जानिये कामाख्या मन्दिर की सच्चाई ?

आसाम में स्थित कामख्या मंदिर – योनि पूजन की परंपरा

सती का शरीर बिखरना

धार्मिक मान्यता के अनुसार जब सती पार्वती जी ने अपने पिता दक्ष के हवन कुंड में कूदकर आत्महत्या कर ली,
तो भगवान शिव जी मोहवश हजारों वर्षों तक सती के जले हुए शव को कंधे पर लादे घूमते रहे।

भगवान विष्णु जी ने उनका मोह भंग करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई भागों में बाँट दिया।

  • जहाँ आंख गिरी, वहाँ नैना देवी मंदिर बना।
  • जहाँ जिव्हा गिरी, वहाँ ज्वाला देवी मंदिर बना।
  • जहाँ धड़ गिरा, वहाँ वैष्णो देवी मंदिर बना।
  • और जहाँ योनि गिरी, वहाँ कामख्या मंदिर की स्थापना हुई।

कामख्या मंदिर की विशेषता

  • इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है।
  • यहाँ केवल योनि की पूजा की जाती है।
  • मान्यता है कि साल में एक माह में तीन दिन तक देवी रजस्वला होती हैं।
  • उस समय मंदिर बंद रखा जाता है।
  • देवी के शरीर से निकले द्रव्य से सिंदूर बनाया जाता है और बेचा जाता है।
  • यह सिंदूर तंत्र विद्या में प्रयोग होता है।

विचारणीय प्रश्न

  1. हमें पूजा उस परमपिता परमात्मा की करनी चाहिए जिसने हम सबको (देवी–देवता, मनुष्य, जीव) बनाया।
    लेकिन आज समाज किस दिशा में जा रहा है?
  2. शर्म आती है कि लोग योनि पूजन को ही भक्ति मान बैठे हैं।
  3. जो देवी पार्वती स्वयं जन्मती और मरती हैं, क्या वे मोक्ष दे सकती हैं?
  4. क्या देवी–देवताओं का शरीर भी साधारण मनुष्यों की तरह हाड़–मांस का बना हुआ है?
  5. मंदिर तीन दिन बंद रहने के बाद पुजारी पूरे मंदिर और माता की योनि की शुद्धि करते हैं।
    – क्या देवी–देवता भी अशुद्ध होते हैं?
  6. देवी के शरीर से निकले तरल पदार्थ से सिंदूर बनाकर उसे बेचना क्या भक्ति है?
    – सोचकर ही घृणा आती है।

वास्तविक भक्ति किसकी?

स्त्री को जिन दिनों को अशुद्ध माना जाता है,
उसी स्थिति के द्रव्य से सिंदूर बनाकर उसे पवित्र बताना – यह कैसा अंधविश्वास है?

पूजनीय केवल वह परमात्मा है जिसने सबकी रचना की, जो कभी जन्मता–मरता नहीं है।
वही पूर्ण ब्रह्म है, वही मोक्षदाता है।


निष्कर्ष

भारत को चाहिए कि वह इन अंधविश्वासों से बाहर निकले।
भक्ति का मार्ग केवल और केवल उस सत्य परमात्मा की ओर जाना चाहिए,

Share your love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *