जानिये रहस्य : आत्माऐं काल के जाल में कैसे फंसी । सृष्टी रचना

आत्माएं काल के जाल में कैसे फंसी?

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और रहस्यमय विषय है कि आखिर हम आत्माएं काल (ज्योति निरंजन) के जाल में कैसे फंस गईं। इसकी शुरुआत तब हुई जब पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) के सत्यलोक में ज्योति निरंजन (ब्रह्म) तपस्या कर रहा था।

  • ब्रह्म की तपस्या और हमारी आसक्ति: हम सभी आत्माएं, जो आज ज्योति निरंजन के 21 ब्रह्मांडों में रह रही हैं, उसकी तपस्या पर मोहित हो गईं और मन ही मन उसे चाहने लगीं। इस तरह हम अपने असली प्रभु, सुखदाई सत्य पुरुष से विमुख हो गईं और पतिव्रता पद से गिर गईं। पूर्ण प्रभु ने हमें बार-बार सावधान किया, लेकिन हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी।

आज भी यही प्रभाव काल की सृष्टि में मौजूद है। जैसे नौजवान बच्चे फिल्मी सितारों की बनावटी अदाओं पर बहुत आसक्त हो जाते हैं, रोकने पर भी नहीं रुकते। अगर कोई अभिनेता या अभिनेत्री उनके शहर में आ जाए, तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ लग जाती है। ‘लेना एक न देने दो’, अभिनेता तो अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं, लेकिन ये नादान बच्चे बर्बाद हो रहे हैं। माता-पिता कितना भी समझाएं, वे नहीं मानते और छिप-छिपकर जाते ही रहते हैं।

21 ब्रह्मांडों का निर्माण

पूर्ण ब्रह्म कविर्देव ने क्षर पुरुष से पूछा, “बोलो, क्या चाहते हो?” उसने कहा, “पिताजी, यह जगह मेरे लिए छोटी है, मुझे अलग से एक द्वीप दीजिए।”

तब हक्का कबीर (सत् कबीर) ने उसे 21 ब्रह्मांड प्रदान कर दिए। कुछ समय बाद ज्योति निरंजन ने सोचा कि खाली ब्रह्मांडों का क्या काम, इनमें कुछ रचना करनी चाहिए। यह सोचकर उसने 70 युग तक तप किया और पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) से रचना सामग्री मांगी। सत्य पुरुष ने उसे तीन गुण (रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण) और पाँच तत्व (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश) दिए। इनसे ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने अपने ब्रह्मांडों में कुछ रचना की।

फिर उसने सोचा कि अकेले दिल नहीं लगता, इसमें जीव भी होने चाहिए। इस विचार से उसने 64 युग तक फिर से तप किया। पूर्ण परमात्मा कविर्देव ने जब पूछा, तो उसने कहा, “मुझे कुछ आत्माएं दे दीजिए, मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा।”

तब सत्पुरुष कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा, “हे ब्रह्म! मैं तेरे तप के फल के रूप में तुझे और ब्रह्मांड दे सकता हूँ, लेकिन मैं अपनी आत्माओं को किसी भी तप-साधना के फल के रूप में नहीं दे सकता। हाँ, अगर कोई स्वेच्छा से तेरे साथ जाना चाहे, तो वह जा सकता है।”

आत्माओं की स्वीकृति और निष्कासन

कविर (समर्थ कबीर) के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्माएं पहले से ही उस पर मोहित थीं। हम उसे चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा, “मैंने पिताजी से अलग 21 ब्रह्मांड पाए हैं और वहाँ बहुत सुंदर जगहें बनाई हैं। क्या आप मेरे साथ चलेंगे?”

हम सभी हंसों ने, जो आज इन 21 ब्रह्मांडों में दुखी हैं, कहा, “हम तैयार हैं, अगर पिताजी आज्ञा दें।”

तब क्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया और सारी बात बताई। कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि जो मेरे सामने स्वीकृति देगा, उसे ही मैं जाने की आज्ञा दूंगा। क्षर पुरुष और परम अक्षर पुरुष (कविरमितौजा) दोनों हम आत्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा, “जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता है, वह हाथ उठाकर अपनी स्वीकृति दे।”

अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी ने स्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। फिर एक हंस आत्मा ने हिम्मत की और कहा, “पिताजी, मैं जाना चाहता हूँ।”

उसकी देखा-देखी, हम सभी आत्माओं ने (जो आज काल के 21 ब्रह्मांडों में फंसी हैं) स्वीकृति दे दी।

परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा, “आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तुम्हारे साथ जाने की स्वीकृति दी है, मैं उन सभी आत्माओं को तुम्हारे पास भेज दूंगा।” ज्योति निरंजन अपने 21 ब्रह्मांडों में चला गया। उस समय ये ब्रह्मांड सत्यलोक में ही थे।

