जानिये कैसे एक कसाई बना भगत ?

कथा भगत सदना कसाई की

परमेश्वर कबीर साहिब ने हम तुच्छ बुद्धि जीवों को भगत सदना कसाई की कथा द्वारा अमृतमय ज्ञान प्रदान किया है। यह कथा बताती है कि सच्चे सतगुरु की शरण में आने से कितना बड़ा बदलाव होता है।

एक सदना नाम का कसाई था, जो अपनी आजीविका के लिए कसाई की दुकान पर बकरों को काटने का काम करता था। एक दिन उसकी मुलाकात कबीर साहिब से हुई। सदना ने उनका सत्संग सुना और गहराई से प्रभावित हो गया। सत्संग सुनकर उसे अपने पापमय कर्मों का ज्ञान हुआ और उसने कबीर जी से नाम दीक्षा लेकर उधार की प्रार्थना की। उसने विनती की – “गुरुदेव, क्या मेरे जैसे पापी कसाई का भी उद्धार हो सकता है?”

कबीर साहिब ने समझाया – “सदना, नौका में चाहे घास रखो या पत्थर, वह पार कर देती है। इसी प्रकार यदि तुम भक्ति करोगे तो कल्याण हो जाएगा। परंतु आगे ऐसे पापपूर्ण कर्म नहीं करने।” सदना ने रोते हुए कहा – “गुरुदेव, मैं यह काम कैसे छोड़ दूँ? यही मेरी जीविका है, मेरे बालक भूखे मर जाएँगे।”

कबीर साहिब ने कहा – “दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। यदि कल्याण चाहते हो तो मर्यादा निभानी पड़ेगी।” सदना ने बहुत विनती की तो कबीर जी ने उसकी लगन देखकर कहा – “वचन दो कि कितने बकरे रोज काटोगे?” सदना ने सोचा कि रोज 10–20 ही काटता हूँ, चलो 100 का वचन देता हूँ। उसने कहा – “गुरुदेव, मैं 100 से अधिक बकरे कभी नहीं काटूँगा।”

सदना ने भक्ति शुरू कर दी। कुछ दिन बाद उस नगर के राजा की लड़की की शादी थी। मुसलमान राजा था और विवाह में मांस का भोजन चल रहा था। उसके मालिक ने सदना को बकरे काटने का आदेश दिया। दिनभर में सदना ने सौ बकरे काट दिए। उसने मन ही मन शोक किया कि आज मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो गई, सौ बकरे कट गए। उसने हथियार रख दिए।

इसी बीच कबीर साहिब व्यापारी का रूप धारण कर उसके मालिक के पास पहुँचे और कहा कि रोज़ 30–40 बकरों का सौदा करना चाहता हूँ। परंतु अभी भूख लगी है, एक स्वस्थ बकरा काटकर भोजन बना दो। मालिक ने आदेश दिया कि सदना तुरंत बकरा काटे।

अब सदना द्वंद्व में पड़ गया। यदि बकरा काटता तो गुरुजी का वचन टूट जाता, और यदि नहीं काटता तो मालिक नौकरी से निकाल देता। उसने सोचा कि पूरा न काटकर केवल गर्दन पर हल्की चोट कर दूँ। जैसे ही उसने ऐसा किया, तब परमात्मा की शक्ति से वह बकरा बोल उठा“सदना, मर्यादा मत तोड़। मैंने तेरा गला काटा था, पर वैसे नहीं जैसे तू आज मेरा काटना चाहता है। देख लेना, यदि तू ऐसा करेगा तो अगली बार मैं भी तेरा गला इसी तरह काटूँगा।”

सदना यह सुनकर काँप गया और बकरा काटने से इनकार कर दिया। मालिक क्रोधित हो गया और उसने सदना के दोनों हाथ काट दिए तथा उसे घर से निकाल दिया।

कुछ महीने इलाज करवाकर सदना ने सोचा कि अब क्या करे। उसे याद आया कि गुरुजी ने कहा था – “मैं जगन्नाथ मंदिर में रहता हूँ, जब भी मिलना हो वहाँ आ जाना।” वह जगन्नाथ की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक गाँव में नम्बरदार के घर रात गुजारने पहुँचा। नम्बरदार ने उसे भोजन और ठहरने की व्यवस्था दी। लेकिन रात में नम्बरदार की पत्नी, जिसका चरित्र खराब था, ने सदना को गलत काम के लिए उकसाया। सदना ने विनम्रता से कहा – “माँ, मैं बहुत दुखी हूँ, मुझे रात काटने दो। यदि तुम्हें आपत्ति है तो मैं अभी चला जाता हूँ।”

महिला ने अपनी बेइज्जती समझी और शोर मचा दिया कि सदना बुरा व्यवहार करना चाहता है। सुबह उसे राजा के सामने पेश किया गया। झूठी गवाही के कारण राजा ने आदेश दिया कि सदना को मीनार में चिन दिया जाए।

जब लोग सदना को दीवार में चिन रहे थे तो कोई कह रहा था – “देखो, यह नीच जगन्नाथ जाने की बात करता था, कैसा पाखंडी है।” यह सुनकर सदना की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने कहा – “गुरुदेव, मैं तो नीच हूँ, चाहे इससे भी बुरी मौत मरता। पर यह मुझे आपका भक्त कहकर बदनाम कर रहे हैं। मालिक, अब आपकी भक्ति की लाज आपके हाथ में है।”

इतना कहते ही वहाँ जोरदार धमाका हुआ। मीनार फट गई और उसकी ईंटें अन्यायकारी राजा और मंत्रियों के सिर पर गिरीं। नम्बरदार की पत्नी के भी स्तन कट गए। और चमत्कार यह हुआ कि सदना के दोनों हाथ फिर से पूरे हो गए।

सदना भाव-विभोर होकर पुकार उठा –
“बोलो सतगुरुदेव जी की जय हो।”

कबीर साहिब का वचन सदा सत्य सिद्ध हुआ।


कबीर वाणी
“जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।
गैल गेल लाग्या फिरूँ, जब लग धरती आकाश।।

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