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भक्ति की सच्ची सीख: मीरा बाई की कहानी
भक्ति की साक्षात मूरत मीरा बाई को कौन नहीं जानता? हम सभी जानते हैं कि वह बचपन से ही श्री कृष्ण जी की उपासक थीं। उनके अधिकतर भजनों में कृष्ण जी की ही महिमा और गुणगान होता था। वह कृष्ण जी पर इतनी समर्पित और दीवानी थीं कि किसी अन्य देवी-देवता को नहीं पूजती थीं। उन्होंने यहाँ तक कहा था:
“मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई”
लेकिन उनके जीवन में ऐसी क्या घटना घटी कि उन्होंने यह कहने में भी जरा सा संकोच नहीं किया:
कोई मुझे भूण्डी कहो के सूण्डी।
मेरी सूरत राम में लागी।।
और वह रो-रोकर गाईं:
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु।
करि कृपा अपनायो।
पायो जी मैंने…..।।
यह घटना उन भक्तों के लिए बहुत प्रेरणाप्रद है जिनकी आस्था अभी भी किसी भगवान में और उससे भी ज्यादा मुक्ति में है। क्योंकि मुक्ति का सीधा संबंध भगवान और उसके सामर्थ्य से है।
कहा भी गया है कि:
बंधे को बंधा मिला, छूटे कौन उपाय।
कर सेवा निरबंध की, पल में ले छूड़ाय।।
मीरा बाई के जीवन की घटना
मीरा बाई की शादी घरवालों ने जबरदस्ती एक राजा से करा दी थी। शादी के चार साल बाद राजा की मृत्यु हो गई। जब तक राजा जीवित रहा, उसने मीरा को भक्ति करने और मंदिर जाने से नहीं रोका, बल्कि सहयोग दिया।
लेकिन राजा की मृत्यु के बाद, उसका छोटा भाई राजा बना और उसने मीरा पर बहुत जुल्म ढाए। उसने उसे मारने के लिए हार की पेटी में साँप डालकर दिया, जहर भी दिया और तलवार से भी काटना चाहा, पर वह नहीं मरी। वह निर्भय होकर मंदिर आती-जाती रही।
एक दिन मीरा बाई मंदिर जा रही थीं, उसी रास्ते में कबीर साहेब और रविदास जी 10-20 भक्तों के साथ सत्संग कर रहे थे। मीरा भी सत्संग में आकर बैठ गईं।
सत्संग में बताया जा रहा था कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर से ऊपर भी “एक महाप्रबल शक्ति” है, और केवल उसी की भक्ति से हम “मुक्ति” को प्राप्त कर सकते हैं। कोई अन्य देव हमें मोक्ष नहीं दिला सकता।
यह सुनते ही मीरा से रहा नहीं गया और उन्होंने हाथ जोड़कर कबीर साहेब से पूछा, “यह आप क्या कह रहे हैं, महात्मा जी? क्या भगवान श्रीकृष्ण से ऊपर भी कोई परमशक्ति है?”
कबीर साहेब ने जवाब दिया, “हाँ बेटी मीरा, श्रीकृष्ण से ऊपर भी और महान शक्तियाँ हैं। मैं उन्हीं का ज्ञान और भक्ति विधि बताता हूँ।”
मीरा कहने लगीं, “मुझे आपकी बातों पर विश्वास नहीं होता संत जी। मुझे तो श्रीकृष्ण जी प्रकट होकर दर्शन देते हैं और मुझसे बात करते हैं।”
तब कबीर साहेब ने कहा, “मैं जो कह रहा हूँ वह सत्य है, मीरा। अगर तुझे इस ज्ञान पर विश्वास नहीं होता, तो अपने कृष्ण से ही पूछ ले, क्योंकि ये देवता झूठ नहीं बोला करते।”
मीरा बहुत व्याकुल हो उठीं और घर आकर बड़ी तड़प के साथ श्रीकृष्ण जी को पुकारने लगीं। श्रीकृष्ण जी ने उन्हें दर्शन दिए, तब मीरा ने बड़ी आतुरता से पूछा, “क्या आपसे ऊपर भी कोई और शक्ति है?”
कृष्ण जी ने कहा, “हाँ, मीरा है तो सही, पर आज तक हमें वह मिला नहीं, इसलिए उसका प्रयत्न बेकार है।”
मीरा ने कहा, “मुझे एक ऐसा संत मिला है जो मुझे वहाँ तक की साधना बताकर ‘मोक्ष’ दिला सकता है।”
यह कहकर मीरा बाई बड़ी बेचैनी और तड़प के साथ सतगुरु की शरण में आईं और कबीर साहेब के आदेशानुसार रविदास जी से मोक्ष-मार्ग का “प्रथम मंत्र” प्राप्त किया।
मीराबाई के मोक्ष की पहली सीढ़ी यहीं से शुरू हुई। आगे की सीढ़ियाँ और भी हैं, जिन्हें सतगुरु रूप में कबीर साहेब ने बीच-बीच में प्रकट होकर पूर्ण किया और उस भोली आत्मा को मुक्ति प्रदान की।
कथा का सारांश
सतगुरु से मिलने से पहले मीरा बाई की भक्ति पूर्ण नहीं थी, फिर भी देखिए कि उन्हें कितनी उपलब्धियाँ मिलीं। वह जहर पीकर भी नहीं मरीं और उनके इष्टदेव उन्हें साक्षात दर्शन देते थे। लेकिन सतगुरु की शरण में आने के बाद उस भोली आत्मा को पता चला कि तीनों देवों, ब्रह्म और परब्रह्म की भक्ति करने से भी “मोक्ष” नहीं मिल सकता।
क्योंकि जब तक उस पारब्रह्म परमेश्वर की सही “शास्त्रानुकूल साधना” किसी पूर्ण संत से नहीं मिलती, तब तक हमें मुक्ति नहीं मिल सकती। भले ही हमें मीरा बाई की तरह सांसारिक उपलब्धियाँ या चमत्कार क्यों न प्राप्त हों।
इसलिए, आप सभी भक्त समाज से प्रार्थना है कि अपनी भक्ति की किसी उपलब्धि या चमत्कार से गुमराह न हों। बहन मीरा की तरह इस सतज्ञान को समझकर सर्व हितकारी फ़ैसला लें और अपना कल्याण करें।
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