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पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टि रचना का प्रमाण
पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण के तीसरे स्कंध, अध्याय 1-3 (गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित) में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के माता-पिता के बारे में विस्तार से बताया गया है।
राजा परीक्षित के पूछने पर श्री व्यास जी ने नारद जी और ब्रह्मा जी के बीच हुए संवाद का वर्णन किया। जब नारद ने ब्रह्मा जी से पूछा कि इस ब्रह्मांड की रचना किसने की, तो ब्रह्मा जी ने बताया कि उन्होंने स्वयं को एक कमल के फूल पर पाया था, जिसकी उत्पत्ति अगाध जल से हुई थी।
एक हजार वर्ष तक तपस्या के बाद, उन्हें सृष्टि रचना करने की आकाशवाणी हुई। उसी दौरान, मधु और कैटभ नामक दो राक्षस प्रकट हुए। भयभीत होकर ब्रह्मा कमलनाल पकड़कर नीचे उतरे, जहाँ भगवान विष्णु शेष शैय्या पर अचेत लेटे थे। उसी समय, एक स्त्री (दुर्गा) प्रकट हुई, जिसे देखकर विष्णु होश में आए। तब ब्रह्मा, विष्णु और बाद में शंकर भी वहाँ पहुँचे।
यह देवी उन्हें एक विमान में बिठाकर ब्रह्मलोक ले गई, जहाँ उन्होंने एक और ब्रह्मा, विष्णु और शिव को देखा, और फिर उस देवी को देखा। उस देवी को देखकर विष्णु जी को अपने बचपन की याद आई, जब यही देवी उन्हें पालने में झुला रही थीं।
त्रिदेव के माता-पिता
पृष्ठ 119-120 पर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा और शिव से कहा कि, “यह हम तीनों की माता हैं, यही जगत् जननी प्रकृति देवी हैं।”
पृष्ठ 123 पर भगवान विष्णु ने दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा:
“तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है। मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर, हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) होता है, अर्थात् हम तीनों नाशवान हैं। केवल तुम ही नित्य (अविनाशी) हो, जगत जननी हो और प्रकृति देवी हो।”
भगवान शंकर ने भी कहा:
“हे देवी, यदि महाभाग विष्णु आप ही से उत्पन्न हुए हैं, तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी आपके ही बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या आपकी संतान नहीं हुआ? अर्थात् मुझे भी जन्म देने वाली तुम्हीं हो।”
इन सभी विवरणों से यह सिद्ध होता है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव नाशवान हैं। वे मृत्युंजय या सर्वेश्वर नहीं हैं, बल्कि दुर्गा (प्रकृति) के पुत्र हैं और ब्रह्म (काल-सदाशिव) इनके पिता हैं।
दुर्गा और ब्रह्म का महत्व
तीसरे स्कंध के पृष्ठ 125 पर जब ब्रह्मा जी ने दुर्गा से पूछा कि क्या वेदों में वर्णित ब्रह्म वही हैं, तो दुर्गा ने कहा कि वह और ब्रह्म एक ही हैं।
पृष्ठ 129 पर दुर्गा ने तीनों देवताओं से कहा, “अब तुम अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए जाओ। जब कोई कठिन कार्य आएगा, तो तुम मुझे याद करना और मैं आ जाऊँगी। हे देवताओं, तुम्हें मेरा और ब्रह्म का ध्यान हमेशा करते रहना चाहिए, क्योंकि हम दोनों का स्मरण करने से तुम्हारे कार्य सिद्ध होंगे।”
यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि दुर्गा (प्रकृति) और ब्रह्म (काल) ही तीनों देवताओं के माता-पिता हैं, और ब्रह्मा, विष्णु व शिव नाशवान हैं। देवी दुर्गा ने ही इन तीनों देवताओं का विवाह भी करवाया था।
गीता से प्रमाण
गीता अध्याय 7, श्लोक 12:
“ये, च, एव, सात्विकाः, भावाः, राजसाः, तामसाः, च, ये, मतः, एव, इति, तान्, विद्धि, न, तु, अहम्, तेषु, ते, मयि।।”
अनुवाद: और भी जो सत्वगुण (विष्णु), रजोगुण (ब्रह्मा) और तमोगुण (शिव) से उत्पन्न होने वाले भाव हैं, उन सभी को तू मेरे द्वारा सुनियोजित नियमानुसार ही होने वाले जान। परंतु वास्तव में, मैं उन गुणों में नहीं हूँ और वे मुझमें नहीं हैं।