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ब्रह्म (काल) की स्वयं को गुप्त रखने की प्रतिज्ञा
तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के जन्म के बाद, ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) से कहा, “मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में मैं किसी को भी अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूँगा। इसी कारण से मैं हमेशा अव्यक्त रहूँगा। आप भी मेरा भेद किसी को मत बताना, मैं गुप्त ही रहूँगा।”
जब दुर्गा ने पूछा, “क्या आप अपने ही पुत्रों को भी दर्शन नहीं देंगे?”
ब्रह्म ने दृढ़ता से कहा, “मैं अपने पुत्रों या किसी और को किसी भी साधना से दर्शन नहीं दूँगा, यह मेरा अटल नियम रहेगा।”
दुर्गा ने इस पर असहमति जताई, “यह आपका कोई उत्तम नियम नहीं है कि आप अपनी ही संतानों से भी छिपे रहें।”
तब काल ने अपनी विवशता बताते हुए कहा, “दुर्गा, मुझे एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों को अपना आहार बनाने का श्राप मिला है। यदि मेरे पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को इस बात का पता चल गया, तो वे उत्पत्ति, स्थिति और संहार का कार्य नहीं करेंगे। इसलिए यह मेरा अनुत्तम नियम हमेशा रहेगा। जब ये तीनों कुछ बड़े हो जाएँ, तो इन्हें मेरे विषय में कुछ मत बताना, नहीं तो मैं तुम्हें भी दंड दूँगा।” इस डर से दुर्गा ने यह वास्तविकता किसी को नहीं बताई।
गीता में वर्णित काल का अव्यक्त स्वरूप
यही कारण है कि गीता अध्याय 7, श्लोक 24 में कहा गया है कि, “यह बुद्धिहीन जन समुदाय मेरे अनुत्तम नियम से अपरिचित है कि मैं कभी किसी के सामने प्रकट नहीं होता। मैं अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ। इसलिए ये बुद्धिहीन लोग मुझे, जो अव्यक्त हूँ, मनुष्य रूप में आया हुआ अर्थात् कृष्ण मानते हैं।”
- अबुद्धयः बुद्धिहीन मम् मेरे अनुत्तमम् अनुत्तम अर्थात घटिया अव्ययम् अविनाशी परम् भावम् विशेष भाव को अजानन्तः न जानते हुए माम् अव्यक्तम् मुझ अव्यक्त को व्यक्तिम् मनुष्य रूप में आपन्नम आया मन्यन्ते मानते हैं।
इसी तरह गीता अध्याय 11, श्लोक 47 और 48 में भी कहा गया है कि यह मेरा वास्तविक काल रूप है और इसके दर्शन अर्थात ब्रह्म की प्राप्ति न तो वेदों में बताई गई विधि से, न जप से, न तप से और न ही किसी अन्य क्रिया से संभव है।
वेदों की प्राप्ति और ब्रह्मा की खोज
जब तीनों पुत्र युवा हुए, तो माता भवानी (प्रकृति, अष्टंगी) ने उनसे सागर मंथन करने को कहा।
- प्रथम सागर मंथन: जब पहली बार सागर मंथन हुआ, तो ज्योति निरंजन ने अपने श्वासों से चार वेदों को उत्पन्न किया और गुप्त वाणी द्वारा उन्हें सागर में रहने का आदेश दिया। ये चारों वेद बाहर आए और ब्रह्मा ने उन्हें ले लिया। वस्तुएं लेकर तीनों पुत्र माता के पास आए। माता ने ब्रह्मा से चारों वेदों को अपने पास रखने और पढ़ने को कहा।
नोट: वास्तव में, पूर्णब्रह्म ने काल को पाँच वेद दिए थे, लेकिन काल ने केवल चार ही प्रकट किए। पाँचवाँ वेद छिपा दिया गया, जिसे स्वयं पूर्ण परमात्मा ने कविर्वाणी (कबीर वाणी) के माध्यम से दोहों और लोकोक्तियों के रूप में प्रकट किया है।
