ब्रह्मा ने भी की थी अपने पिता की खोज लेकिन नही मिली सफलता – जानिये क्यों ?



ब्रह्म की अपने पिता काल ब्रह्म की खोज और उनकी प्रतिज्ञा

जब सृष्टि की रचना का कार्य शुरू हुआ, तो माता दुर्गा ने ब्रह्मा जी को बताया कि उनके पिता अलख निरंजन हैं, लेकिन वे उन्हें कभी दर्शन नहीं देंगे। इस बात पर ब्रह्मा जी ने अपनी अटूट प्रतिज्ञा ली कि, “जब तक मैं अपने पिता के दर्शन नहीं कर लेता, तब तक वापस नहीं लौटूंगा।” यह कहकर वे व्याकुल होकर उस ओर चल पड़े, जहाँ सिर्फ़ गहन अंधकार था।

ब्रह्मा जी ने उस घोर अंधकार में चार युगों तक निरंतर ध्यान लगाया, लेकिन उन्हें अपने पिता के दर्शन नहीं हुए। इसी दौरान, काल ब्रह्म ने आकाशवाणी के माध्यम से दुर्गा से पूछा, “सृष्टि की रचना का कार्य क्यों रुका हुआ है?” इस पर भवानी ने उत्तर दिया कि, “आपका ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा आपसे मिलने की जिद्द में आपकी खोज में गया है।”

यह सुनकर काल ने कहा, “उसे तुरंत वापस बुला लो। मैं उसे दर्शन नहीं दूँगा, और उसके बिना किसी भी जीव की उत्पत्ति असंभव है।”


गायत्री का प्रादुर्भाव और ब्रह्मा को वापस लाने का प्रयास

तब माता दुर्गा ने अपनी शब्द शक्ति से गायत्री नामक एक कन्या को उत्पन्न किया और उसे ब्रह्मा को वापस लाने का आदेश दिया। गायत्री ब्रह्मा जी के पास पहुँची, पर ब्रह्मा जी अपनी गहरी समाधि में लीन थे और उन्हें किसी के आने का भान ही नहीं हुआ। तब आदि कुमारी दुर्गा ने ध्यान के माध्यम से गायत्री को उनके चरण स्पर्श करने का संकेत दिया। जैसे ही गायत्री ने उनके चरण स्पर्श किए, ब्रह्मा जी की समाधि टूट गई।

क्रोध में भरकर ब्रह्मा जी ने कहा, “कौन अभागिनी है जिसने मेरा ध्यान भंग किया है? मैं तुझे श्राप दूँगा।”

इस पर गायत्री ने उनसे विनती की, “हे प्रभु! पहले मेरी बात सुन लीजिए, उसके बाद ही कोई निर्णय कीजिएगा। माता ने मुझे आपको वापस लाने के लिए भेजा है, क्योंकि आपके बिना सृष्टि का कार्य अधूरा है।”

ब्रह्मा जी ने कहा, “मैं बिना अपने पिता के दर्शन किए कैसे लौट सकता हूँ? अगर मैं ऐसे ही वापस जाऊँगा तो सब मेरा उपहास करेंगे। तुम माता के सामने यह गवाही दो कि मुझे मेरे पिता ज्योति निरंजन के दर्शन हो चुके हैं और तुमने यह सब अपनी आँखों से देखा है, तभी मैं तुम्हारे साथ वापस चलूँगा।”


गायत्री की शर्त और ब्रह्मा की विवशता

ब्रह्मा की बात सुनकर गायत्री ने एक कठोर शर्त रखी, “यदि आप मुझसे संभोग करेंगे, तभी मैं आपके लिए यह झूठी गवाही दूँगी।”

ब्रह्मा जी ने सोचा कि उन्हें पिता के दर्शन तो हुए नहीं और खाली हाथ वापस लौटने पर माता के सामने लज्जित होना पड़ेगा। कोई और रास्ता न देखकर, उन्होंने गायत्री की शर्त मान ली और उसके साथ रति क्रिया की।

इसके बाद गायत्री ने सुझाव दिया, “क्यों न एक और गवाह तैयार कर लिया जाए?” यह सुनकर ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और बोले, “यह तो बहुत अच्छा विचार है।” तब गायत्री ने अपनी शब्द शक्ति से पुहपवति नामक एक और कन्या को उत्पन्न किया। दोनों ने पुहपवति से यह गवाही देने को कहा कि ब्रह्मा को उनके पिता के दर्शन हो चुके हैं। पुहपवति ने कहा, “मैं झूठी गवाही क्यों दूँ? हाँ, यदि ब्रह्मा मेरे साथ भी रति क्रिया करें, तो मैं अवश्य गवाही दे सकती हूँ।”

इस पर गायत्री ने ब्रह्मा को समझाया (उकसाया) कि अब उनके पास कोई और विकल्प नहीं है। ब्रह्मा ने पुहपवति के साथ भी संभोग किया। तीनों ने मिलकर माता दुर्गा के पास वापस जाने का निश्चय किया।

“दास गरीब यह चूक धुरों धुर।”

उन दोनों देवियों ने यह शर्त जान-बूझकर रखी थी, ताकि यदि ब्रह्मा माता के सामने उनकी झूठी गवाही का रहस्य बता दें, तो माता उन्हें श्राप न दे पाएँ। इस तरह उन्होंने ब्रह्मा को भी इस पाप का भागीदार बना लिया था।

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