काल को श्राप और सृष्टि का निर्माण

इसके बाद पूर्ण ब्रह्म ने सबसे पहले स्वीकृति देने वाले हंस को आष्ट्रा (आदि माया/ प्रकृति देवी/ दुर्गा) का रूप दिया, लेकिन स्त्री अंग नहीं बनाया। फिर उन सभी आत्माओं को, जिन्होंने ज्योति निरंजन के साथ जाने की सहमति दी थी, उस लड़की के शरीर में प्रवेश करा दिया। सत्य पुरुष ने कहा, “पुत्री, मैंने तुझे शब्द शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव ब्रह्म कहे, उतने उत्पन्न कर देना।”

पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर साहेब) ने अपने पुत्र सहज दास के माध्यम से प्रकृति को क्षर पुरुष के पास भेज दिया। सहज दास ने ज्योति निरंजन को बताया, “पिताजी ने इस बहन के शरीर में उन सभी आत्माओं को प्रवेश करा दिया है, जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति दी थी। इसे पिताजी ने वचन शक्ति दी है, आप जितने जीव चाहेंगे, यह अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी।” यह कहकर सहज दास वापस अपने द्वीप में आ गए।

युवा होने के कारण प्रकृति देवी का रूप बहुत सुंदर था। ब्रह्म के अंदर कामवासना जाग उठी और उसने प्रकृति देवी के साथ अभद्र व्यवहार करना शुरू कर दिया। तब दुर्गा ने कहा, “ज्योति निरंजन, मेरे पास पिताजी की दी हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहेंगे, मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। आप मैथुन की परम्परा शुरू मत कीजिए। आप भी उसी पिता के शब्द से अंडे से उत्पन्न हुए हैं और मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हैं, भाई-बहन का यह संबंध महापाप का कारण बनेगा।”

लेकिन ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी बात नहीं सुनी। उसने अपनी शब्द शक्ति से नाखूनों से स्त्री अंग (भग) प्रकृति को लगा दिया और बलात्कार करने की कोशिश की।

उसी समय, अपनी इज्जत बचाने का कोई और रास्ता न देखकर दुर्गा ने सूक्ष्म रूप धारण किया और ज्योति निरंजन के खुले मुँह से पेट में प्रवेश कर गई और पूर्ण ब्रह्म कविर्देव से अपनी रक्षा की प्रार्थना करने लगी।

उसी समय कविर्देव (कविर् देव) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप धारण करके वहां प्रकट हुए। उन्होंने कन्या को ब्रह्म के पेट से बाहर निकाला और कहा, “ज्योति निरंजन, आज से तेरा नाम ‘काल’ होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे, इसलिए तेरा नाम ‘क्षर पुरुष’ होगा। तू प्रतिदिन एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को खाएगा और सवा लाख उत्पन्न करेगा। तुम दोनों को 21 ब्रह्मांडों सहित निष्कासित किया जाता है।”

इतना कहते ही 21 ब्रह्मांड विमान की तरह चलने लगे। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए वे सत्यलोक से सोलह संख कोस (एक कोस लगभग 3 कि.मी. का होता है) की दूरी पर आकर रुक गए।


तीन शक्तियों का परिचय

अब तक तीन प्रमुख शक्तियों का विवरण आया है:

  1. पूर्ण ब्रह्म: इन्हें सत्य पुरुष, अकाल पुरुष, शब्द स्वरूपी राम और परम अक्षर ब्रह्म/पुरुष भी कहते हैं। यह पूर्ण ब्रह्म अनगिनत ब्रह्मांडों के स्वामी हैं और वास्तव में अविनाशी हैं।
  2. परब्रह्म: इन्हें अक्षर पुरुष भी कहा जाता है। ये वास्तव में अविनाशी नहीं हैं। ये सात शंख ब्रह्मांडों के स्वामी हैं।
  3. ब्रह्म: इन्हें ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरुष और धर्मराय भी कहा जाता है। यह केवल 21 ब्रह्मांडों के स्वामी हैं।

ब्रह्म, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का भेद

इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टि में एक ब्रह्मांड का परिचय दिया गया है। इसी में तीन और नाम आते हैं: ब्रह्मा, विष्णु और शिव।

एक ब्रह्मांड में, ब्रह्म (क्षर पुरुष) स्वयं तीन गुप्त स्थान बनाकर ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में रहता है। वह अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों को जन्म देता है, जिनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु और शिव ही होते हैं।

जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है, वह एक ब्रह्मांड के केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक और पाताल लोक) में रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इन्हें त्रिलोकीय ब्रह्मा कहा गया है।

वहीं, ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है, उसे महाब्रह्मा या ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा जाता है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव और महाविष्णु भी कहते हैं।

विष्णु पुराण में प्रमाण:

चतुर्थ अंश, अध्याय 1, पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा, “जिस अजन्मा, सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अंत, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते… जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरुष रूप है तथा जो रुद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनंत रूप से संपूर्ण जगत् को धारण करता है।”

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