जानिये सतयुग में कबीर साहेब का प्राकाट्य कैसे हुआ ?


सतयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का सतसुकृत नाम से प्राकट्य

यह लेख इस बात पर प्रकाश डालता है कि कविर्देव (कबीर साहेब), जिन्हें आमतौर पर कलियुग में एक जुलाहे के रूप में जाना जाता है, वेदों के अनुसार सभी युगों में प्रकट हुए हैं। इस लेख के अनुसार, वे सतयुग में सतसुकृत नाम से प्रकट हुए थे और उन्होंने सत ज्ञान का प्रचार किया।

वेदों से भी पूर्व परमेश्वर

कई श्रद्धालु यह शंका व्यक्त करते हैं कि 1398 ईस्वी में काशी में एक जुलाहे के रूप में आए कबीर जी वेदों में वर्णित कविर्देव कैसे हो सकते हैं। इस लेख में इसका समाधान दिया गया है।

लेख के अनुसार, पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पहले सतलोक में विराजमान थे। वे अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में स्वयं प्रकट हुए हैं:

  • सतयुग: सतसुकृत नाम से
  • त्रेतायुग: मुनिन्द्र नाम से
  • द्वापरयुग: करूणामय नाम से
  • कलियुग: कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से

इसके अतिरिक्त, वे कभी भी अन्य रूप धारण करके प्रकट हो सकते हैं। उनका शरीर पांच तत्वों से नहीं बना है, बल्कि एक नूर तत्व से बना है, और वे कभी भी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते।

सतयुग में सतसुकृत की लीला

सतयुग में, पूर्ण प्रभु कबीर जी सतसुकृत नाम से प्रकट हुए थे। उन्होंने गरुड़ जी, ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी जैसे देवताओं को भी सत ज्ञान समझाया। उन्होंने महर्षि मनु को भी तत्वज्ञान समझाने का प्रयास किया, लेकिन मनु जी ने ब्रह्मा जी से सुने वेद ज्ञान पर ही विश्वास किया। उन्होंने सतसुकृत जी के ज्ञान को ‘उल्टा’ (विपरीत) मानकर उनका उपहास किया। इसी कारण से परमेश्वर सतसुकृत का दूसरा नाम वामदेव रखा गया (वाम का अर्थ उल्टा होता है)।

यजुर्वेद अध्याय 12, मंत्र 4 में इसका विवरण मिलता है कि वामदेव ऋषि ने यजुर्वेद के वास्तविक ज्ञान को समझा और दूसरों को भी समझाया।

कविर् और कबीर के नाम में समानता

कुछ लोग व्याकरण के आधार पर कविर् को कबीर मानने पर आपत्ति करते हैं। इस पर लेख में कहा गया है कि भाषा पहले बनी और व्याकरण बाद में ऋषियों द्वारा बनाई गई। यह एक क्षेत्रीय उच्चारण का मामला है।

उदाहरण के लिए, जैसे हरियाणा में पलवल शहर को ‘परवर’ कहा जाता है, उसी तरह कविर् को कबीर कहा जाता है। महर्षि दयानंद ने भी ‘देवृकामा’ का अर्थ ‘देवर की कामना’ किया है, जहाँ उन्होंने ‘देवृ’ को पूरा ‘र’ लगाकर ‘देवर’ लिखा है। इसी तरह, कविर् को कबीर कहने या लिखने में कोई व्याकरण की त्रुटि नहीं है।

यजुर्वेद अध्याय 29, मंत्र 25 और सामवेद संख्या 1400 में भी यह प्रमाणित है कि पूर्ण परमात्मा का नाम कविर्देव ही है।

यजुर्वेद अध्याय 29, मंत्र 25 (भावार्थ):

जब परमेश्वर प्रकट होता है, तब सभी ऋषि-संत शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण कर रहे होते हैं। तब कविर्देव (कबीर प्रभु) स्वयं ही अपने वास्तविक ज्ञान का संदेशवाहक बनकर आते हैं।

सामवेद संख्या 1400 (भावार्थ):

चतुर लोग झूठे ज्ञान का प्रचार कर रहे होते हैं। उस समय महान कविर् (कबीर) एक सामान्य वेशभूषा में आते हैं और अपनी शब्दावली (कबीर वाणी) के माध्यम से तत्वज्ञान को जगाते हैं।

परमात्मा का शिशु रूप में आगमन

ऋग्वेद के कुछ मंत्रों में भी परमात्मा की पहचान बताई गई है। जब वे संसार में लीला करने आते हैं, तो शिशु रूप धारण करते हैं

  • ऋग्वेद मंडल 9, सूक्त 1, मंत्र 9 (भावार्थ):पूर्ण परमात्मा जब बालक के रूप में प्रकट होते हैं, तो उनकी परवरिश कुंवारी गायों द्वारा होती है। उस समय कुंवारी गायें अपने आप दूध देने लगती हैं।
  • ऋग्वेद मंडल 9, सूक्त 96, मंत्र 17 (भावार्थ):विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर, कविर्देव अपने ज्ञान को कविताओं और लोकोक्तियों के माध्यम से उच्चारण करते हैं, जिसके कारण उन्हें ‘कवि’ कहा जाता है, लेकिन वास्तव में वे स्वयं सतपुरुष कबीर ही होते हैं।
  • ऋग्वेद मंडल 9, सूक्त 96, मंत्र 18 (भावार्थ):जो पूर्ण परमात्मा एक संत या ऋषि की भूमिका करते हैं, उनकी रची हुई हजारों वाणियाँ भक्तों के लिए स्वर्ग जैसा आनंददायक होती हैं। वही परमात्मा तीसरे मुक्ति धाम सतलोक में एक गुंबद में सिंहासन पर तेजोमय मानव सदृश शरीर में विराजमान हैं।
Share your love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *