क्या ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव की पूजा करनी चाहिए ?


क्या ब्रह्मा, विष्णु और शंकर (शिव) की पूजा करनी चाहिए?

यह लेख इस प्रश्न का उत्तर देता है कि क्या ब्रह्मा, विष्णु और शंकर (शिव) की पूजा करनी चाहिए। इसमें श्रीमद्भगवद्गीता और सूक्ष्मवेद के प्रमाणों के आधार पर बताया गया है कि इन देवताओं की भक्ति से मोक्ष संभव नहीं है।

गीता में प्रमाण

प्रश्न: क्या रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शंकर (शिव) की पूजा (भक्ति) करनी चाहिए?

उत्तर: नहीं।

गीता अध्याय 7, श्लोक 12 से 15 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो व्यक्ति इन तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव) की भक्ति करते हैं, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच और दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं, और वे मुझे भी नहीं भजते हैं।

  • गीता अध्याय 7, श्लोक 20 से 23 और गीता अध्याय 9, श्लोक 23-24 में भी यही बात दोहराई गई है। इन श्लोकों में गीता ज्ञान दाता (काल) ने कहा है कि जो साधक किसी उद्देश्य से अन्य देवताओं को भजते हैं, वे मुझे भगवान समझकर भजते हैं। मैंने उन देवताओं को कुछ शक्ति प्रदान कर रखी है, जिससे उनके भक्तों को कुछ लाभ मिलता है। लेकिन उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान होता है। देवताओं को पूजने वाले देवताओं के लोक में जाते हैं, जबकि मेरे पुजारी मुझे प्राप्त होते हैं।
  • गीता अध्याय 16, श्लोक 23-24 में कहा गया है कि जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते हैं, जैसे कि देवी-देवताओं, पितरों, यक्षों, भैरों और भूतों की पूजा करते हैं, और मनोकल्पित मंत्रों का जाप करते हैं, उन्हें न तो कोई सुख मिलता है, न कोई सिद्धि प्राप्त होती है और न ही उनकी गति (मोक्ष) होती है।
  • गीता अध्याय 17, श्लोक 1 से 6 में भी इसी बात की पुष्टि होती है। अर्जुन के पूछने पर गीता ज्ञान दाता ने बताया कि सात्विक लोग देवताओं की, राजसी लोग यक्षों और राक्षसों की, और तामसी लोग प्रेत आदि की पूजा करते हैं। ये सभी कर्म शास्त्रविधि से रहित हैं। जो मनुष्य केवल मनोकल्पित घोर तप करते हैं, वे दंभी और अज्ञानी हैं और राक्षस स्वभाव के हैं।

सूक्ष्मवेद में प्रमाण

सूक्ष्मवेद में भी परमेश्वर ने इन बातों को स्पष्ट किया है:

कबीर, माई मसानी सेढ़ शीतला भैरव भूत हनुमंत।

परमात्मा से न्यारा रहै, जो इनको पूजंत।।

राम भजै तो राम मिलै, देव भजै सो देव।

भूत भजै सो भूत भवै, सुनो सकल सुर भेव।।”

इन वाणियों से स्पष्ट होता है कि जिस व्यक्ति की जैसी साधना होगी, उसे वैसा ही फल मिलेगा। यदि कोई राम की भक्ति करेगा तो उसे राम मिलेंगे, देवताओं की भक्ति करेगा तो देवता मिलेंगे और भूतों की भक्ति करेगा तो भूत मिलेंगे।

सारांश

यह लेख स्पष्ट करता है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके साथ-साथ, भूतों, पितरों (श्राद्ध कर्म, तेरहवीं, पिंडोदक क्रिया), भैरव और हनुमान जी की पूजा भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ये सभी शास्त्रविधि रहित कर्म हैं। इस तरह की भक्ति से न तो कोई सुख, न सिद्धि और न ही मोक्ष प्राप्त होता है।

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