द्वापरयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का करूणामय नाम से प्राकाट्य


द्वापरयुग में करूणामय रूप में प्रकट हुए कविर्देव (कबीर साहेब)

यह लेख द्वापरयुग में करुणामय नाम से प्रकट हुए परमेश्वर कबीर (कविर्देव) की एक लीला का वर्णन करता है। इसमें बताया गया है कि कैसे उन्होंने रानी इन्द्रमति को काल के बंधन से मुक्त किया और उनके पति राजा चंद्रविजय को भी सत्य मार्ग पर लाए।

  • इस युग में कबीर साहेब ने वाल्मीक जाति के भक्त सुदर्शन सुपच को अपना शिष्य बनाया था, जिन्होंने पाण्डवों की यज्ञ को सफल बनाया था। यह यज्ञ न तो श्री कृष्ण के भोजन से सफल हुई थी, न ही तैंतीस करोड़ देवताओं, अठ्यासी हजार ऋषियों, बारह करोड़ ब्राह्मणों, नौ नाथों या चौरासी सिद्धों के भोजन से।

द्वापरयुग में इन्द्रमति को शरण में लेना

द्वापरयुग में राजा चंद्रविजय की पत्नी इन्द्रमति एक अत्यंत धार्मिक रानी थीं। उन्होंने एक गुरु बना रखा था, जिन्होंने उन्हें संतों की सेवा करने, एकादशी का व्रत रखने, मंत्रों का जाप करने और तीर्थ यात्रा करने की शिक्षा दी थी। रानी का मानना था कि संतों को भोजन कराने से उन्हें स्वर्ग मिलेगा। इसी प्रतिज्ञा के कारण वह प्रतिदिन एक संत को भोजन कराने के बाद ही खुद भोजन करती थी।

एक बार, हरिद्वार में कुंभ मेले के कारण सभी संत गंगा स्नान के लिए चले गए। लगातार तीन दिनों तक रानी को कोई संत नहीं मिला, और प्रतिज्ञा के कारण उसने स्वयं भी भोजन नहीं किया। चौथे दिन, वह अपनी दासी से कहने लगी कि यदि आज कोई संत नहीं मिला तो वह भूखी ही मर जाएगी।

उसी समय, दीनदयाल कबीर परमेश्वर अपने पूर्व भक्त को शरण में लेने के लिए करुणामय के रूप में प्रकट हुए। दासी ने उन्हें अटारी से देखा और उनसे महल में आने का अनुरोध किया।

करुणामय साहेब ने कहा, “रानी को आवश्यकता है तो वह यहाँ आ जाए। मैं यहाँ खड़ा हूँ। तू दासी और वह रानी। संतों का अनादर बहुत पापदायक होता है।

रानी ने यह सुनकर अपनी दासी के साथ आकर करुणामय साहेब के चरणों में प्रणाम किया। रानी ने उन्हें भोजन के लिए आग्रह किया। करुणामय साहेब ने कहा कि वे भोजन नहीं करते, लेकिन रानी के आग्रह पर वे तैयार हो गए।

भोजन के बाद, करुणामय साहेब ने रानी से पूछा, “यह साधना तुम्हें किसने बताई है?

रानी ने अपने गुरुदेव का नाम लिया और उनकी दी गई साधनाएँ बताईं।

करुणामय साहेब ने कहा, “यह साधना तुम्हें जन्म-मृत्यु और चौरासी लाख योनियों के चक्र में ही रखेगी। यह भक्ति शास्त्र-विरुद्ध है।”

रानी ने कहा, “महाराज जी, चाहे मैं मुक्त होऊँ या न होऊँ, मैं अपने गुरुदेव की निंदा नहीं सुनूँगी।”

तब कबीर साहेब ने रानी को समझाने के लिए कहा, “बेटी, आज से तीसरे दिन तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। न तुम्हारा गुरु तुम्हें बचा पाएगा और न तुम्हारी यह साधना।”

यह सुनकर रानी डर गई और बोली, “साहेब, क्या मेरी जान बच सकती है?”

