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गुरु नानकदेव जी: सत्य की खोज और कबीर साहेब से मुलाकात
इस लेख में गुरु नानकदेव जी के जीवन, उनकी आध्यात्मिक यात्रा और परमेश्वर कबीर साहेब के साथ हुई उनकी महत्वपूर्ण मुलाकातों का वर्णन किया गया है। यह लेख बताता है कि कैसे कबीर साहेब ने नानक जी को सच्चा ज्ञान दिया और उन्हें परमपिता परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर किया।
नानक जी का संक्षिप्त परिचय
आदरणीय श्री नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी (विक्रमी संवत 1526) को कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री कालू राम मेहता (खत्री) और माता का नाम श्रीमती तृप्ता देवी था। उनका जन्म पश्चिमी पाकिस्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ था।
उन्होंने फारसी, पंजाबी और संस्कृत भाषाएँ पढ़ी थीं और वे श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन श्री बृजलाल पांडे से किया करते थे। उनके दो पुत्र थे, श्री चंद और लखमी चंद। अपनी बहन नानकी के ससुराल, सुल्तानपुर में, वे अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से नवाब के यहाँ मोदीखाने में नौकरी करते थे। वे प्रभु के प्रति असीम प्रेम रखते थे क्योंकि वे युगों-युगों से ब्रह्म भगवान (काल) की पवित्र भक्ति करते आ रहे थे।
- सतयुग: यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे और वे विष्णु को इष्ट मानकर ब्रह्म भक्ति करते थे।
- त्रेता युग: यही नानक जी राजा जनक विदेही बने, जो सीता जी के पिता थे।
- कलियुग: यही राजा जनक की आत्मा एक हिंदू परिवार में श्री कालू राम मेहता के घर उत्पन्न हुई और इनका नाम श्री नानक रखा गया।
नानक जी और परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा
श्री नानकदेव जी प्रतिदिन सुबह सुल्तानपुर के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाते थे और घंटों प्रभु चिंतन में लीन रहते थे। एक दिन, एक जिंदा फकीर उन्हें बेई दरिया के तट पर मिले।
फकीर ने नानक जी से कहा, “आप बहुत अच्छे भक्त लगते हैं। कृपा करके मुझे भी भक्ति मार्ग बताएँ। मैं बहुत भटक चुका हूँ और मेरा संशय समाप्त नहीं हो पाया है।”
नानक जी ने पूछा, “आप कहाँ से आए हैं? आपका नाम क्या है? क्या आपने कोई गुरु धारण किया है?”
तब जिंदा फकीर का रूप धारण किए कबीर जी ने कहा, “मेरा नाम कबीर है, मैं बनारस (काशी) से आया हूँ और जुलाहे का काम करता हूँ। मैंने पंडित रामानंद स्वामी जी से नाम उपदेश ले रखा है।”
नानक जी ने कबीर जी को एक जिज्ञासु जानकर भक्ति मार्ग बताना शुरू किया। उन्होंने कहा, “हे जिंदा! गीता में लिखा है कि एक ‘ओम्’ मंत्र का जाप करो। सतगुण श्री विष्णु जी ही पूर्ण परमात्मा हैं और वे ही स्वर्ग प्राप्ति का एकमात्र मार्ग हैं। गुरु के बिना मोक्ष नहीं है, और निराकार ब्रह्म की ‘ओम्’ मंत्र की साधना से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।”
इस पर कबीर परमेश्वर ने (जो अपने आप को छिपाकर लीला कर रहे थे) कहा, “मैं गुरु किसे बनाऊँ? कोई सच्चा गुरु मिल ही नहीं रहा, जो मेरा संशय समाप्त करके मन को भक्ति में लगा सके। स्वामी रामानंद जी मेरे गुरु हैं, परंतु उनसे भी मेरा संशय दूर नहीं हो पाया है।”
श्री नानक जी ने कहा, “मुझे गुरु बनाओ, आपका कल्याण निश्चित है।“
जिंदा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा, “मैं आपको गुरु मानता हूँ, लेकिन मेरे कुछ प्रश्न हैं, जिनका मैं आपसे समाधान चाहता हूँ।”
नानक जी ने कहा, “पूछो।”
