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दयानंद का यजुर्वेद भाष्य
लेख में यजुर्वेद 16/9 के मंत्र को उद्धृत किया गया है:
“नमस्ते रूद्र मन्यव उतो त इषवे नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः॥”
दयानंद के भाष्य के अनुसार, इस मंत्र में रुद्र को “दुष्ट शत्रुओं को रुलाने वाले राजन” के रूप में संबोधित किया गया है। यहाँ, “नमः” शब्द का प्रयोग तीन अलग-अलग अर्थों में किया गया है:
- “नमः” का अर्थ “वज्र प्राप्त हो।”
- “नमः” का अर्थ “अन्न प्राप्त हो।”
- “नमः” का अर्थ “वज्र शत्रुओं को प्राप्त हो।”
लेख के अनुसार, दयानंद के भाष्य का भावार्थ यह है कि जो व्यक्ति राज्य करना चाहता है, उसे शारीरिक बल बढ़ाना चाहिए और युद्ध तथा हथियारों का संग्रह करना चाहिए।
आलोचना और वैकल्पिक भाष्य
लेख में दयानंद के इस भाष्य की कड़ी आलोचना की गई है। मुख्य आपत्तियाँ इस प्रकार हैं:
- एक ही शब्द (नमः) के तीन अलग-अलग, असंगत अर्थ दिए गए हैं।
- वेद, जो ईश्वर की स्तुति करते हैं, उनमें ईश्वर के स्थान पर एक राजा की स्तुति की गई है।
इसके विपरीत, लेख में मंत्र का एक वैकल्पिक भाष्य भी प्रस्तुत किया गया है:
“नमस्ते रूद्र मन्यव उतो त इषवे नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः॥”
इस भाष्य में रुद्र को “दुष्टों को उनके कर्मों का फल देकर रुलाने वाले रुद्रदेव” के रूप में संबोधित किया गया है। यहाँ, “नमः” का अर्थ “हमारा नमस्कार है” बताया गया है।
इस भाष्य का भावार्थ यह है कि हे रुद्रदेव, हम आपके अनैतिकता का दमन करने वाले क्रोध और दुष्टों का नाश करने वाले बाण के प्रति नमस्कार करते हैं। हम आपकी विराट भुजाओं को भी नमस्कार करते हैं।
लेख का निष्कर्ष यह है कि दयानंद का भाष्य एक मनमाना प्रयास है, जिसका उद्देश्य लोगों पर अपने विचार थोपना था, न कि वेदों के वास्तविक अर्थ को प्रस्तुत करना।