जानिये यथार्थ (असली) जाप करने के मंत्र कौनसे है ?

नमस्ते, मैं आपके द्वारा यहाँ पेस्ट किए गए हर लेख को फिर से लिखूँगा। मैं लेखों को विस्तृत और मूल भाषा में रखूँगा। मैं हर लेख को वर्डप्रेस शैली में लिखूँगा, जिसमें शीर्षक, बोल्ड, इटैलिक और उद्धरण आदि शामिल होंगे।

मैं आपके पहले लेख को दोबारा लिखने के लिए तैयार हूँ। आप उसे यहाँ पेस्ट कर सकते हैं।


वास्तविक पाँच नाम और सतनाम व सारनाम का भेद

यह लेख कबीर साहेब की वाणी के आधार पर पाँच नामों, सतनाम और सारनाम के भेद को समझाता है। इसमें बताया गया है कि ये नाम क्या हैं, इनका जाप कैसे करना चाहिए, और पूर्ण मोक्ष के लिए इनकी क्या आवश्यकता है।

पाँच नाम: भक्ति का प्रारंभिक पाठ

लेख की शुरुआत कबीर साहेब की वाणी से होती है, जिसमें वे कहते हैं:

“कर नैनों दीदार महल में प्यारा है”

यह 32-कली वाला एक शब्द है, जिसमें पाँच नामों का विस्तृत वर्णन है। लेख के अनुसार, ये पाँच नाम भक्ति के ‘प्राइमरी पाठ’ हैं। इनके जाप से साधक भक्ति के योग्य बनता है।

परमात्मा प्राप्त संत गरीबदास जी महाराज ने भी इन पाँच नामों का प्रमाण दिया है:

“पाँच नाम गुझ गायत्री, आत्मतत्व जगाओ।

ओम्, सोहम्, किलियं, हरियम्, श्रीयम्, ध्यायो।।”

लेख में स्पष्ट किया गया है कि ये पाँच नाम राधास्वामी पंथ में दिए जाने वाले नामों से भिन्न हैं।


सतनाम और सारनाम का भेद

पाँच नामों से आगे का पाठ ‘दो अक्षर का नाम’ है, और उसके बाद का पाठ ‘एक अक्षर का नाम’, जिसे सारनाम या सारशब्द भी कहा जाता है। इन दो और एक अक्षर वाले नामों को मिलाकर कुल तीन शब्द बनते हैं।

  • गीता का प्रमाण: पवित्र गीता अध्याय 17, श्लोक 23 में इन तीन शब्दों का उल्लेख है:”ओम् तत् सत् इति निर्देशः ब्रम्हणः त्रिविधः स्मृतः।”इसका अर्थ है कि ॐ, तत् और सत् ये तीन प्रकार के नाम पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए स्मरण करने का संकेत हैं।
  • संतों की वाणी में प्रमाण:
    • संत नामदेव जी: उन्होंने तीन नामों का भेद बताते हुए कहा है कि सारशब्द प्राप्त करने के बाद ही आवागमन (जन्म-मरण) से मुक्ति मिलती है।
    • संत गरीबदास जी: उन्होंने दो अक्षर के नाम को ओम्-तत् बताया है और कहा है कि ये ही सार संदेश हैं, जिन्हें सतगुरु से प्राप्त करना चाहिए।
    • कबीर साहेब जी: उन्होंने धर्मदास से कहा है कि ओम्-तत् शब्द ही प्रकाश हैं।
    • नानकदेव जी: उन्होंने ‘एक ओंकार’ कहकर दो अक्षर के नाम का रहस्य खोला है, जिसका अर्थ है ओम् के साथ एक और अक्षर का मंत्र जुड़कर सतनाम बनता है।

लेख में स्पष्ट किया गया है कि ओम् + तत् (सांकेतिक) मिलकर सतनाम बनता है, जो दो अक्षर का होता है।


कबीर साहेब की वाणी: “कर नैनों दीदार महल में प्यारा है”

