जानिये अविनाशी (जिसका नाश ना हो) परमात्मा कौन है ?


अविनाशी परमात्मा कौन है?

यह लेख परमात्मा के अविनाशी स्वरूप की पहचान पर केंद्रित है, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमाणों का उपयोग करके यह सिद्ध किया गया है कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और ब्रह्म नाशवान हैं और वे परमात्मा नहीं हैं। लेख में उस अविनाशी परमात्मा की पहचान भी बताई गई है जो इन सभी से परे है


ब्रह्मा, विष्णु और शंकर नाशवान क्यों हैं?

प्रश्न यह है कि क्या ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और ब्रह्म परमात्मा हैं?

उत्तर है: नहीं।

लेख के अनुसार, परमात्मा को अजन्मा (जिसका कभी जन्म न हुआ हो), अजर और अमर कहा जाता है। चूंकि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के माता-पिता हैं, इसलिए वे अविनाशी नहीं हो सकते।

इसके अलावा, स्वयं ब्रह्म भी नाशवान है। इस बात का प्रमाण श्रीमद्भगवद्गीता में मिलता है:

  • गीता अध्याय 2, श्लोक 12, अध्याय 4, श्लोक 5, और अध्याय 10, श्लोक 2 में, गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) ने स्वयं कहा है कि मेरी उत्पत्ति हुई है, मैं जन्मता और मरता हूँ, अर्जुन, मेरे और तेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, मैं भी नाशवान हूँ।
  • गीता अध्याय 2, श्लोक 17 में भी कहा गया है कि अविनाशी उसे ही जानना चाहिए जिसे कोई मार नहीं सकता और जिसने सभी की रचना की है।

अविनाशी परमात्मा की पहचान

जब यह सिद्ध हो जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और ब्रह्म परमात्मा नहीं हैं, तो यह प्रश्न उठता है कि अविनाशी परमात्मा कौन है?

गीता अध्याय 15, श्लोक 16-17 में तीन पुरुषों (प्रभु) का वर्णन है:

  1. क्षर पुरुष: यह गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) है, जो 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है।
  2. अक्षर पुरुष: यह सात शंख ब्रह्मांडों का स्वामी है।
  3. उत्तम पुरुष (पुरुषोत्तम): इन दोनों से अलग कोई अन्य है, जिसे परमात्मा कहा गया है। यह वही है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सभी का धारण-पोषण करता है और वास्तव में अविनाशी है।

गीता अध्याय 7, श्लोक 29 में कहा गया है कि जो साधक जरा, मृत्यु और दुखों से मुक्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, वे ‘तत् ब्रह्म’ को जानते हैं। अर्जुन ने गीता अध्याय 8, श्लोक 1 में पूछा कि ‘तत् ब्रह्म’ क्या है, तो गीता ज्ञान दाता ने श्लोक 3 में उत्तर दिया कि वह ‘परम अक्षर ब्रह्म’ है।

इस प्रकार, गीता अध्याय 15, श्लोक 17 में वर्णित ‘उत्तम पुरुष’ वही ‘परम अक्षर ब्रह्म’ है, जिसे पुरुषोत्तम कहा गया है।


शंका समाधान

गीता अध्याय 15, श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने स्वयं को पुरुषोत्तम कहा है। यह शंका पैदा कर सकता है। इस पर लेख में स्पष्ट किया गया है कि गीता ज्ञान दाता ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह अपने 21 ब्रह्मांडों में रहने वाले सभी प्राणियों से अधिक शक्तिशाली है, और लोकवेद के कारण उसे पुरुषोत्तम कहा गया है।

वास्तव में, पुरुषोत्तम (उत्तम पुरुष) तो क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष से भिन्न है। वह परम अक्षर ब्रह्म है, जो असंख्य ब्रह्मांडों का मालिक है, सर्व सृजनहार है, और वही वास्तव में अविनाशी परमात्मा है।

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