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नशे से विनाश और जीवन जीने का सही मार्ग

नशा चाहे शराब का हो, भांग का हो, अफीम का हो या हेरोइन का, यह व्यक्ति के पूर्ण विनाश का कारण बनता है। नशा पहले इंसान को शैतान बनाता है, फिर उसके शरीर को नष्ट कर देता है। हमारे शरीर के चार सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं: फेफड़े, लिवर, किडनी और हृदय। शराब सबसे पहले इन्हीं चारों अंगों को खराब करती है, जबकि भांग दिमाग को पूरी तरह से नष्ट कर देती है। हेरोइन शरीर को खोखला कर देती है और अफीम शरीर को कमजोर कर देती है, जिससे वह तभी काम करता है जब उसे अफीम की खुराक दी जाती है। इन सब से खून भी अशुद्ध हो जाता है। इसलिए, नशे को घर या शहर में तो क्या, गाँव में भी नहीं रखना चाहिए और न ही इसके सेवन के बारे में सोचना चाहिए।


एक सच्ची कहानी: नशे का बुरा अंत

यह बात 1997 की है। दिल्ली में पालम एयरपोर्ट पर काम करने वाला एक व्यक्ति था, जिसकी मासिक आय 12,000 रुपये थी। संत रामपाल दास जी एक गाँव में सत्संग करने गए। वहाँ एक बुजुर्ग महिला अपनी तीन पोतियों के साथ सत्संग में आई। यह महिला संत रामपाल जी के सत्संग आयोजित करने वाले यजमान के बड़े भाई की सास थी। उसका बेटा, जो एयरपोर्ट पर काम करता था, बहुत शराब पीता था। उसने अपना घर बर्बाद कर दिया था। वह हर दिन अपनी पत्नी और बच्चों को मारता था, क्योंकि उसकी पत्नी उसके नशे का विरोध करती थी, जिससे घर में रोज़ महाभारत होती थी। उसकी पत्नी बच्चों को छोड़कर अपने मायके चली गई थी। तब उसकी माँ ने बच्चों की देखभाल की, और फिर खुद जाकर अपनी बहू को समझा-बुझाकर वापस लाई। उस रात सत्संग में वह बूढ़ी महिला अपनी पोतियों और बहू के साथ आई थी।

शराबी बेटा जब अपने घर पहुँचा और किसी को नहीं पाया, तो वह कुछ देर वहीं बैठा रहा। एक पड़ोसी ने उसे बताया कि उसकी माँ पूरे परिवार के साथ अपने बड़े चाचा के घर सत्संग में गई है, और वहीं खाना खाएगी। भगवान की इच्छा से, वह भी नशे की हालत में सत्संग में गया और सबसे पीछे बैठ गया।


सत्संग के उपदेश और जीवन का सत्य

सत्संग में बताया गया कि मनुष्य जीवन पाकर जो व्यक्ति शुभ कर्म नहीं करता, उसका भविष्य नरक बन जाता है। लेकिन जो नशा करता है, उसका वर्तमान और भविष्य दोनों ही नरक हो जाते हैं। नशा मनुष्य के लिए नहीं है; यह उसे शैतान बना देता है। जिन लोगों ने पिछले जन्मों में पुण्य कर्म किए हैं, उन्हें इस जन्म में अच्छी नौकरी या व्यवसाय मिला है। यदि वे इस जीवन में शुभ कर्म, भक्ति, दान और पुण्य नहीं करेंगे, तो अगले जन्मों में वे गधा, कुत्ता, सूअर या बैल बनकर कूड़ा खाकर कष्ट भोगेंगे।

मनुष्य जीवन में पिछले पुण्य कर्मों के कारण हमें अच्छा भोजन, पानी, दूध, चाय और अन्य सुख-सुविधाएँ मिलती हैं। हम मच्छरों से बचाव के लिए जाली और ऑलआउट का उपयोग करते हैं और गर्मी से बचने के लिए कूलर-पंखे का सहारा लेते हैं। लेकिन अगर हम पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेकर भक्ति नहीं करते, सत्संग में सेवा नहीं करते, दान और पुण्य नहीं करते, तो अगले जन्म में हम गधा, बैल, या कुत्ता बनकर दुख उठाएंगे। वहाँ न समय पर भोजन मिलेगा, न पानी, और न ही गर्मी, सर्दी, या कीड़े-मकोड़ों से बचाव का कोई साधन होगा।

संत गरीबदास जी ने परमात्मा कबीर जी से प्राप्त ज्ञान का वर्णन करते हुए कहा है:

गरीब, नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।

छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कूड़ी चरने जाई।।

अर्थात, भक्ति और शुभ कर्मों से रहित व्यक्ति को मानव शरीर छोड़ने के बाद गधा या बैल का जीवन मिलता है, जहाँ उसे कूड़े के ढेर में से कूड़ा खाना पड़ता है। उसे न समय पर भोजन मिलेगा, न पानी, और उसकी पूंछ ही मच्छरों-मक्खियों से बचाव का एकमात्र साधन होगी।


