जानिये तीनों देवताओं की भक्ति करने वालो को राक्षस, मनुष्यों में नीच, मूर्ख क्यो कहा गया है ?


तीनों देवताओं की भक्ति करने वाले राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं।

यह लेख श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध करता है कि तीनों देवताओं (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव) की भक्ति करने वाले व्यक्ति राक्षसी प्रवृत्ति के होते हैं। इसमें कई ऐतिहासिक कथाओं और घटनाओं के माध्यम से इस सत्य को स्पष्ट किया गया है।

गीता का प्रमाण

लेख की शुरुआत में ही गीता अध्याय 7, श्लोक 12 से 15 और अध्याय 9, श्लोक 20 से 23 का हवाला दिया गया है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि जो लोग तीनों गुणों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति करते हैं, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच और मूर्ख होते हैं। ऐसे लोगों को न तो पूर्ण मोक्ष मिलता है और न ही उनका सुख स्थायी होता है।

लेख में धर्मदास और कबीर साहेब के बीच हुए संवाद का वर्णन है, जिसमें कबीर साहेब ने इन तीनों देवताओं के भक्तों की दशा को प्रमाणित करने के लिए कुछ घटनाओं का उल्लेख किया है।

1. रजगुण ब्रह्मा के उपासकों का चरित्र: हिरण्यकशिपु की कहानी

हिरण्यकशिपु एक ब्राह्मण राजा था, जिसे भगवान विष्णु (सतगुण) से ईर्ष्या थी। उसने रजगुण ब्रह्मा जी की भक्ति करके उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकशिपु ने ऐसा वरदान माँगा जिससे वह अमर हो सके:

  • न सुबह मरूँ न शाम,
  • न भीतर मरूँ न बाहर,
  • न दिन मरूँ न रात,
  • न बारह महीने में मरूँ,
  • न आकाश में मरूँ न धरती पर।

ब्रह्मा जी ने “तथास्तु” कह दिया। इसके बाद, हिरण्यकशिपु ने खुद को अमर मान लिया और लोगों से केवल अपना नाम जपने को कहने लगा। जो भी विष्णु का नाम लेता, वह उसे मार देता। उसने अपने ही पुत्र प्रहलाद को भी बहुत सताया, क्योंकि वह विष्णु की भक्ति करता था।

इस कथा का भावार्थ: रजगुण ब्रह्मा का भक्त राक्षस कहलाया और अंत में उसकी मृत्यु अत्यंत बुरी हुई। इससे यह सिद्ध होता है कि रजगुण ब्रह्मा की भक्ति करने वाले राक्षस प्रवृत्ति के होते हैं।


2. तमगुण शिव के उपासकों का चरित्र: रावण और भस्मासुर की कहानी

  • रावण की कहानी: लंका के राजा रावण ने तमगुण शिव की भक्ति की। उसने अपनी शक्ति से तैंतीस करोड़ देवताओं को कैद कर लिया था और माता सीता का अपहरण भी किया। उसका अंत और सर्वनाश जग जाहिर है। तमगुण शिव का उपासक रावण राक्षस कहलाया और निंदा का पात्र बना।
  • भस्मासुर की कहानी: भस्मासुर भी भगवान शिव (तमोगुण) का उपासक था। उसने बारह साल तक शिव जी की घोर तपस्या की। जब शिव जी प्रसन्न हुए, तो भस्मासुर ने उनसे भष्मकड़ा माँगा, जिससे वह जिसे भी छूता, वह भस्म हो जाता। शिव जी ने वचनबद्ध होकर उसे वह कड़ा दे दिया।

कड़ा मिलते ही भस्मासुर ने शिव जी को ही भस्म करने के लिए उनका पीछा करना शुरू कर दिया, क्योंकि वह पार्वती को अपनी पत्नी बनाना चाहता था। शिव जी डरकर भागने लगे।

  • विचारणीय तथ्य: यदि शिव जी अविनाशी होते, तो वे मृत्यु के भय से नहीं भागते।
  • यदि वे अंतर्यामी होते, तो वे भस्मासुर के मन के बुरे विचार पहले ही जान जाते।

इससे सिद्ध होता है कि शिव जी न तो अविनाशी हैं और न ही अंतर्यामी। अपनी रक्षा के लिए उन्होंने परम अक्षर ब्रह्म को पुकारा, और परमेश्वर ने पार्वती का रूप धारण कर भस्मासुर को नाच नचाकर भस्म किया। इस प्रकार, भस्मासुर अपने बुरे कर्मों के कारण राक्षस कहलाया।


3. सतगुण विष्णु के उपासकों का चरित्र: कुंभ मेले की घटना

लेख में हरिद्वार के कुंभ मेले की एक घटना का वर्णन है, जहाँ सतगुण विष्णु के उपासक वैष्णव और तमगुण शिव के उपासक नागा साधुओं के बीच पहले स्नान करने को लेकर झगड़ा हो गया। इस झगड़े में लगभग 25 हजार साधु लड़कर मारे गए। उन्होंने तलवारों और छुरों से एक-दूसरे की जान ले ली।

सूक्ष्मवेद में कहा गया है:

तीर तुपक तलवार कटारी, जमधड़ जोर बधावैं हैं।

हर पैड़ी हर हेत नहीं जाना, वहाँ जा तेग चलावैं हैं।।

काटैं शीश नहीं दिल करुणा, जग में साध कहावैं हैं।

जो जन इनके दर्शन कूं जावैं, उनको भी नरक पठावैं हैं।।

इन सभी घटनाओं से यह प्रमाणित होता है कि तीनों देवताओं की भक्ति करने वाले व्यक्ति राक्षस स्वभाव के होते हैं और वे मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं।

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