दयानंद आत्मचरित – एक अधूरा सच-दयानन्द की पोल-खोल (भाग-09)


दयानंद आत्मचरित – एक अधूरा सच

यह लेख महर्षि दयानंद सरस्वती की जीवनी पर एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसमें उनके आत्मचरित और आर्य समाजियों द्वारा बताई गई जीवनी के बीच के विरोधाभासों को उजागर किया गया है। लेखक का दावा है कि दयानंद की जीवनी में कई बातें अधूरी और असत्य हैं, जो उनकी अज्ञानता और पाखंड को दर्शाती हैं।


1. दयानंद के जन्म की तिथि पर विरोधाभास

  • आर्य समाजियों के अनुसार: दयानंद का जन्म गुजरात के टंकारा गाँव में 12 फरवरी 1824 को हुआ था।
  • दयानंद के आत्मचरित के अनुसार: दयानंद ने 1876 में अपनी जीवनी लिखी और उसमें कहा कि उस समय उनकी उम्र 46 या 50 वर्ष है।

समीक्षा: लेखक इस विरोधाभास पर सवाल उठाता है। यदि दयानंद का जन्म 1824 में हुआ था, तो 1876 में उनकी उम्र 52 वर्ष होनी चाहिए थी। लेकिन दयानंद खुद अपनी उम्र को लेकर अनिश्चित थे। लेखक पूछता है कि जब दयानंद को ही अपनी उम्र का सही-सही पता नहीं था, तो आर्य समाजी किस आधार पर इतनी निश्चितता से 12 फरवरी 1824 की तारीख बताते हैं?


2. बचपन का नाम और माता-पिता की पहचान

  • आर्य समाजियों के अनुसार: उनके बचपन का नाम मूलजी दयाराम या मूलशंकर था। उनके पिता का नाम अंबाशंकर या करशनजी लालजी त्रिवेदी और माता का नाम यशोदाबाई था।
  • दयानंद के आत्मचरित के अनुसार: दयानंद ने अपनी पहचान, माता-पिता या परिवार के सदस्यों के नाम बताने से साफ इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि ऐसा करने से वे फिर से उसी सांसारिक अशांति के जाल में फंस जाएंगे, जिससे उन्होंने खुद को मुक्त किया था।

समीक्षा: लेखक इस बात पर कटाक्ष करता है कि दयानंद ने खुद अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन आर्य समाजी उनके माता-पिता के नाम और बचपन के नाम को लेकर इतने निश्चित कैसे हैं? वह व्यंग्य करता है कि दयानंद के नियोग सिद्धांत के अनुसार, एक स्त्री के 11 पति हो सकते हैं, तो उनके दो बाप क्यों नहीं हो सकते?


3. पिता से घृणा और माता से प्रेम का रहस्य

  • दयानंद के आत्मचरित के अनुसार: दयानंद के परिवार में शैव मत को माना जाता था। उनके पिता उन्हें शिवलिंग की पूजा करने और व्रत रखने के लिए कठोर आदेश देते थे। लेकिन उनकी माता स्वास्थ्य के डर से उन्हें रोकती थीं और चोरी से भोजन करवा देती थीं। एक शिवरात्रि के दिन जब उनके पिता को पता चला कि दयानंद ने व्रत भंग किया है, तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्हें बुरा-भला कहा। इस बात को लेकर उनके माता-पिता के बीच अक्सर विवाद होता रहता था।

समीक्षा: लेखक का कहना है कि दयानंद बचपन से ही हठी और नास्तिक प्रवृत्ति के थे। वह आरोप लगाता है कि दयानंद को अपने पिता से इसलिए घृणा हुई, क्योंकि वे उन्हें धर्म के मार्ग पर ला रहे थे और दयानंद भूख बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। इसी घृणा ने उन्हें नास्तिक बना दिया।

लेख में उपनिषद के एक वचन का हवाला दिया गया है:

“अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः… जङ्घन्यमानाः परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः ॥”

इसका अर्थ है कि अज्ञानी व्यक्ति खुद को बुद्धिमान मानकर उस तरह भटकते हैं, जैसे अंधे के पीछे अंधे चलते हैं। लेखक इसे दयानंद पर बिल्कुल सटीक बैठता हुआ बताता है।

वह यह भी कहता है कि दयानंद ने कभी ईश्वर की स्तुति नहीं की, क्योंकि उन्होंने कहा था कि जब तक महादेव उन्हें दर्शन नहीं देंगे, वे उनकी आराधना नहीं करेंगे। लेखक पूछता है कि क्या दयानंद ने निराकार ब्रह्म के दर्शन कर लिए थे?


4. गृह त्याग का रहस्य

  • आर्य समाजियों के अनुसार: दयानंद ने अपनी छोटी बहन और चाचा की हैजे से हुई मृत्यु के कारण जीवन-मरण के अर्थ पर चिंतन किया और सत्य की खोज में 1846 में घर छोड़ दिया। उनके माता-पिता उनका विवाह कराना चाहते थे, लेकिन वे विवाह नहीं करना चाहते थे।
  • दयानंद के आत्मचरित के अनुसार: दयानंद की छोटी बहन की मृत्यु 14 वर्ष की उम्र में हुई थी, और उसके बाद उनके चाचा की भी मृत्यु हो गई। इन घटनाओं के बाद उनके मन में मृत्यु का गहरा भय बैठ गया। वे यह सोचने लगे कि किस जगह जाकर वे मृत्यु से बच सकते हैं। इसी डर से उन्होंने बीस वर्ष की उम्र में किसी को बताए बिना घर छोड़ दिया।

समीक्षा: लेखक का कहना है कि दयानंद गृह त्याग का कारण सत्य की खोज नहीं, बल्कि मृत्यु का भय था। वह कहता है कि दयानंद जैसे व्यक्ति, जो मृत्यु जैसे सत्य को नहीं समझ सके और उससे भागते रहे, वे बुद्धिमान नहीं हो सकते। जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है, और दयानंद इस सत्य से भागकर जिंदगी भर भटकते रहे, लेकिन अंत में वे मृत्यु से बच नहीं पाए।

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