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कबीर साहेब की काल से वार्ता
यह लेख कबीर साहेब और काल (ब्रह्म) के बीच हुई महत्वपूर्ण वार्ता का वर्णन करता है, जिसमें सृष्टि के रहस्य, जीवों की मुक्ति और काल के षड्यंत्रों का खुलासा किया गया है। यह लेख बताता है कि कैसे कबीर साहेब ने जीवों को काल के जाल से निकालने का मार्ग दिखाया।
सृष्टि का रहस्य और तीन देवों की उत्पत्ति
लेख की शुरुआत धर्मदास और कबीर साहेब के बीच हुए संवाद से होती है, जिसमें कबीर साहेब कहते हैं:
“धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।”
कबीर साहेब बताते हैं कि यह संसार अज्ञान में पागल हो चुका है और कोई भी मोक्ष के वास्तविक पद को नहीं जानता। वे धर्मदास को त्रयदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की उत्पत्ति का भेद बताते हैं:
- मां अष्टंगी (दुर्गा) और पिता निरंजन (काल) हैं।
- निरंजन ने पहले खुद को उत्पन्न किया और फिर माया (दुर्गा) को।
- निरंजन ने माया की सुंदरता देखकर उससे मोहित होकर भोग किया, जिससे तीन पुत्रों – ब्रह्मा, विष्णु और शिव – की उत्पत्ति हुई।
कबीर साहेब कहते हैं कि इन तीनों देवताओं ने ही पूरे संसार को भ्रम में डाला हुआ है।
“तीन देव विस्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।”
वे कहते हैं कि तीनों देव और उनके अवतारों को ही पूरा संसार पूजता है, लेकिन अकाल पुरुष (पूर्ण ब्रह्म) को कोई नहीं जानता।
काल और जीवात्माओं का बंधन
लेख के अनुसार, जब कबीर परमेश्वर ने सभी ब्रह्मांडों की रचना की, तो हम सभी जीवात्माएं काल के ब्रह्मांड में आ गए। हम यहां दुख भोगने लगे और अपने निज घर सतलोक की याद सताने लगी। हम भक्ति करने लगे, लेकिन कोई भी पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं कर सका।
हमारी पुकार सुनकर, कबीर साहेब जोगजीत का रूप धारण कर काल लोक में आए। वहाँ उन्होंने जीवों को तप्तशिला पर भुनते हुए देखा। कबीर साहेब के पहुँचते ही उनकी जलन शांत हो गई।
कबीर साहेब ने जीवों को बताया कि वे सब उनके लोक से आकर काल के जाल में फंस गए हैं। यह काल रोज़ाना एक लाख मानव के सूक्ष्म शरीर से गंध निकाल कर खाता है।
जीवों ने कबीर साहेब से इस जेल से छुड़ाने की प्रार्थना की। कबीर साहेब ने बताया कि काल पर उनका बहुत ज्यादा ऋण हो चुका है, जो केवल मेरे सच्चे नाम के जाप से ही उतर सकता है।
कबीर और काल का समझौता
जब कबीर साहेब जीवों से बात कर रहे थे, तभी काल वहाँ प्रकट हो गया और क्रोध में उन पर हमला किया। कबीर साहेब ने अपनी शब्द शक्ति से उसे मूर्छित कर दिया। जब काल होश में आया, तो उसने कबीर साहेब के चरणों में गिरकर दया की भीख मांगी।
कबीर साहेब ने काल को बताया कि वे जीवों को सतभक्ति मार्ग बताने और उसका भेद खोलने आए हैं, ताकि जीव अपने निज घर लौट सकें।
इस पर काल ने कहा, “यदि सब जीव वापस चले गए, तो मेरे भोजन का क्या होगा? आप मुझ पर दया करें। तीन युगों में कम जीव ले जाना और मेरा भेद मत बताना। लेकिन जब कलियुग आए, तो चाहे जितने जीवों को ले जाना।“
कबीर साहेब ने यह वचन काल से प्राप्त कर लिया। उन्होंने धर्मदास को बताया कि वे सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में भी आए थे, लेकिन काल का भेद नहीं बताया। अब कलियुग में वे यह भेद खोलेंगे।
काल का षड्यंत्र और बारह पंथों का निर्माण
जब कबीर साहेब ने काल को बताया कि वे कलियुग में उसका भेद खोलेंगे, तो काल ने कहा, “आप चाहे जितना जोर लगा लेना, आपकी बात कोई नहीं सुनेगा। मैंने जीवों में बीड़ी, सिगरेट, शराब और मांस जैसे दुर्व्यसन डाल दिए हैं और उन्हें पाखंड पूजा में लगा दिया है।“
काल ने यह भी कहा कि जब कबीर साहेब वापस चले जाएँगे, तो वह अपने दूतों को भेजकर बारह पंथ चलाएगा, जो कबीर साहेब के पंथ से मिलते-जुलते होंगे। वे पंथ सतलोक की महिमा गाएंगे, कबीर साहेब का ज्ञान कहेंगे, लेकिन नाम-जाप काल का ही करेंगे, जिससे जीव उसी का भोजन बनेंगे।
कबीर साहेब ने कहा, “तुम अपनी कोशिश कर लेना। मैं सतमार्ग बताकर ही वापस जाऊँगा और जो मेरा ज्ञान सुन लेगा, वह तुम्हारे बहकावे में कभी नहीं आएगा।”
कबीर साहेब ने कहा कि यदि वे चाहें तो पल भर में काल के खेल को समाप्त कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करने से उनका वचन भंग होगा। इसलिए वे अपने प्यारे हंसों को यथार्थ ज्ञान और शब्द का बल देकर सतलोक ले जाएँगे।
निष्कर्ष
यह लेख सिद्ध करता है कि आज संसार में जितने भी पंथ चल रहे हैं, जिनके पास कबीर साहेब द्वारा बताया गया सतभक्ति मार्ग नहीं है, वे सभी काल प्रेरित हैं। इसलिए, बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह सोच-समझकर भक्ति मार्ग अपनाए, क्योंकि मनुष्य जीवन अनमोल है और यह बार-बार नहीं मिलता।
कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।