कबीर साहेब और स्वामी रामानन्द जी- कबीर साहेब की लीलाऐ


प्रभु कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को समझाया तत्वज्ञान

यह लेख पंडित स्वामी रामानंद जी और कबीर परमेश्वर (कविर्देव) के बीच हुए आध्यात्मिक संवाद का वर्णन करता है। इसमें बताया गया है कि कैसे कबीर साहेब ने एक अनोखी लीला करके स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया और बाद में उन्हें सृष्टि का गूढ़ ज्ञान देकर मोक्ष का मार्ग दिखाया।

गुरु-शिष्य की अनोखी लीला

पंडित स्वामी रामानंद जी वेदों और गीता के महान ज्ञाता माने जाते थे। 104 वर्ष की आयु में भी वे काशी में शास्त्र सम्मत साधना का प्रचार करते थे।

जब कबीर परमेश्वर (कविर्देव) पाँच वर्ष के हुए, तो गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए उन्होंने एक लीला रची। वे सुबह ब्रह्ममुहूर्त के अंधेरे में पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए, जहाँ स्वामी रामानंद जी नित्य स्नान करने आते थे। अंधेरे में रामानंद जी ने उन्हें देखा नहीं और उनके पैर की खड़ाऊ कबीर साहेब के सिर में लग गई।

कविर्देव एक छोटे बालक की तरह रोने लगे। रामानंद जी तुरंत झुके, बालक को उठाया और प्यार से कहा, “बेटा, राम-राम बोलो। राम के नाम से सारे दुःख दूर हो जाते हैं।” उसी क्षण रामानंद जी की तुलसी की माला (कंठी) उनके गले से निकलकर कबीर परमेश्वर के गले में आ गई। कबीर साहेब चुप हो गए।

रामानंद जी ने सोचा कि इस बच्चे को आश्रम ले चलूँगा, जिसका होगा उसे सौंप दूँगा। लेकिन स्नान के बाद जब वे लौटे, तो बच्चा वहाँ नहीं था। कबीर साहेब अंतर्ध्यान होकर अपनी झोंपड़ी में आ गए।


ज्ञान की परीक्षा

एक दिन, कबीर साहेब स्वामी रामानंद जी के एक शिष्य के सत्संग में गए। वह शिष्य विष्णु पुराण की कथा सुना रहा था कि भगवान विष्णु ही परम शक्ति, रचनहार, पालनकर्ता और अजन्मा हैं।

सत्संग के बाद कबीर परमेश्वर ने पूछा, “ऋषि जी, क्या मैं एक प्रश्न पूछ सकता हूँ?”

ऋषि ने हाँ कहा, तो कबीर साहेब ने पूछा, “आप कह रहे हैं कि विष्णु परम शक्ति हैं और उन्हीं से ब्रह्मा और शिव की उत्पत्ति हुई। लेकिन मैंने शिव पुराण में पढ़ा है कि शिव से विष्णु और ब्रह्मा उत्पन्न हुए। और देवी भागवत में लिखा है कि देवी दुर्गा इन तीनों की माता हैं और ये तीनों नाशवान हैं।”

यह सुनकर शिष्य क्रोधित हो गया और बोला, “तू कौन है? किसकी औलाद है?”

कबीर साहेब ने कहा, “मेरे गुरुदेव वही हैं जो आपके गुरुदेव हैं।”

शिष्य बहुत क्रोधित हुआ और बोला, “तू एक अछूत जुलाहे का बच्चा होकर मेरे गुरुदेव का नाम ले रहा है? वे तो तुम्हारे जैसे अछूतों के दर्शन भी नहीं करते।” उसने धमकी दी कि वह गुरुदेव को यह सब बताएगा।

अगले दिन, वह शिष्य कबीर साहेब को पकड़कर स्वामी रामानंद जी के पास ले आया। रामानंद जी ने पर्दा लगाकर पीछे से पूछा, “तू कौन है? तेरी जाति क्या है?