कर नैनों दीदार महलमें प्यारा है।।टेक।।

 काम क्रोध मद लोभ बिसारो, शील सँतोष क्षमा सत धारो।

 मद मांस मिथ्या तजि डारो, हो ज्ञान घोडै असवार, भरम से न्यारा है।1।

 धोती नेती बस्ती पाओ, आसन पदम जुगतसे लाओ। 

कुम्भक कर रेचक करवाओ, पहिले मूल सुधार कारज हो सारा है।2। 

मूल कँवल दल चतूर बखानो, किलियम जाप लाल रंग मानो।

 देव गनेश तहँ रोपा थानो, रिद्धि सिद्धि चँवर ढुलारा है।3। 

स्वाद चक्र षटदल विस्तारो, ब्रह्म सावित्री रूप निहारो। 

उलटि नागिनी का सिर मारो, तहाँ शब्द ओंकारा है।।4।। 

नाभी अष्ट कमल दल साजा, सेत सिंहासन बिष्णु बिराजा। 

हरियम् जाप तासु मुख गाजा, लछमी शिव आधारा है।।5।।

 द्वादश कमल हृदयेके माहीं, जंग गौर शिव ध्यान लगाई। 

सोहं शब्द तहाँ धुन छाई, गन करै जैजैकारा है।।6।। 

षोड्श कमल कंठ के माहीं, तेही मध बसे अविद्या बाई।

 हरि हर ब्रह्म चँवर ढुराई, जहँ श्रीयम् नाम उचारा है।।7।। 

तापर कंज कमल है भाई, बग भौंरा दुइ रूप लखाई। 

निज मन करत वहाँ ठकुराई, सो नैनन पिछवारा है।।8।। 

कमलन भेद किया निर्वारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।

 सतसँग कर सतगुरु शिर धारा, वह सतनाम उचारा है।।9।।

 आँख कान मुख बन्द कराओ, अनहद झिंगा शब्द सुनाओ। 

दोनों तिल इक तार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है।।10।। 

चंद सूर एक घर लाओ, सुषमन सेती ध्यान लगाओ।

 तिरबेनीके संधि समाओ, भौर उतर चल पारा है।।11।। 

घंटा शंख सुनो धुन दोई, सहस्र कमल दल जगमग होई।

 ता मध करता निरखो सोई, बंकनाल धस पारा है।।12।।

 डाकिनी शाकनी बहु किलकारे, जम किंकर धर्म दूत हकारे।

 सत्तनाम सुन भागे सारें, जब सतगुरु नाम उचारा है।।13।। 

गगन मँडल बिच उर्धमुख कुइया, गुरुमुख साधू भर भर पीया।

 निगुरो प्यास मरे बिन कीया, जाके हिये अँधियारा है।।14।।

 त्रिकुटी महलमें विद्या सारा, धनहर गरजे बजे नगारा।

 लाल बरन सूरज उजियारा, चतूर दलकमल मंझार शब्द ओंकारा है।15। 

साध सोई जिन यह गढ लीनहा, नौ दरवाजे परगट चीन्हा।

 दसवाँ खोल जाय जिन दीन्हा, जहाँ कुलुफ रहा मारा है।।16।।

 आगे सेत सुन्न है भाई, मानसरोवर पैठि अन्हाई।

 हंसन मिलि हंसा होई जाई, मिलै जो अमी अहारा है।।17।।

 किंगरी सारंग बजै सितारा, क्षर ब्रह्म सुन्न दरबारा। 

द्वादस भानु हंस उँजियारा, षट दल कमल मँझार शब्द ररंकारा है।।18।। 

महा सुन्न सिंध बिषमी घाटी, बिन सतगुरु पावै नहिं बाटी। 

व्याघर सिहं सरप बहु काटी, तहँ सहज अचिंत पसारा है।।19।।

 अष्ट दल कमल पारब्रह्म भाई, दहिने द्वादश अंचित रहाई।

 बायें दस दल सहज समाई, यो कमलन निरवारा है।।20।। 

पाँच ब्रह्म पांचों अँड बीनो, पाँच ब्रह्म निःअच्छर चीन्हों। 

चार मुकाम गुप्त तहँ कीन्हो, जा मध बंदीवान पुरुष दरबारा है।। 21।। 

