ब्रह्मा, विष्णु तथा शिवजी स्वयं को नाशवान बताते हैं। – देवी महापुराण


ब्रह्मा, विष्णु और शिव स्वयं को नाशवान बताते हैं – देवी महापुराण

यह लेख श्री देवी महापुराण में वर्णित एक संवाद पर आधारित है, जिसमें त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि वे नाशवान हैं और उनकी माता देवी दुर्गा हैं। यह ज्ञान सृष्टि के वास्तविक रचयिता और इन देवताओं के जन्म-मरण के रहस्य को उजागर करता है।

ब्रह्मांड की रचना पर प्रश्न

यह कथा राजा परीक्षित और श्री व्यास जी के संवाद से शुरू होती है। राजा परीक्षित ने व्यास जी से ब्रह्मांड की रचना के बारे में पूछा। व्यास जी ने बताया कि यह प्रश्न उन्होंने भी नारद जी से पूछा था और अब वही कथा वे राजा को सुना रहे हैं।

व्यास जी ने नारद जी से पूछा था कि ब्रह्मांड का रचयिता कौन है। कोई शंकर को, कोई विष्णु को, कोई ब्रह्मा को और कोई देवी भवानी को परमशक्ति मानता है।


ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म

नारद जी ने कहा कि यही संदेह उनके मन में भी था, और वे अपने पिता ब्रह्मा जी के पास गए थे।

ब्रह्मा जी ने बताया कि एक समय चारों ओर केवल जल ही जल था। उनकी उत्पत्ति कमल से हुई थी। वे कमल की कर्णिका पर बैठकर विचार करने लगे कि वे कैसे उत्पन्न हुए और उनका रक्षक कौन है। कमल के डंठल से नीचे उतरने पर उन्हें भगवान विष्णु योगनिद्रा में सोते हुए मिले।

ब्रह्मा जी ने भगवती योगनिद्रा का स्तवन किया। तब वे विष्णु के शरीर से निकलकर आकाश में विराजमान हो गईं। इसके बाद विष्णु जी जाग गए और उसी समय रुद्र (शंकर) भी प्रकट हो गए।

तब देवी ने हम तीनों को कहा, “ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर! तुम सावधान होकर अपने-अपने कार्य में लग जाओ। सृष्टि, स्थिति और संहार तुम्हारे कार्य हैं।


त्रिदेवों का दिव्यलोक भ्रमण

इसके बाद देवी ने तीनों देवताओं को एक विमान में बैठकर अपने सामर्थ्य से अद्भुत दृश्य दिखाने का वादा किया।

  • ब्रह्मलोक: विमान उन्हें पहले एक अन्य ब्रह्मलोक में ले गया, जहाँ एक दूसरे ब्रह्मा विराजमान थे। उन्हें देखकर विष्णु और शंकर आश्चर्यचकित हो गए।
  • कैलास: फिर विमान कैलाश पर्वत पर पहुँचा, जहाँ त्रिनेत्रधारी भगवान शंकर निकले।
  • वैकुंठ: इसके बाद विमान वैकुंठ लोक में पहुँचा, जहाँ भगवती लक्ष्मी के साथ कमललोचन श्रीहरि (विष्णु) विराजमान थे।
  • अमृत सागर: अंत में, विमान उन्हें अमृत के समान मीठे जल वाले समुद्र के एक मनोहर द्वीप पर ले गया, जहाँ एक दिव्य रमणी बैठी थीं।

यह रमणी कोई और नहीं, बल्कि भगवती भुवनेश्वरी थीं। विष्णु जी ने उन्हें पहचान लिया और बताया कि ये ही जगदम्बिका हैं, हम सबकी आदि कारण हैं और ये ही महाविद्या, महामाया, विश्वेश्वरी, वेदगर्भा और शिवा कहलाती हैं।


देवी की स्तुति और त्रिदेवों की स्वीकारोक्ति

विष्णु जी ने भगवती की स्तुति करते हुए कहा:

“हे मात! आप शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हींसे उद्भासित हो रहा है। मैं, ब्रह्मा और शंकर – हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है। केवल तुम्हीं नित्य हो, जगतजननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो।”

भगवान शंकर ने भी स्वीकार किया:

“देवी! यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट हुए हैं, तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ – अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो।”

इन उद्धरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव अविनाशी नहीं हैं, बल्कि उनका भी जन्म और मृत्यु होता है। इन तीनों को जन्म देने वाली देवी दुर्गा ही हैं, और वे स्वयं देवी महापुराण में इस बात को स्वीकार करते हैं।

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