इस पर कबीर साहेब ने कहा:

“जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ।

दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।”

उन्होंने कहा कि मेरी जाति ‘जगतगुरु’ है और मेरा पंथ ‘परमेश्वर’ है, जो अनंत कोटि ब्रह्मांडों का रचयिता है।

रामानंद जी ने कहा कि तू जुलाहे का बच्चा होकर इतनी बड़ी बातें कर रहा है। कबीर साहेब ने विनम्रता से कहा, “हे गुरुदेव! मैं जो कह रहा हूँ, वह सत्य है। मैं स्वयं ही वह परम ब्रह्म हूँ।”

रामानंद जी ने सोचा कि इस पर बाद में विचार करूँगा, पहले मैं अपनी पूजा कर लेता हूँ। वे पूजा के लिए एक काल्पनिक मूर्ति बनाते थे। उन्होंने कल्पना की कि वे ठाकुर जी की मूर्ति को स्नान कराकर कपड़े पहना रहे हैं, लेकिन मुकुट लगाने के बाद माला डालना भूल गए। वे परेशान हो गए, क्योंकि मुकुट हटाने से पूजा खंडित हो जाती।

तभी कबीर साहेब ने कहा, “स्वामी जी, माला की घुंडी खोलकर गले में डाल दीजिए, मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा।”

रामानंद जी यह सुनकर अचंभित हो गए। उन्होंने देखा कि सामने कोई मूर्ति नहीं थी, और कबीर साहेब ने उनके मन की बात जान ली थी। उन्होंने तुरंत पर्दा हटा दिया और कबीर परमेश्वर को गले लगा लिया।


सत्यलोक का दर्शन

रामानंद जी ने पूछा कि आपने झूठ क्यों बोला कि आप मेरे शिष्य हैं? कबीर साहेब ने कहा, “जब आप पंचगंगा घाट पर स्नान करने गए थे, तब आपके खड़ाऊ मेरे सिर में लगे थे और आपने मुझे राम-राम कहने को कहा था।”

रामानंद जी को याद आया, लेकिन वे बोले कि वह तो बहुत छोटा बच्चा था। तब कबीर साहेब ने एक ही क्षण में पाँच वर्ष के अपने शरीर के साथ एक ढाई वर्ष के बच्चे का दूसरा रूप भी प्रकट कर दिया। यह देखकर रामानंद जी चकित रह गए और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।

इसके बाद, कबीर साहेब ने रामानंद जी को अपने साथ सत्यलोक ले जाने का प्रस्ताव रखा। रामानंद जी ने कहा कि वे वेदों और गीता के अनुसार स्वर्ग की साधना करते हैं, जहाँ दूध की नदियाँ बहती हैं।

कबीर साहेब ने कहा कि आपकी यह साधना व्यर्थ है, क्योंकि स्वर्ग और ब्रह्मलोक सहित सभी लोक नाशवान हैं, जैसा कि गीता के आठवें अध्याय के सोलहवें श्लोक में कहा गया है। उन्होंने रामानंद जी को गीता के प्रमाण दिए कि गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) भी नाशवान है और वह किसी अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कह रहा है।

रामानंद जी ने सभी प्रमाणों को स्वीकार किया, लेकिन उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। तब कबीर साहेब ने अपनी शक्ति से उन्हें समाधि में ले जाकर दिखाया कि कैसे योगियों का ध्यान त्रिकुटी तक जाता है, लेकिन उससे आगे नहीं। कबीर साहेब ने अपना सारनाम उच्चारण किया और काल (ब्रह्म) के लोक का द्वार खुल गया।

कबीर साहेब ने उन्हें काल के वास्तविक रूप को दिखाया, जिसे योगी निराकार समझते हैं। काल के सिर पर पैर रखकर कबीर साहेब ने रामानंद जी की आत्मा को सत्यलोक ले गए।

सत्यलोक में रामानंद जी ने देखा कि कबीर साहेब अपने वास्तविक तेजोमय रूप में सिंहासन पर बैठे हैं, और उनका तेज करोड़ों सूर्यों और चंद्रमाओं के समान है। वहाँ भी कबीर साहेब ने दो रूप बनाकर दिखाया कि कैसे एक से दो और दो से एक हो सकते हैं।

इस अद्भुत अनुभव के बाद, रामानंद जी ने कबीर साहेब को अपना पूर्ण परमात्मा माना। उन्होंने कहा, “तुम साहिब तुम संत हौ, तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।

रामानंद जी ने कहा, “हे कबीर परमेश्वर! आप ही सर्वव्यापक हैं। मैंने अपनी मन की सभी भ्रमणाओं को त्याग दिया है और मुझे वास्तविक परमात्मा का दर्शन हो गया है।”

कबीर साहेब ने कहा, “वेद हमारा भेद है, मैं ना बेदन के मांही। जिस बेद से मैं मिलूं, बेद जानते नाहीं।” इसका अर्थ है कि वेदों में मेरा ही ज्ञान है, लेकिन मेरी पूजा विधि गुप्त है, जिसे केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं।

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