महर्षि मुर्खानन्द और झुठार्थ प्रकाश की पोल खोल – भाग-04


पुनर्विवाह और नियोग (भाग-2)

यह लेख महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के चौथे समुल्लास में वर्णित ‘नियोग’ प्रथा पर आधारित है। यह पुनर्विवाह के विकल्प के रूप में प्रस्तावित एक प्रथा है, जिसका उद्देश्य कुल की परंपरा को जारी रखना है।

नियोग के नियम और शर्तें

लेख के अनुसार, दयानंद जी ने नियोग के कुछ और नियम बताए हैं:

  • अधिक संतानें: दयानंद के अनुसार, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण के स्त्री-पुरुषों को 10 से अधिक संतानें नहीं पैदा करनी चाहिए, क्योंकि अधिक संतानें कमजोर और कम बुद्धि वाली होती हैं।
  • सभी के लिए नियोग: नियोग केवल विधवा और विधुर के लिए ही नहीं है, बल्कि विवाहित पति और पत्नी भी इसका लाभ उठा सकते हैं।
  • विवाह के बावजूद नियोग:
    • यदि पति व्यापार के लिए 3 साल, विद्या के लिए 6 साल या धर्म के लिए 8 साल विदेश गया हो, तो पत्नी नियोग कर सकती है।
    • यदि किसी पुरुष को संतान नहीं हो रही है, तो वह 8वें साल में, यदि संतान होकर मर जाए तो 10वें साल में, और यदि केवल कन्याएं हों तो 11वें साल में नियोग कर सकता है।
  • पति-पत्नी की अनुमति: एक पुरुष अप्रिय बोलने वाली पत्नी को छोड़कर या एक दीर्घ रोगी पति होने पर, उसकी पत्नी भी दूसरे पुरुष से नियोग कर सकती है।
  • अन्य शर्तें:
    • नियोग अपने ही वर्ण या उच्च वर्ण में होना चाहिए।
    • एक स्त्री 10 पुरुषों तक और एक पुरुष 10 स्त्रियों तक से नियोग कर सकता है।
    • यदि कोई 10वें गर्भ से अधिक समागम करता है, तो उसे निंदित और कामी माना जाता है।
    • विवाहित पुरुष किसी कुंवारी कन्या से और विवाहित स्त्री किसी कुंवारे पुरुष से नियोग नहीं कर सकती।
    • यदि पत्नी गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए, या यदि पुरुष दीर्घ रोगी हो और स्त्री से न रहा जाए, तो वे नियोग कर सकते हैं, लेकिन व्यभिचार या वेश्यागमन नहीं करना चाहिए।

नियोग प्रथा का आलोचनात्मक विश्लेषण

लेखक इन सभी नियमों का तथ्यपरक विश्लेषण करते हुए उन्हें हास्यास्पद, बचकाना और मूर्खतापूर्ण बताता है।

  • पतिव्रत/स्त्रीव्रत धर्म का विरोधाभास: दयानंद ने कहा है कि पुनर्विवाह से पतिव्रत धर्म नष्ट हो जाता है, लेकिन 10 गैर पुरुषों से यौन संबंध बनाने से वह सुरक्षित रहता है। लेखक इस तर्क पर सवाल उठाता है कि आखिर ऐसा कैसा पतिव्रत धर्म है?
  • पुरुष की कामेच्छा: यदि पुरुष संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसकी कामेच्छा नहीं है। लेखक पूछता है कि यदि पत्नी नियोग करती है, तो पुरुष अपनी काम तृप्ति कैसे पूरी करेगा?
  • कन्या जन्म का मुद्दा: नियोग प्रथा में हर जगह केवल पुत्रोत्पत्ति की बात की गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि कन्या जन्म होने पर क्या नियम होंगे।
  • वैज्ञानिक अज्ञानता: दयानंद ने कहा है कि बार-बार कन्याएं होने पर पुरुष नियोग कर सकता है, लेकिन यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव में लिंग का निर्धारण पुरुष द्वारा होता है, न कि स्त्री द्वारा। इससे दयानंद का वैज्ञानिक ज्ञान अधूरा प्रतीत होता है।
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