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तीनों गुण क्या हैं? प्रमाणित तथ्यों के साथ
वेदों और पुराणों के अनुसार, रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, और तमगुण शिव जी को कहा गया है। ये तीनों गुण ब्रह्म (काल) और प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं और ये सभी नाशवान हैं।
प्रमाण: 1 – श्री शिव महापुराण
गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्री शिव महापुराण (संपादक: श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार), विद्यवेश्वर संहिता के पृष्ठ 24 से 26 और रूद्र संहिता के पृष्ठ 110, अध्याय 9 में कहा गया है:
‘‘इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है।’’
प्रमाण: 2 – श्रीमद् देवीभागवत पुराण
गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण (संपादक: श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, चिमन लाल गोस्वामी), स्कंध 3, अध्याय 5, पृष्ठ 123 में यह उल्लेख मिलता है:
- भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा: “मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर आपकी कृपा से ही अस्तित्व में हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) होता है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। आप ही नित्य हैं, जगत् जननी हैं, प्रकृति और सनातनी देवी हैं।”
- भगवान शंकर ने कहा: “यदि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु आपसे ही उत्पन्न हुए हैं, तो क्या उनके बाद उत्पन्न होने वाला, तमोगुणी लीला करने वाला मैं शंकर आपकी संतान नहीं हुआ? इसका अर्थ है कि मुझे भी उत्पन्न करने वाली आप ही हैं। इस संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार में आपके गुण सदैव मौजूद हैं। इन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम ब्रह्मा, विष्णु और शंकर नियमानुसार अपने कार्यों में तत्पर रहते हैं।”
संस्कृत श्लोकों के आधार पर स्पष्टीकरण
श्री मद्देवीभागवत महापुराण (सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन, मुंबई) में संस्कृत श्लोकों और उनके हिंदी अनुवाद के साथ यह तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है।
स्कंध 3, अध्याय 4, पृष्ठ 10, श्लोक 42:
ब्रह्मा – अहम् ईश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः, के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा। (42)
अनुवाद: हे माता! ब्रह्मा, मैं और शिव आपके ही प्रभाव से जन्म लेने वाले हैं और नित्य नहीं हैं, अर्थात हम अविनाशी नहीं हैं। फिर अन्य इंद्र आदि देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं? आप ही अविनाशी हैं, प्रकृति और सनातनी देवी हैं।
स्कंध 3, अध्याय 5, पृष्ठ 11-12, श्लोक 8:
यदि दयार्द्रमना न सदांऽबिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः। (8)
अनुवाद: भगवान शंकर बोले: “हे माता! यदि आप हम पर दयालु हैं, तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण क्यों दिया, और विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् हमें जीवों के जन्म-मृत्यु रूपी दुष्चक्र में क्यों लगाया?”
स्कंध 3, अध्याय 5, पृष्ठ 11-12, श्लोक 12:
रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
अनुवाद: “आप अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ हमेशा भोग-विलास में लीन रहती हैं। हे शिवे! आपकी गति कोई नहीं जानता।”
निष्कर्ष
उपरोक्त सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव हैं, और ये तीनों ही नाशवान हैं। दुर्गा का पति ब्रह्म (काल) है और वह उसके साथ भोग-विलास करता है।