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मक्का में शैतान की मूर्ति और अंधविश्वास पर सवाल
यह लेख एक मुस्लिम युवक के सवाल के जवाब में लिखा गया है, जिसमें उसने हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा पर सवाल उठाए थे। इस लेख में इस्लाम की मान्यताओं, हदीस और कुरान के आधार पर मक्का में ‘शैतान को पत्थर मारना’ की प्रथा पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है और इसे एक प्रकार की मूर्ति पूजा बताया गया है।
शैतान का परिचय
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, शैतान को ‘इब्लीस’ या ‘अज़ाज़ील’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ ‘ईश्वर की फटकार’ है। यह एक जिन्न था जिसे अल्लाह ने फरिश्तों का सरदार बनाया था।
- परिवार: शैतान के पिता का नाम खबीस है, जिसका चेहरा सिंह जैसा है। माँ का नाम निलबीस है, जिसका चेहरा शेरनी जैसा है। पत्नी का नाम तरतबा है।
- पुत्र और उनके कार्य: शैतान के पाँच पुत्र हैं, जिनके नाम और कार्य इस प्रकार हैं:
- ताबर: लोगों के मन में विकार, भ्रम और व्याकुलता पैदा करता है।
- आवर: दुष्कर्मों के लिए प्रेरित करता है।
- मसौत: झूठ बोलने और धोखा देने की प्रेरणा देता है।
- वासिम: परिवारों और समाज में झगड़े और दंगे करवाता है।
- जकनबार: बाजारों में विवाद और अफवाहें फैलाता है।
शैतान का निवास स्थान और पत्थर मारने का रिवाज
एक हदीस के अनुसार, शैतान का सिंहासन समुद्र में है। यह बात ‘सही मुस्लिम’ की किताब 39, हदीस 6754 में बताई गई है।
‘अखबार मक्का’ नामक किताब में इतिहासकार अल अजरकी ने मक्का के इतिहास का वर्णन किया है। इसमें शैतान को पत्थर मारने की परंपरा का भी उल्लेख है, जो हजारों साल पुरानी है। हालांकि, कुरान में शैतान को पत्थर मारने का कोई आदेश नहीं दिया गया है। सूरा अल-आराफ 7:28 में कहा गया है कि जब लोग कोई अनैतिक काम करते हैं, तो वे कहते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों को ऐसा करते हुए पाया है।
इस परंपरा के पीछे एक कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार जब इब्राहिम ने शैतान को देखा, तो जिब्राइल ने उनसे उसे पत्थर मारकर भगाने को कहा। इब्राहिम ने ऐसा ही किया और तभी से यह रिवाज शुरू हो गया।
शैतान का बढ़ता कद
सऊदी सरकार ने 2004 में शैतान के छोटे स्तंभ को तोड़कर एक नया और बड़ा स्तंभ बनवाया, जिसकी लंबाई 26 मीटर (85 फुट) है। इस स्तंभ को अरबी में ‘अल-जमरात’ कहा जाता है। इस पर पत्थर मारने के लिए एक पुल भी बनाया गया है।
यह लेख व्यंग्यात्मक लहजे में कहता है कि जैसे-जैसे मुसलमानों में शैतानी प्रवृत्ति बढ़ रही है, वैसे ही शैतान के स्तंभ का कद भी बढ़ गया है।
शैतान को पत्थर मारने की विधि
शैतान को पत्थर मारने की विधि को अरबी में ‘रमी अल-जमरात’ कहा जाता है। इसके लिए कुछ नियम हैं:
- जिल हज की 10 तारीख को हाजी मुजदलीफा से निकलकर मीना के रास्ते से पत्थर इकट्ठा करते हैं।
- पत्थर न तो बहुत बड़े होने चाहिए और न बहुत छोटे।
- सुन्नत के अनुसार, सात पत्थर जमा करके रखे जाते हैं।
- मीना आने पर सूर्योदय से पहले पत्थर नहीं मारने चाहिए।
- हाजी जमरात पर सात पत्थर मारते हैं और शैतान पर धिक्कार करने के लिए जूते और अन्य गंदी चीजें भी फेंकते हैं।
हदीस में बताया गया है कि पत्थर मारने का आदेश इमाम (मुखिया) के आदेश पर ही होता है।
पत्थर मारने से हुई दुर्घटनाएं
शैतान को पत्थर मारने की इस रस्म के दौरान अक्सर धक्का-मुक्की और भगदड़ मच जाती है, जिससे कई लोगों की मौत हो जाती है। एक हदीस में बताया गया है कि मुहम्मद साहब के समय एक महिला द्वारा पत्थर फेंकने से दूसरी महिला का गर्भपात हो गया था। तब रसूल ने उस बच्चे के लिए पचास भेड़ें मुआवजे के रूप में दीं और लोगों को पत्थर मारना बंद करने को कहा।
कोसने से शैतान शक्तिशाली होता है
अरब में यह रिवाज था कि जब कोई काम बिगड़ जाता था, तो लोग शैतान को कोसने लगते थे। एक हदीस में कहा गया है कि रसूल ने एक बार एक व्यक्ति को ऐसा करते हुए सुना। रसूल ने कहा कि ऐसा कहने से शैतान और बड़ा हो जाता है। इसके बजाय, ‘बिस्मिल्लाह’ कहने से शैतान एक मच्छर से भी छोटा हो जाता है।
इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि मुसलमान शैतान को कोसकर उसकी शक्ति बढ़ा रहे हैं, यही कारण है कि इस्लामी देशों में शांति नहीं है। लेख के अनुसार, इस्लाम की मान्यताएं, रिवाज और परंपराएं तर्कहीन और अंधविश्वास पर आधारित हैं।
लेख का निष्कर्ष यह है कि जब मुसलमान एक स्तंभ में शैतान का निवास मानते हैं, तो यह एक प्रकार की मूर्ति पूजा ही है। इसलिए, उन्हें हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर कटाक्ष करने का कोई अधिकार नहीं है।