कबीर साहेब ने कहा, “हाँ, यदि तू मुझसे उपदेश ले और अपनी पिछली साधनाएँ त्याग दे।”

रानी ने गुरु बदलने के पाप के बारे में पूछा, तो कबीर साहेब ने समझाया कि यह एक भ्रम है। जैसे एक वैद्य से लाभ न मिले तो दूसरे से लेते हैं, उसी तरह भक्ति में भी आगे बढ़ना होता है।

रानी ने मृत्यु के भय से कबीर साहेब से उपदेश ले लिया। कबीर साहेब ने उसे एक मंत्र दिया और कहा कि तीसरे दिन काल उनके रूप में आएगा, लेकिन उसे बोलना नहीं है, बल्कि दो मिनट तक मंत्र का जाप करना है।

तीसरे दिन, काल करुणामय साहेब के रूप में आया और रानी को पुकारा। रानी ने मंत्र का जाप किया। दो मिनट बाद, उसने देखा कि काल का रूप बदल गया था। काल ने कहा, “अब तो बच गई, तुझे फिर देखूँगा।

रानी बहुत खुश हुई, लेकिन कुछ देर बाद काल एक साँप बनकर आया और उसे डस लिया। रानी अपने गुरुदेव को पुकारते हुए बेहोश हो गई। करुणामय साहेब वहाँ प्रकट हुए और रानी को फिर से जीवित कर दिया।

कबीर साहेब ने रानी से कहा, “इन्द्रमति, यह काल तेरे घर में घुसता भी नहीं, लेकिन तुझे विश्वास दिलाने के लिए मैंने यह झटका दिया है।

राजा ने इस बात को मजाक समझा, लेकिन रानी को अब पूर्ण विश्वास हो गया था।


राजा चंद्रविजय का मोक्ष

कुछ समय बाद, रानी की भक्ति और समर्पण देखकर करुणामय साहेब ने उन्हें सारनाम प्रदान किया। रानी ने अपने पति राजा चंद्रविजय को भी भक्ति मार्ग पर लाने के लिए कबीर साहेब से प्रार्थना की।

राजा ने कहा कि वह भक्ति नहीं करेगा, क्योंकि उसे बड़े-बड़े राजाओं की पार्टियों में जाना पड़ता है। उसने यह भी कहा कि वह रानी को धार्मिक कार्य करने से नहीं रोकेगा।

कबीर साहेब ने कहा, “बेटी, इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है। यह दो दिन के सुख को देखकर प्रभु से दूर है।

जब रानी 80 वर्ष की हुई, तो कबीर साहेब ने उनसे पूछा कि क्या वह अब सतलोक चलना चाहती हैं। रानी ने कहा कि वे तैयार हैं।

कबीर साहेब ने कहा कि यदि उनके मन में कोई इच्छा बची हो, तो उन्हें फिर से जन्म लेना पड़ेगा। रानी ने कहा कि उनके पति के शुभ कर्म में सहयोग का कोई फल मिलता हो तो उन्हें भी दया मिले।

कबीर साहेब ने रानी को दो वर्ष तक वहीं रहने को कहा। दो वर्ष बाद, राजा चंद्रविजय मरने लगे। यम के दूत उनके प्राण निकाल रहे थे। कबीर साहेब ने रानी को मानसरोवर से यह सब दिखाया। रानी ने दया की याचना की।

कबीर साहेब राजा के पास गए, तो यमदूत भाग गए। राजा होश में आया और करुणामय साहेब के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा। उसने कहा कि वह नाम ले लेगा।

कबीर साहेब ने राजा को नाम उपदेश दिया और दो वर्ष की आयु दी, जिससे वह भक्ति कर सके। राजा ने भक्ति की और अपने सहयोग के फल से वह भी पार हो गया।


निष्कर्ष

यह लेख बताता है कि परमेश्वर कबीर ही सच्चे संत हैं, जो अपने भक्तों की आयु बढ़ा सकते हैं और उन्हें हर कष्ट से बचा सकते हैं। वे काल और मृत्यु पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं। इस लेख में यह भी सिद्ध होता है कि संत रामपाल जी महाराज उसी पूर्ण परमेश्वर कबीर की शक्ति से भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।

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