कबीर परमेश्वर ने कहा, “हे गुरु नानक जी! आपने बताया कि तीन लोक के प्रभु (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) हैं और त्रिगुण माया सृष्टि, स्थिति तथा संहार करती है। आपने यह भी कहा कि श्री कृष्ण ही श्री विष्णु रूप में स्वयं आए थे, जो सर्वेश्वर, अविनाशी, और सभी लोकों के पालनहार हैं, और उनसे ऊपर कोई प्रभु नहीं है। वे अजन्मा हैं और उनके माता-पिता नहीं हैं। श्री कृष्ण ने ही गीता का ज्ञान दिया है।
“लेकिन गीता के अध्याय 2, श्लोक 12 और अध्याय 4, श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता स्वयं कह रहे हैं कि ‘अर्जुन! मैं और तू पहले भी थे और यह सभी सैनिक भी थे। हम सब आगे भी उत्पन्न होंगे। तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ।’ इससे तो यह सिद्ध होता है कि गीता ज्ञान दाता भी नाशवान हैं।”
कबीर जी ने गीता के श्लोकों का हवाला देते हुए समझाया कि जो लोग त्रिगुण माया (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की पूजा करते हैं, वे मूर्ख हैं और राक्षसी स्वभाव के हैं। उन्होंने यह भी बताया कि गीता ज्ञान दाता ने अपनी साधना को भी अति घटिया कहा है।
“गीता अध्याय 15, श्लोक 4 और अध्याय 18, श्लोक 62 में कहा गया है कि उस परमेश्वर की शरण में जाओ, जिसकी कृपा से परम शांति और सनातन परम धाम सतलोक की प्राप्ति होगी, जहाँ जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए मुक्त हो जाएगा।”
कबीर जी ने नानक जी से पूछा, “क्या आपको वह तत्वदर्शी संत मिला है, जो उस परमपिता परमात्मा की भक्ति विधि बताएगा?”
नानक जी ने कहा, “नहीं मिला।”
तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा, “उस पूर्ण परमात्मा के विषय में पूर्ण ज्ञान रखने वाला मैं ही वह तत्वदर्शी संत हूँ। मैं बनारस (काशी) में जुलाहे का काम करता हूँ।“
उन्होंने आगे कहा, “जब स्वर्ग और महास्वर्ग (ब्रह्मलोक) भी नहीं रहेंगे, तो साधक का क्या होगा? गीता अध्याय 8, श्लोक 16 में लिखा है कि ब्रह्मलोक तक के सभी लोक नाशवान हैं। इसलिए, गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं कह रहे हैं कि किसी तत्वदर्शी संत की खोज करो और उसी के अनुसार साधना करो।”
जब नानक जी ने इन बातों को सुनकर अरुचि दिखाई, तो कबीर साहेब वहाँ से चले गए।
नानक जी की खोज और सत्य की प्राप्ति
कबीर साहेब से पहली मुलाकात के बाद नानक जी समझ गए थे कि उनका ज्ञान अधूरा है। वे प्रतिदिन प्रार्थना करते थे कि वह संत एक बार फिर आए। परमेश्वर कबीर जी, जो अंतर्यामी हैं, कुछ समय बाद फिर उसी बेई नदी के किनारे नानक जी से मिले।
नानक जी ने कबीर जी से कहा, “मैं आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हूँ। मैं इस दरिया में छिपूँगा और आप मुझे ढूँढेंगे। यदि आप मुझे ढूँढ लेंगे, तो मैं आपकी बात पर विश्वास कर लूँगा।” यह कहकर नानक जी ने नदी में डुबकी लगाई और मछली का रूप धारण कर लिया।
जिंदा फकीर (कबीर परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़कर लगभग तीन किलोमीटर दूर ले जाकर फिर से श्री नानक जी का रूप दे दिया।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, पृष्ठ 25 पर नानक जी ने स्वयं लिखा है: “तू दरिया दाना बीना, मैं मछली कैसे अंत लहा। जह-जह देखा तह-तह तू है, तुझसे निकस फूट मरा।”
नानक जी ने कहा कि मैं मछली बन गया था, आपने मुझे कैसे ढूँढ लिया? आप तो दरिया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हैं। जब से मैं आपके सतलोक से बिछड़ा हूँ, तब से कष्ट पर कष्ट उठा रहा हूँ। जब दुःख आता है, तो आपको ही याद करता हूँ।
