कामाख्या मंदिर की सच्चाई- योनि पुजन Part-2

असम का प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर

परिचय:

कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास, गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर, नीलाचल पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर देवी सती को समर्पित एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है।

मंदिर से जुड़ी मान्यताएं:

पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती ने अपने पिता दक्ष के हवन कुंड में कूदकर आत्महत्या कर ली थी, तो भगवान शिव मोहवश उनके जले हुए शव को अपने कंधे पर लेकर हजारों सालों तक घूमते रहे। भगवान विष्णु ने शिव का मोह भंग करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से पार्वती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के ये टुकड़े जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई:

  • जहां आँख गिरी, वहां नैना देवी मंदिर बना।
  • जहां जिव्हा (जीभ) गिरी, वहां ज्वाला मंदिर बना।
  • जहां धड़ गिरा, वहां वैष्णो देवी मंदिर बना।
  • और जहां योनि गिरी, वहां कामाख्या मंदिर बना।

मंदिर की विशेष पूजा पद्धति:

कामाख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। यहां योनि की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि साल में एक बार, अंबुवासी पर्व के दौरान, देवी रजस्वला होती हैं। इस समय, गर्भ गृह में स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से तीन दिनों तक रक्त प्रवाहित होता है। ज्योतिष के अनुसार, सौर आषाढ़ माह के मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के बाद पृथ्वी ऋतुवती होती है, और यही मान्यता कामाख्या मंदिर से भी जुड़ी है।

इन तीन दिनों तक मंदिर में प्रवेश वर्जित होता है। चौथे दिन मंदिर के पट खुलते हैं और विशेष पूजा के बाद भक्तों को दर्शन की अनुमति मिलती है।


कुछ विचारणीय प्रश्न

यह पोस्ट किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती, बल्कि सत्य को सामने लाना चाहती है। इन धार्मिक मान्यताओं से कुछ सवाल उठते हैं, जिन पर विचार करना आवश्यक है:

  • क्या एक देवी और साधारण स्त्री के शरीर में कोई अंतर नहीं है? क्या देवी-देवताओं का शरीर भी हाड़-मांस से बना होता है, जैसा कि इंसानों का होता है? अगर देवी-देवता भी इंसानों की तरह ही रजस्वला और अशुद्ध होते हैं, तो उनमें और इंसानों में क्या फर्क रह जाता है?
  • देवी के शरीर से निकले तरल पदार्थ को सिंदूर बनाकर बेचा जाता है, जिसे सोचकर भी घिन आती है। जिस चीज के कारण एक स्त्री को कुछ दिनों के लिए अशुद्ध माना जाता है, उसे धार्मिक कार्य में प्रयोग करना कितना सही है?
  • शंकराचार्य जैसे महान संत भी देवी पार्वती की पूजा करते हैं, जो स्वयं जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसी हैं। क्या मोक्ष की प्राप्ति के लिए ऐसी देवी की पूजा करना उचित है? क्या हम उस परमपिता परमात्मा की पूजा करना भूल गए हैं जिसने हम सभी को, देवी-देवता और मनुष्य, बनाया है?

हमें सोचना चाहिए कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। हमारा देश इन अंधविश्वासों से कब बाहर आएगा? पूजनीय केवल वह परमात्मा है जिसने हम सब को बनाया है।

वास्तविक भक्ति विधि जानने के लिए, कृपया ‘ज्ञान गंगा’ पुस्तक पढ़ें।

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