आपन डूबे औरों डुबावे।

कबीर साहेब ने शेख फरीद को नाम उपदेश दिया। शेख फरीद ने सतनाम का जाप किया और बाद में सारशब्द प्राप्त करके अपना जीवन सफल किया। उन्होंने पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया और सतलोक चले गए।

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