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भस्मासुर के कारण भगवान शंकर की जान संकट में
शंकरजी भगवान होते हुए भी अपनी जान नहीं बचा पाए तो अपने पूजा करने वाले लोगों की जान कैसे बचाएंगे?
भस्मासुर, जिसका असली नाम भस्मगिरी था, एक महापापी असुर था। वह माता पार्वती पर आसक्त था और उन्हें पाने के लिए उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की। उसने शंकरजी से अमर होने का वरदान माँगा, लेकिन शंकरजी ने कहा कि वह कुछ और माँग लें। तब भस्मासुर ने भस्म कड़ा वरदान में माँगा, जिससे वह जिसके भी सिर पर हाथ रखकर “भस्म” कहे, वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने उसे वह भस्म कड़ा दे दिया।
वरदान मिलते ही भस्मासुर ने कहा, “भगवन्, क्यों न इस वरदान की शक्ति को परख लिया जाए?” और वह स्वयं शिवजी के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। शिवजी वहाँ से भाग लिए।
तब विष्णुजी ने पार्वती का रूप धारण करके भस्मासुर को आकर्षित किया। भस्मासुर शिवजी को भूलकर उस पार्वती के मोहपाश में बँध गया। पार्वती रूपी विष्णु ने भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए प्रेरित किया। भस्मासुर तुरंत मान गया। नृत्य करते समय भस्मासुर पार्वती की ही तरह नाचने लगा, और उचित मौका देखकर विष्णुजी ने अपने सिर पर हाथ रखा। शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने उनकी नकल की। उसने भस्म कड़ा, जो हाथ में पहने हुए था, अपने सर पर रख लिया। इतने में विष्णुजी ने “भस्म” कहा और भस्मासुर अपने ही प्राप्त वरदान से भस्म हो गया।
कबीर साहेब ही अविनाशी हैं
शिवजी मृत्युंजय नहीं हैं। अगर वे अमर होते तो अपने ही साधक से डरकर नहीं भागते। अमर केवल कबीर साहेब जी हैं, जो धरती पर लीला करने सशरीर आते हैं और सशरीर ही चले जाते हैं।