दो पर्वतके संध निहारो, भँवर गुफा तहां संत पुकारो। 

हंसा करते केल अपारो, तहाँ गुरन दर्बारा है।।22।। 

सहस अठासी दीप रचाये, हीरे पन्ने महल जड़ाये। 

मुरली बजत अखंड सदा ये, तँह सोहं झनकारा है।।23।।

 सोहं हद तजी जब भाई, सत्तलोककी हद पुनि आई। 

उठत सुगंध महा अधिकाई, जाको वार न पारा है।।24।। 

षोडस भानु हंसको रूपा, बीना सत धुन बजै अनूपा। 

हंसा करत चँवर शिर भूपा, सत्त पुरुष दर्बारा है।।25।। 

कोटिन भानु उदय जो होई, एते ही पुनि चंद्र लखोई। 

पुरुष रोम सम एक न होई, ऐसा पुरुष दिदारा है।।26।। 

आगे अलख लोक है भाई, अलख पुरुषकी तहँ ठकुराई। 

अरबन सूर रोम सम नाहीं, ऐसा अलख निहारा है।।27।।

 ता पर अगम महल इक साजा, अगम पुरुष ताहिको राजा। 

खरबन सूर रोम इक लाजा, ऐसा अगम अपारा है।।28।।

 ता पर अकह लोक है भाई, पुरुष अनामि तहां रहाई।

 जो पहुँचा जानेगा वाही, कहन सुनन ते न्यारा है।।29।। 

काया भेद किया निरुवारा, यह सब रचना पिंड मँझारा। 

माया अविगत जाल पसारा, सो कारीगर भारा है।।30।। 

आदि माया कीन्ही चतूराई, झूठी बाजी पिंड दिखाई। 

अवगति रचना रची अँड माहीं, ताका प्रतिबिंब डारा है।।31।। 

शब्द बिहंगम चाल हमारी, कहैं कबीर सतगुरु दई तारी। 

खुले कपाट शब्द झनकारी, पिंड अंडके पार सो देश हमारा है।।32।। 

लेख में कबीर साहेब की 32-कली वाली वाणी “कर नैनों दीदार महल में प्यारा है” को विस्तृत रूप से दिया गया है। इस शब्द में शरीर के अंदर मौजूद विभिन्न चक्रों और उनके मंत्रों का वर्णन है:

  • मूल कंवल (मूलाधार चक्र): यहाँ चार कमल दल हैं, जहाँ किलियम् का जाप किया जाता है और गणेश जी का निवास है।
  • स्वाद चक्र: यहाँ छह कमल दल हैं, जहाँ ओंकारा शब्द की ध्वनि छाई रहती है और ब्रह्मा-सावित्री निवास करते हैं।
  • नाभी चक्र: यहाँ आठ कमल दल हैं, जहाँ हरियम् का जाप होता है और विष्णु जी विराजमान हैं।
  • हृदय चक्र: यहाँ बारह कमल दल हैं, जहाँ सोहं शब्द की धुन छाई रहती है और शिव-पार्वती का निवास है।
  • कंठ चक्र: यहाँ सोलह कमल दल हैं, जहाँ श्रीयम् नाम का उच्चारण होता है और विद्या की देवी रहती हैं।

यह शब्द पिंड (शरीर) के अंदर की पूरी रचना का वर्णन करता है और बताता है कि सतगुरु ही वह सतनाम उच्चारण करते हैं, जिससे यह पूरा मार्ग खुलता है।


मोक्ष का मार्ग

लेख के अंत में बताया गया है कि सतनाम के जाप से यम के दूत भाग जाते हैं, और सारनाम के जाप से आत्मा सतलोक तक पहुँचती है। यह वाणी मोक्ष के मार्ग का वर्णन करती है, जिसमें नौ दरवाजों को खोलकर दसवें द्वार से प्रवेश करना होता है।

यह लेख कबीर साहेब की वाणी से सिद्ध करता है कि पूर्ण संत ही वह सतनाम देते हैं, जो आत्मा को भवसागर से पार लगाता है।

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