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परस्त्री से संबंध: एक विनाशकारी पथ
यह लेख परस्त्री से संबंध रखने के खतरे पर गहरा प्रकाश डालता है, जिसमें महान संतों, जैसे कबीर साहेब और तुलसीदास जी, की वाणियों का उपयोग करके इसके विनाशकारी परिणामों को समझाया गया है। यह लेख चेतावनी देता है कि पराई स्त्रियों को बुरी नजर से देखना और उनके बारे में मन में बुरे ख्याल लाना व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर सकता है।
मोहक नारी और पुरुष का कर्तव्य
कबीर साहेब जी ने कहा है कि भगवान ने नारियों को मोहक बनाया है। पुरुषों का कर्तव्य है कि वे उनके मोह में न उलझकर अपने काम पर ध्यान दें। जिसने भी स्त्री के रूप-जाल और मोहिनी अदाओं पर अपने मन और नैन को भटकाया है, उसका नाश निश्चित है।
तुलसीदास जी ने भी इस बात को एक दोहे में स्पष्ट किया है:
“नौनों काजर देह के, गाढै बांधे केस।
हाथों मेंहदी लाय के, बाधिनी खाय देस।।”
इस दोहे का अर्थ है कि स्त्री आँखों में काजल लगाकर, बालों को अच्छी तरह संवारकर और हाथों में मेंहदी लगाकर अपने रूप-सौंदर्य से पूरे संसार को अपने बंधन में बाँध लेती है।
परनारी पर कुदृष्टि का अंजाम
कबीर साहेब जी ने पराई स्त्री को एक पैनी छुरी के समान बताया है। उन्होंने एक दोहे में इसके खतरनाक परिणाम को समझाया है:
“परनारी पैनी छुरी, मति कोई करो प्रसंग।
रावन के दस शीश गये, परनारी के संग।।”
इस बात को हर कोई जानता है कि रावण ने पराई स्त्री, यानी भगवान राम की पत्नी सीता, का हरण किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि दस सिर वाला रावण अपने पूरे वंश के साथ नष्ट हो गया। कबीरदास जी ने अपने इस दोहे में यही स्पष्ट किया है कि जो भी परनारी पर बुरी दृष्टि डालता है, उसका अंत निश्चित है।
इतिहास और पुराणों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। देवी अहिल्या पर बुरी नजर डालने के कारण देवराज इंद्र को भी अपना सिंहासन खोना पड़ा था। आज के समय में भी, परस्त्री से संबंध के कारण कई परिवार तबाह हो जाते हैं।
स्त्रियों से दूरी और सम्मान
कबीर साहेब जी ने अपने एक और दोहे में पराई स्त्री को पैनी छुरी के समान बताया है, जिससे बचना बहुत कठिन है:
“परनारी पैनी छुरी, बिरला बाचै कोय।
कबहूं छेड़ि न देखिए, हंसि हंसि खावे रोय।।”
इस दोहे का अर्थ है कि पराई स्त्री एक पैनी छुरी है, जिससे कोई बिरला ही बच पाता है। यह छुरी इतनी तेज है कि यह कभी हँसकर, तो कभी रोकर व्यक्ति को अपने जाल में फँसा लेती है और उसका जीवन नष्ट कर देती है।
इसलिए, ऐसी स्त्रियों से हमेशा दूर रहना चाहिए। उन पर न तो अपनी निगाहें जमानी चाहिए और न ही उनसे अधिक हँसी-मज़ाक या छेड़छाड़ करनी चाहिए, क्योंकि अंत में इसका परिणाम आपको ही भुगतना पड़ेगा।
वासना नहीं, सम्मान का भाव
कबीर साहेब जी अपने दोहों के माध्यम से स्त्रियों का आदर और सम्मान करने की बात कहते हैं। वे कहते हैं कि पराई स्त्री तभी आपके लिए संकट का कारण बन सकती है, जब आपके मन में उसके प्रति वासना या बुरे विचार हों।
तुलसीदास जी ने भी इस बात का समर्थन किया है:
“नारी सेती नेह, बुधि विवेक सबही हरै।
वृथा गॅंवावै देह, कारज कोई न सारै।।”
इसका अर्थ है कि स्त्री के प्रति वासनात्मक बुद्धि रखने से व्यक्ति की शक्ति, बुद्धि और विवेक नष्ट हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति कोई भी अच्छा काम नहीं कर पाता और अपना जीवन व्यर्थ गँवा देता है। इसलिए, स्त्रियों के प्रति मन में केवल आदर और सम्मान का भाव रखना चाहिए।