क्या आप जानते हैं कौन होता हैं सच्चा गुरू ?

मैंने आपके दिए गए लेख को फिर से लिखा है, जिसमें सभी जानकारी को बरकरार रखा गया है और इसे वर्डप्रेस-शैली के अनुसार फ़ॉर्मेट किया गया है।


पूर्ण गुरु की पहचान

आज के कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना एक बहुत ही जटिल प्रश्न है। लेकिन इसका एक बहुत ही सरल और साधारण उत्तर है: जो गुरु शास्त्रों के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयायियों से करवाता है, वही पूर्ण संत है।

भक्ति मार्ग का संविधान धार्मिक शास्त्र हैं, जैसे कि कबीर साहेब की वाणी, नानक साहेब की वाणी, संत गरीबदास जी महाराज की वाणी, संत धर्मदास जी साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुरान, पवित्र बाइबिल आदि।

जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताते हैं और भक्त समाज को मार्गदर्शन करते हैं, वे ही पूर्ण संत हैं। इसके विपरीत, जो संत शास्त्रों के विरुद्ध साधना करवाते हैं, वे भक्त समाज के घोर दुश्मन हैं और इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा।

उदाहरण के तौर पर: जैसे कोई अध्यापक सिलेबस (पाठ्यक्रम) से बाहर की शिक्षा देता है, तो वह उन विद्यार्थियों का दुश्मन है।


गीता और वेदों में प्रमाण

गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 15

न, माम्, दुष्कतिनः, मूढाः, प्रपद्यन्ते, नराधमाः,

मायया, अपहृतज्ञानाः, आसुरम्, भावम्, आश्रिताः।।

अनुवाद: माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुरी स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच और दूषित कर्म करने वाले मूर्ख मुझे नहीं भजते। अर्थात्, वे तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की साधना ही करते रहते हैं।


यजुर्वेद अध्याय न. 40 श्लोक न. 10

(संत रामपाल दास जी द्वारा भाषा-भाष्य)

अन्यदेवाहुःसम्भवादन्यदाहुरसम्भवात्,

इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे।।10।।

हिन्दी अनुवाद: परमात्मा के बारे में सामान्यतः निराकार अर्थात् कभी न जन्मने वाला कहते हैं। दूसरे, आकार में अर्थात् जन्म लेकर अवतार रूप में आने वाला कहते हैं। जो टिकाऊ अर्थात् पूर्णज्ञानी अच्छी तरह से सुनाते हैं, वे ही समरूप अर्थात् यथार्थ रूप में भिन्न-भिन्न रूप से प्रत्यक्ष ज्ञान कराते हैं।


गीता अध्याय नं. 4 का श्लोक नं. 34

तत्, विद्धि, प्रणिपातेन, परिप्रश्नेन, सेवया,

उपदेक्ष्यन्ति, ते, ज्ञानम्, ज्ञानिनः, तत्वदर्शिनः।।

अनुवाद: उसको समझ। उन पूर्ण परमात्मा के ज्ञान व समाधान को जानने वाले संतों को भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से, वे परमात्मा तत्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।


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