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श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी की उत्पत्ति
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काल (ब्रह्म) ने प्रकृति (दुर्गा) से कहा कि, “अब मेरा कौन क्या बिगाड़ेगा? मनमानी करूँगा।” प्रकृति ने फिर प्रार्थना की, “आप कुछ शर्म करो। पहली बात तो आप मेरे बड़े भाई हो, क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) की वचन शक्ति से आपकी (ब्रह्म की) अंडे से उत्पत्ति हुई, और बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है। दूसरी बात, मैं आपके पेट से बाहर निकली हूँ, मैं आपकी बेटी हुई और आप मेरे पिता हुए। इन पवित्र नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की दी हुई शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी।”
ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनती नहीं सुनी और कहा कि, “मुझे जो सजा मिलनी थी, मिल गई। मुझे सतलोक से निकाल दिया गया है। अब मैं मनमानी करूँगा।” यह कहकर काल पुरुष (क्षर पुरुष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की और तीन पुत्रों (रजोगुण युक्त – ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त – विष्णु जी तथा तमोगुण युक्त – शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की।
तीनों पुत्रों का विवाह और कार्य विभाजन
तीनों पुत्रों को युवा होने तक दुर्गा द्वारा अचेत करवा दिया जाता है। फिर जब वे जवान होते हैं, तो श्री ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, श्री विष्णु जी को शेषनाग की शैय्या पर और श्री शिव जी को कैलाश पर्वत पर सचेत करके इकट्ठा कर देता है। तत्पश्चात् प्रकृति (दुर्गा) द्वारा इन तीनों का विवाह कर दिया जाता है और एक ब्रह्मांड में तीन लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल) में एक-एक विभाग का मंत्री (प्रभु) नियुक्त कर देता है।
- श्री ब्रह्मा जी को रजोगुण विभाग
- श्री विष्णु जी को सतोगुण विभाग
- श्री शिव शंकर जी को तमोगुण विभाग
वह स्वयं गुप्त रूप से (महाब्रह्मा, महाविष्णु, महाशिव) मुख्यमंत्री पद संभालता है।
काल द्वारा तीनों लोकों की रचना
एक ब्रह्मांड में एक ब्रह्मलोक की रचना की गई है, जिसमें तीन गुप्त स्थान बनाए गए हैं:
- रजोगुण प्रधान स्थान: यहाँ यह ब्रह्म (काल) स्वयं महाब्रह्मा (मुख्यमंत्री) रूप में रहता है और अपनी पत्नी दुर्गा को महासावित्री रूप में रखता है। इन दोनों के संयोग से जो पुत्र इस स्थान पर उत्पन्न होता है, वह स्वतः ही रजोगुणी बन जाता है।
- सतोगुण प्रधान स्थान: यहाँ यह क्षर पुरुष स्वयं महाविष्णु रूप बनाकर रहता है और अपनी पत्नी दुर्गा को महालक्ष्मी रूप में रखता है। इनसे जो पुत्र उत्पन्न होता है, उसका नाम विष्णु रखता है और वह बालक सतोगुण युक्त होता है।
- तमोगुण प्रधान क्षेत्र: इसी काल ने वहीं पर एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। इसमें यह स्वयं सदाशिव रूप बनाकर रहता है और अपनी पत्नी दुर्गा को महापार्वती रूप में रखता है। इन दोनों के पति-पत्नी व्यवहार से जो पुत्र उत्पन्न होता है, उसका नाम शिव रख देते हैं और उसे तमोगुण युक्त कर देते हैं।
(प्रमाण के लिए देखें: पवित्र श्री शिव महापुराण, विद्यवेश्वर संहिता, पृष्ठ 24-26; रूद्र संहिता, अध्याय 6, 7, 9, पृष्ठ 100-105 और 110; तथा पवित्र श्रीमद्देवीमहापुराण, तीसरा स्कंद, पृष्ठ 114-123, सभी गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित)।
फिर इन्हीं को धोखे में रखकर अपने खाने के लिए जीवों की उत्पत्ति श्री ब्रह्मा जी से, स्थिति (एक-दूसरे को मोह-ममता में रखकर काल जाल में रखना) श्री विष्णु जी से, तथा संहार (क्योंकि काल पुरुष को शापवश एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से मैल निकालकर खाना होता है। उसके लिए इक्कीसवें ब्रह्मांड में एक तप्तशिला है जो स्वतः गर्म रहती है। उस पर गर्म करके मैल पिघलाकर खाता है। जीव मरते नहीं, परंतु कष्ट असहनीय होता है, फिर प्राणियों को कर्म के आधार पर अन्य शरीर प्रदान करता है) श्री शिव जी द्वारा करवाता है।
तीन गुण प्रधान स्थानों का उदाहरण
जैसे किसी मकान में तीन कमरे हों। एक कमरे में अश्लील चित्र लगे हों, उस कमरे में जाते ही मन में वैसे ही मलिन विचार उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरे कमरे में साधु-संतों और भक्तों के चित्र लगे हों, तो मन में अच्छे विचार और प्रभु का चिंतन ही बना रहता है। तीसरे कमरे में देशभक्तों व शहीदों के चित्र लगे हों, तो मन में वैसे ही जोशीले विचार उत्पन्न हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार, ब्रह्म (काल) ने अपनी सूझ-बूझ से उपरोक्त तीनों गुण प्रधान स्थानों की रचना की हुई है।