तब कबीर साहेब ने नानक जी को अपनी पूरी सृष्टि रचना सुनाई और कहा कि मैं पूर्ण परमात्मा हूँ और मेरा स्थान सच्चखंड (सतलोक) है। आप मेरी आत्मा हैं और काल (ब्रह्म) ने आप सभी आत्माओं को भ्रमित कर रखा है। “मैं आपको सच्चा नाम (सत्यनाम) दूँगा, जो किसी भी शास्त्र में नहीं है और जिसे काल ने गुप्त कर रखा है।”
नानक जी ने कहा, “जब तक मैं अपनी आँखों से अकाल पुरुष और सच्चखंड को नहीं देख लेता, तब तक मैं आपकी बात को सच नहीं मानूँगा।”
तब कबीर साहेब नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए।
सच्चखंड में अनुभव
सच्चखंड में नानक जी ने एक अत्यंत तेजोमय मानव सदृश प्रभु को तख्त पर बैठे देखा। कबीर साहेब ने अपने दूसरे स्वरूप पर चँवर (चंवर) करना शुरू कर दिया। नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह है, जो गद्दी पर बैठा है, और कबीर तो यहाँ के सेवक होंगे। उसी समय कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए और दूसरा तेजोमय स्वरूप खड़ा होकर उन पर चँवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप कबीर जी में समा गया। तब नानक जी ने कहा, “वाहगुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी।“
इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। कबीर जी ने नानक जी की आत्मा को वापस शरीर में प्रवेश कराया। तीसरे दिन नानक जी होश में आए। उनके परिवार और नवाब ने उन्हें मरा हुआ मान लिया था। जब नवाब ने मोदीखाने का हिसाब करवाया, तो सात सौ साठ रुपये अधिक मिले।
नवाब ने नानक जी को फिर से नौकरी पर आने को कहा, तो उन्होंने कहा, “अब मैं सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा।” उस दिन के बाद, नानक जी घर-बार छोड़कर उस पूर्ण परमात्मा की खोज में निकल पड़े।
नानक जी का समर्पण
जब नानक जी बनारस पहुँचे, तो उन्हें पता चला कि कबीर साहेब, जिनका उन्होंने बेई नदी पर दर्शन किया था, वही जुलाहा हैं। नानक जी ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा, “मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूल हूँ।” नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने तुरंत कबीर जी के चरणों में गिरकर सच्चा नाम प्राप्त किया।
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार। नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक।”
पवित्र सिख समाज भले ही इस बात को न माने कि नानक जी के गुरु कबीर साहेब थे, लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब में स्वयं नानक जी ने यह स्वीकार किया है।
गरीब – झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह।
वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब – हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।
इन वाणियों से स्पष्ट है कि कबीर परमेश्वर ने ही नानक जी को सही मार्ग दिखाया।
धार्मिक एकता का संदेश
यह लेख धार्मिक मतभेदों को त्यागकर एक परम परमात्मा की भक्ति पर जोर देता है। यह बताता है कि सभी धर्मों के सद्ग्रंथों में उसी एक परमात्मा की महिमा का वर्णन है, जिसका नाम कबीर है।
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
हम सभी एक ही कुल मालिक की संतान हैं। सत्य ज्ञान के अभाव में ही हम धर्म के नाम पर आपस में लड़ते हैं। यह लेख हमें बताता है कि सच्चा धार्मिक व्यक्ति वह है जो किसी भी बुराई में लिप्त नहीं होता, जैसे कि मांस, शराब या नशीली वस्तुओं का सेवन।
लेख के लेखक बताते हैं कि वे स्वयं हिंदू धर्म से थे और 1988 में तत्वदर्शी संत स्वामी रामदेवानंद जी महाराज से मिले। उनके द्वारा बताए गए शास्त्रों के अध्ययन से उन्हें अपनी ही भूल का एहसास हुआ। अब वे सभी भक्तों से आग्रह करते हैं कि वे सत्य को स्वीकार करें और पूर्ण परमात्मा की भक्ति करके अपना और अपने परिवार का कल्याण कराएँ।