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सूक्ष्म वेद से सृष्टि रचना का वर्णन
प्रभु प्रेमी आत्माएं, जब आप पहली बार सृष्टि की इस रचना के बारे में पढ़ेंगे, तो शायद आपको यह एक दंतकथा जैसी लगे। लेकिन पवित्र सद्ग्रंथों के प्रमाणों को देखने के बाद आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान अब तक कहां छिपा था? कृपया धैर्य के साथ इस ज्ञान को पढ़ते रहें और इसे सुरक्षित रखें। यह ज्ञान आपकी एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा।
पवित्रात्माएं, कृपया सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारा रची गई सृष्टि रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें।
तीन प्रमुख पुरुष (प्रभु) और उनकी शक्तियां
- पूर्ण ब्रह्म: इस सृष्टि रचना में सतपुरुष, अलख पुरुष, अगम पुरुष, और अनामी पुरुष एक ही पूर्ण ब्रह्म हैं। ये वास्तव में अविनाशी प्रभु हैं, जो अलग-अलग रूप धारण करके अपने चारों लोकों—सतलोक, अलख लोक, अगम लोक, और अनामी लोक—में रहते हैं। इनके अंतर्गत असंख्य ब्रह्मांड आते हैं।
- परब्रह्म: यह केवल सात शंख ब्रह्मांडों के स्वामी हैं। इन्हें अक्षर पुरुष भी कहते हैं। हालांकि, ये और इनके ब्रह्मांड भी वास्तव में अविनाशी नहीं हैं।
- ब्रह्म: यह केवल इक्कीस ब्रह्मांडों के स्वामी हैं। इन्हें क्षर पुरुष, ज्योति निरंजन, और काल जैसे नामों से जाना जाता है। ये और इनके सभी ब्रह्मांड नाशवान हैं।
उपरोक्त तीनों पुरुषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 15 के श्लोक 16 और 17 में भी मिलता है।
- ब्रह्मा, विष्णु, और शिव: ये तीनों ब्रह्म के पुत्र हैं। ब्रह्मा ज्येष्ठ पुत्र हैं, विष्णु मध्य वाले और शिव तीसरे पुत्र हैं। ये तीनों केवल एक ब्रह्मांड में एक-एक विभाग (गुण) के स्वामी हैं और ये भी नाशवान हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) द्वारा रची सृष्टि
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सूक्ष्म वेद, यानी कबीर वाणी में स्वयं अपने द्वारा रची सृष्टि का ज्ञान दिया है, जो इस प्रकार है:
सर्वप्रथम, केवल एक ही स्थान था, जिसे ‘अनामी (अनामय) लोक’ या ‘अकह लोक’ कहते हैं। पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेले रहते थे। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव यानी कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माएं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थीं। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है। अनामी पुरुष के एक रोम कूप का प्रकाश असंख्य सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।
जैसे किसी देश के प्रधानमंत्री का शरीर का नाम तो कुछ और होता है, लेकिन पद का नाम ‘प्रधानमंत्री’ होता है। कई बार प्रधानमंत्री कई विभाग भी अपने पास रखते हैं, और जिस विभाग के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हैं, उस समय उसी पद को लिखते हैं। इसी तरह, कबीर परमेश्वर की शक्ति और रोशनी का स्तर अलग-अलग लोकों में बदलता जाता है।
ठीक इसी प्रकार, पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों—अगम लोक, अलख लोक, और सतलोक—की रचना अपने शब्द (वचन) से की।
- कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक में प्रकट हुए और वहां के स्वामी भी बने। वहां इनका उपमात्मक नाम अगम पुरुष है। इस अगम पुरुष का मानव जैसा शरीर बहुत तेजोमय है, जिसके एक रोम कूप की रोशनी खरब सूर्यों से भी अधिक है।
- यही पूर्ण परमात्मा अलख लोक में प्रकट हुए और स्वयं ही अलख लोक के स्वामी बने। यहां इनका उपमात्मक नाम अलख पुरुष है। इस पूर्ण प्रभु का मानव जैसा शरीर स्वयं प्रकाशित (स्वज्योति) है। एक रोम कूप की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है।
- और यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुए और सतलोक के भी अधिपति बने। इसलिए इनका उपमात्मक नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु) है। इन्हीं के अन्य नाम अकालमूर्ति, शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, और परम अक्षर ब्रह्म भी हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव जैसा शरीर तेजोमय है, जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूर्यों और उतने ही चंद्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।
सतलोक में रचना
सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतलोक में विराजमान होकर सबसे पहले वहां अन्य रचना की।
- उन्होंने एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की।
- फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की।
- इसके बाद, एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा।
इन सोलह पुत्रों के नाम हैं:
- कूर्म
- ज्ञानी
- विवेक
- तेज
- सहज
- संतोष
- सुरति
- आनंद
- क्षमा
- निष्काम
- जलरंगी
- अचिंत
- प्रेम
- दयाल
- धैर्य
- योग संतायन अर्थात् योगजीत।
सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिंत को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा और उसे शक्ति प्रदान की। अचिंत ने अपने शब्द से अक्षर पुरुष (परब्रह्म) को उत्पन्न किया और उससे मदद मांगी। अक्षर पुरुष स्नान करने के लिए मानसरोवर पर गया, जहां उसे बहुत आनंद आया और वह वहीं सो गया।
जब वह लंबे समय तक बाहर नहीं आया, तो अचिंत की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से थोड़ा अमृत जल लेकर एक अंडा बनाया। उस अंडे में एक आत्मा प्रवेश की और उसे मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ दिया। अंडे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की नींद टूट गई। उसने गुस्से से अंडे को देखा, जिससे वह दो भागों में टूट गया। उसमें से ज्योति निरंजन (क्षर पुरुष) निकला, जो आगे चलकर ‘काल’ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘कैल’ है।
तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ और अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष और क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे।
इसके बाद, पूर्ण धनी कविर्देव ने सारी रचना स्वयं की। उन्होंने अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सभी ब्रह्मांडों को स्थापित किया गया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं।
पूर्ण ब्रह्म ने सभी आत्माओं को अपने ही अंदर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर के समान उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा गया, जिसका तेज 16 सूर्यों जैसा मानव सदृश है। लेकिन परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है।
बहुत समय बाद, क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिंत, अक्षर पुरुष, क्षर पुरुष) एक द्वीप में रह रहे हैं, जबकि बाकी सभी एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। उसने सोचा कि वह भी साधना करके एक अलग द्वीप प्राप्त करेगा। ऐसा विचार करके वह एक पैर पर खड़ा होकर सत्तर (70) युग तक तपस्या करने लगा।
[…] Nebel kept looking at Florence’s face. Some journalists had once asked her how does she see the future, and how does she locate missing people or things, then Florence told, “I myself don’t know how it becomes possible. I am telling a very important thing about the future. At the end of the 20th century, a light will emanate from India. This light will give information to the whole world about those divine powers, that have remained mysterious for all of us until now. (Please read the information about the divine powers given by Saint Rampal Das Ji Maharaj in this very book on page 29. “Creation of Nature“.) […]