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रोटी तैमूरलंग कुं दीन्ही ताते सात बादशाही लीन्ही
यह लेख एक कथात्मक शैली में लिखा गया है, जो तैमूरलंग नामक एक गरीब युवक और उसकी धर्मपरायण माता की कहानी बताता है। यह कहानी परमेश्वर कबीर जी की लीला और धर्म के महत्व को दर्शाती है, जिसके कारण तैमूरलंग को सात पीढ़ियों का राज प्राप्त हुआ।
तैमूरलंग और उसकी माता का जीवन
तैमूरलंग एक गरीब मुसलमान युवक था। उसके पिता की मृत्यु युवावस्था में ही हो गई थी, और उसकी माता ने अकेले ही उसका पालन-पोषण किया। वे अत्यंत निर्धन थे, लेकिन उसकी माता बहुत धार्मिक थी। वह घर आए किसी भी अतिथि को बिना भोजन कराए नहीं जाने देती थी। कई बार तो ऐसा भी होता था कि घर में केवल दो लोगों का भोजन होता था, और दो अतिथि आ जाने पर वे दोनों अतिथियों को खिलाकर स्वयं भूखे सो जाते थे।
अपने जीवन-यापन के लिए, तैमूरलंग गाँव के धनी लोगों की भेड़-बकरियां चराता था, जिसके बदले में उसे अनाज मिलता था। इसके अलावा, वह शाम को एक लोहार की दुकान पर घण से चोट लगाने का काम भी करता था। फिर भी, वे गरीबी रेखा से नीचे ही थे।
तैमूरलंग का भाग्य उदय
एक दिन, तैमूरलंग अपनी भेड़-बकरियों को जंगल में चरा रहा था। दोपहर के समय, जब वह खाना खाकर बैठा था, तभी एक जिंदा बाबा संत वहाँ आए। तैमूरलंग ने उन्हें भोजन के लिए पूछा। संत ने कहा, “हाँ बेटा, मैं भूखा हूँ।”
तैमूरलंग अपनी भेड़-बकरियों को संत को सौंपकर घर गया और अपनी माता को बताया कि एक संत भूखे हैं। माता ने कहा, “मैं भोजन बनाती हूँ और साथ में चलती हूँ। संत के दर्शन भी कर लूँगी और बर्तन भी ले आऊँगी।”
घर में केवल एक रोटी के लायक आटा था। माता ने एक रोटी बनाई और एक लोटे में पानी लेकर तैमूरलंग के पास जंगल में आ गईं। उन्होंने भोजन संत के सामने रखा। जब तक संत ने रोटी खाई और पानी पिया, तब तक माता ने अपनी गरीबी की पूरी कहानी सुना दी।
वह जिंदा बाबा कोई और नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर कबीर जी थे।
वहाँ एक बकरी को बाँधने वाली रस्सी पड़ी थी। संत ने उसे उठाकर चार बार मोड़ा और तैमूरलंग की कमर पर मारा, और साथ में लात और घूसे भी मारे।
माता ने घबराकर कहा, “संत जी, मेरे बेटे ने क्या गलती कर दी? इसे क्षमा करें।”
परमेश्वर ने माता से कहा, “माई, मैंने तेरे बेटे को सात पीढ़ियों का राज दे दिया है। जो मैंने सात लोहे की रस्सी (सांकल) मारी है, वह तेरी सात पीढ़ियों तक राज करेंगी। और जो लात-घूसे मारे हैं, वह इसलिए हैं कि बाद में वह राज्य छोटे-छोटे राज्यों में बँटकर समाप्त हो जाएगा।“
इतना कहकर परमेश्वर अंतर्ध्यान हो गए। उस समय तो माता और तैमूरलंग को यह बात सच नहीं लगी, लेकिन दस साल के अंदर तैमूरलंग राजा बन गया।
खजाना और राज की शुरुआत
दस साल बाद, परमेश्वर ने सपने में आकर तैमूरलंग को बताया कि जिस लोहार के यहाँ वह काम करता था, उसके अहरण (एरण) के नीचे खजाना दबा है। उन्होंने उसे लोहार से वह अहरण खरीदने को कहा।
तैमूरलंग ने कहा कि उसके पास पैसे नहीं हैं, तो परमेश्वर ने कहा, “यह मेरा कार्य है, तुम लोहार से एक साल में पैसे देने की बात करो।”
तैमूरलंग ने अपनी माता को यह स्वप्न बताया। माता ने कहा कि उन्हें भी रात में संत दिखाई दिए थे, लेकिन वे क्या कह रहे थे, यह वे भूल गईं। जब तैमूरलंग ने अपनी बात बताई, तो माता ने कहा कि वह संत परमात्मा का रूप हैं और उन्हें उनकी बात माननी चाहिए।
परमात्मा ने लोहार के मन में भी प्रेरणा कर दी, और उसने वह अहरण तैमूरलंग को एक साल की उधारी पर बेच दिया। तैमूरलंग ने अपनी माता के सहयोग से उस जगह पर एक चारदीवारी बनाई और खुदाई की। उन्हें वहाँ खजाना मिला।
परमेश्वर कबीर जी फिर सपने में आए और दिशा-निर्देश दिया कि खजाने को धीरे-धीरे निकालना है। पहले भेड़-बकरियां खरीदकर बेचना, फिर घोड़े बेचना और धीरे-धीरे अपनी सेना बनाना।
तैमूरलंग ने ठीक वैसा ही किया। उसने एक हजार सैनिकों की सेना बनाई और उसी नगर के राजा को घेर लिया। राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया।
“परमेश्वर ने एक हजार की सेना को दस हजार दिखाया।”
इस प्रकार, तैमूरलंग 1392 ईस्वी में भारत आया और उसने दिल्ली के राजा को मारकर कब्जा कर लिया।
सात पीढ़ियों का राज
तैमूरलंग ने दिल्ली में एक नवाब को शासन सौंप दिया, जो तैमूरलंग को टैक्स दिया करता था। जब बाद में दिल्ली पर हिंदू राजा हेमचंद का कब्जा हुआ, तो उसने टैक्स देना बंद कर दिया। तब तैमूरलंग के तीसरे पोते बाबर ने राजा को मारकर दिल्ली की गद्दी संभाली।
बाबर से लेकर छह पीढ़ियों तक औरंगजेब ने दिल्ली पर राज किया। उसके बाद, उनका राज्य छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गया।
इस तरह, केवल एक रोटी के दान से तैमूरलंग को सात पीढ़ियों का राज मिला। यह कहानी यह दर्शाती है कि धर्म करने से सभी प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।