एक बैल की कहानी

एक बार एक बैल के पिछले खुर में डेढ़ इंच की कील घुस गई। वह लंगड़ाने लगा। किसान ने सोचा कि शायद मोच आ गई है और चलने से ठीक हो जाएगी। बैल ने दिन भर हल खींचा, और शाम को घर आकर बड़ी मुश्किल से खड़ा हुआ और बैठ गया। उसने चारा भी नहीं खाया। उसकी आँखों से दर्द के कारण आँसू बह रहे थे। सुबह वह उठ नहीं पाया और उसके पैर में सूजन थी। गाँव के एक पशु चिकित्सक को बुलाया गया, जिसने गलत उपचार किया। महीने भर तक गलत इलाज चलता रहा, जिससे बैल को और भी दर्द हुआ। एक दिन परिवार के एक सदस्य ने देखा कि खुर से मवाद निकल रहा है। जब उसे साफ किया गया तो कील मिली। कील निकालने के बाद बैल एक सप्ताह में ठीक हो गया।

इस घटना पर विचार करें: जब यह जीव इंसान था, तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह बैल बनेगा और अपनी पीड़ा भी किसी को बता नहीं पाएगा। कबीर साहेब ने कहा है:

कबीर, जिव्हा तो वोहे भली, जो राते हरिनाम।

ना तो काट के फेंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।

अर्थात, जीभ का सदुपयोग भगवान का नाम जपने में करना चाहिए। अगर जीभ से बुरे शब्द बोले जाते हैं, तो यह पाप का कारण बनती है। एक शक्तिशाली व्यक्ति अपनी जीभ से कमजोर को बुरा-भला कहकर दुख पहुँचाता है। संत कबीर कहते हैं कि अगर कोई अपनी जीभ का सही उपयोग नहीं करता, तो उसे काट कर फेंक देना चाहिए।


नशे का दुष्परिणाम

आज, 1970 के बाद से, मनुष्य को मिली विशेष सुविधाओं ने उसे भगवान से दूर कर दिया है। भौतिक उन्नति तो हुई है, लेकिन मानसिक शांति खत्म हो गई है, जिसका मुख्य कारण नशा है। जिस घर में नशे की वजह से झगड़े होते हैं, वहाँ बच्चे डर में जीते हैं, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास रुक जाता है। एक शराबी समाज में भी सम्मान खो देता है।

अगले जन्म में वह व्यक्ति कुत्ता बनकर मल खाता है और नाले का पानी पीता है। वह अन्य जानवरों और पक्षियों का जीवन भी कष्ट में बिताता है। इसलिए, सभी नशों और बुराइयों को छोड़कर एक सभ्य इंसान का जीवन जीना चाहिए। एक शराबी व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चों, माता-पिता और भाई-बहनों सहित कई लोगों की आत्माओं को दुख पहुँचाता है। एक घंटे का नशा धन, सम्मान और परिवार की शांति को बर्बाद कर देता है।

प्रश्न: अगले जन्म में क्या होगा, किसने देखा है?

उत्तर: जैसे एक अंधा आदमी जंगल की ओर जा रहा हो और एक देखने वाला आदमी उसे चेतावनी दे, “अंधे आदमी! यहाँ मत जाओ। यह रास्ता एक घने जंगल की ओर जाता है, जहाँ शेर और चीते जैसे खतरनाक जानवर रहते हैं।” यदि अंधा आदमी नशा नहीं कर रहा है, तो वह तुरंत वापस लौट आएगा। लेकिन अगर वह नशे में है, तो वह कहेगा, “जंगल में शेर और चीते किसने देखे हैं?” और आगे बढ़ जाएगा।

इसी तरह, संत हमारे लिए ज्ञान की आँखें हैं। यदि हम संतों की शिक्षाओं पर विश्वास नहीं करेंगे और अपने रास्ते को नहीं बदलेंगे, तो हमारा भी वही हाल होगा जो उस अंधे आदमी का हुआ था।

नर से फिर पीछे तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।

छप्पन भोग कहाँ मन बाुरे, कूड़ी चरने जाई।।

जो लोग कहते हैं, “जो होगा देखा जाएगा,” उनसे विनम्रतापूर्वक यह अनुरोध है कि बैल बनने के बाद आप क्या देखेंगे? तब तो सिर्फ़ बोझ ढोने वाला ही देखेगा।

उस शराबी व्यक्ति ने भी सत्संग में सब कुछ सुना। उस दिन के बाद से उसने कभी शराब नहीं पी और न कोई नशा किया। उसने स्वयं दीक्षा ली और अपने पूरे परिवार को दीक्षा दिलाई। कुछ दिनों बाद, संत रामपाल जी और कुछ भक्त दिल्ली के पंजाब खोर गाँव में सत्संग कर रहे थे। उस व्यक्ति ने अपनी कार में अपनी माँ, पत्नी और तीन बेटियों को सत्संग में पहुँचाया। पहले उसके पास एक पुरानी बाइक थी। अब उसके बच्चे अच्छे कपड़े पहने हुए थे। उसकी दादी ने कहा, “महाराज, उस दिन आप हमारे घर आए, और हम समृद्ध हो गए। आपका बेटा बुरा नहीं था; उसने पहले कभी ऐसी अच्छी बातें नहीं सुनी थीं। यह सब परमात्मा कबीर की कृपा है कि वह उस दिन सत्संग में आया और उसकी आत्मा की गंदगी साफ हो गई। आपका परिवार नरक से बाहर आकर अब स्वर्ग में रह रहा है। भगवान द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करें, और आप कभी संकट का सामना नहीं करेंगे।”

इस तरह, सत्संग मानव जीवन में सुधार लाता है, जिससे दुनिया में शांति और आपसी प्रेम बढ़ता है।

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