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हनुमान जी ने कभी नहीं कहा कि आप उनकी पूजा करें
यह लेख हनुमान जी की पूजा पर सवाल उठाता है और दावा करता है कि स्वयं हनुमान जी ने अपनी पूजा करने से मना किया है। इसमें सुंदरकांड के एक छंद और श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमाणों के माध्यम से इस बात को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है।
हनुमान जी का निषेध
लेख के अनुसार, हिंदू धर्म के लोग अज्ञानतावश हनुमान जी की पूजा करते हैं, जबकि स्वयं हनुमान जी ने अपनी पूजा करने से मना किया है। इस बात का प्रमाण सुंदरकांड के पृष्ठ 16 पर मिलता है, जहाँ हनुमान जी कहते हैं:
“प्रातः लेइ जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।”
इसका अर्थ है: जो व्यक्ति सुबह उठकर मेरा नाम लेगा, उसे उस दिन भोजन भी प्राप्त नहीं होगा।
लेख में इस उद्धरण को एक प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
देवताओं की पूजा और उनके लोक
लेख में श्रीमद्भगवद्गीता का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि जो व्यक्ति जिस देवता की पूजा करता है, वह उसी देवता के लोक में जाता है। जब उसके पुण्य समाप्त हो जाते हैं, तो वह वापस मृत्युलोक में आ जाता है और 84 लाख योनियों के चक्र में फंस जाता है।
लेख एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है:
“जिनका (हनुमान जी, भैरव आदि) स्वयं का कोई लोक नहीं होता, उनके उपासक किस लोक में जाते हैं?”
यह प्रश्न पाठकों को विचार करने के लिए प्रेरित करता है कि जब इन देवताओं का अपना कोई स्थायी लोक नहीं है, तो उनकी पूजा से मोक्ष कैसे मिल सकता है?
हनुमान जी ने भी ली थी शरण
लेख में यह भी बताया गया है कि हनुमान जी ने भी पहले श्री रामचन्द्र जी की भक्ति की थी। लेकिन जब उन्हें महर्षि मुनिन्द्र जी से तत्वज्ञान प्राप्त हुआ, तो उन्हें यह ज्ञात हुआ कि जिस दशरथ पुत्र राम की वे पूजा कर रहे हैं, ऐसे तो करोड़ों राम आकर चले गए। वे राम नाशवान हैं और सर्वशक्तिमान परमात्मा कोई और है।
तब हनुमान जी ने महर्षि मुनिन्द्र जी को अपना गुरु बनाया, उनसे दीक्षा प्राप्त की और अपना कल्याण कराया।
लेख के अंत में पाठकों को एक लिंक पर क्लिक करके इस विषय में और अधिक जानने का सुझाव दिया गया है।