- द्वितीय सागर मंथन: दूसरी बार सागर मंथन से तीन कन्याएँ मिलीं। माता ने इन्हें आपस में बाँट दिया। प्रकृति (दुर्गा) ने ही अपने अन्य तीन रूप (सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती) धारण किए और उन्हें समुद्र में छिपा दिया। सागर मंथन के समय वे बाहर आ गईं। यही प्रकृति तीन रूपों में प्रकट हुई और ब्रह्मा को सावित्री, विष्णु को लक्ष्मी और शंकर को पार्वती पत्नी के रूप में मिलीं। इन तीनों ने भोग-विलास किया, जिससे सुर और असुर दोनों का जन्म हुआ।
जब ब्रह्मा ने वेदों का अध्ययन करना शुरू किया, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि समस्त ब्रह्मांडों का सृजन करने वाला कोई और कुल का मालिक पुरुष (प्रभु) है। ब्रह्मा ने विष्णु और शंकर को भी यह बात बताई कि वेदों में किसी अन्य सृजनहार प्रभु का वर्णन है। लेकिन वेद यह भी कहते हैं कि वे भी उनका भेद नहीं जानते और उस तत्व को जानने के लिए किसी तत्वदर्शी संत से पूछने का संकेत देते हैं।
ब्रह्मा का निश्चय और काल की प्रतिज्ञा
तब ब्रह्मा माता के पास आए और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। माता हमेशा कहती थीं कि मेरे अतिरिक्त कोई और नहीं है और मैं ही कर्ता तथा सर्वशक्तिमान हूँ। पर ब्रह्मा ने कहा कि वेद ईश्वर द्वारा रचित हैं, और वे झूठ नहीं हो सकते।
दुर्गा ने ब्रह्मा से कहा, “तुम्हारे पिता ने प्रतिज्ञा ली है कि वह तुम्हें दर्शन नहीं देंगे।”
इस पर ब्रह्मा ने कहा, “माता जी, अब आपकी बातों पर मेरा विश्वास नहीं रहा है। मैं उस पुरुष (प्रभु) का पता लगाकर ही रहूँगा।”
दुर्गा ने पूछा, “यदि वह तुम्हें दर्शन नहीं देगा, तो तुम क्या करोगे?”
ब्रह्मा ने प्रतिज्ञा की, “तब मैं आपको अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा।”
दूसरी ओर, ज्योति निरंजन ने भी यह कसम खा रखी है कि वह अव्यक्त रहेगा और किसी को दर्शन नहीं देगा, यानी अपने 21 ब्रह्मांडों में कभी भी अपने वास्तविक काल रूप में नहीं आएगा।
गीता अध्याय 7, श्लोक 24
- अव्यक्तम्, व्यक्तिम्, आपन्नम्, मन्यन्ते, माम्, अबुद्धयः।
- परम्, भावम्, अजानन्तः, मम, अव्ययम्, अनुत्तमम्।।24।।
अनुवाद: बुद्धिहीन लोग मेरे घटिया, अटल और परम भाव को न जानते हुए, मुझ अदृश्यमान काल को आकार में कृष्ण अवतार के रूप में प्राप्त हुआ मानते हैं।
गीता अध्याय 7, श्लोक 25
- न, अहम्, प्रकाशः, सर्वस्य, योगमायासमावृतः।
- मूढः, अयम्, न, अभिजानाति, लोकः, माम्, अजम्, अव्ययम्।।25।।
अनुवाद: मैं अपनी योगमाया से छिपा हुआ सबके सामने प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिए अदृश्य और अव्यक्त रहता हूँ। यह अज्ञानी संसार मुझे नहीं जानता, जो जन्म न लेने वाला और अविनाशी है, और मुझे अवतार रूप में आया हुआ समझता है।
ब्रह्म अपनी शब्द शक्ति से कई रूप बना लेता है। चूँकि वह दुर्गा का पति है, इसलिए इस मंत्र में वह कह रहा है कि वह श्री कृष्ण आदि की तरह दुर्गा से जन्म नहीं लेता।