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ब्रह्मा, विष्णु और शिव के माता-पिता कौन हैं?
अधिकांश लोग मानते हैं कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी ही जगत के रचयिता, पालक और संहारकर्ता हैं। परंतु पवित्र श्रीमद्देवी भागवत महापुराण में स्पष्ट प्रमाण मिलता है कि ये तीनों देव स्वयं भी जन्म और मृत्यु से बंधे हुए हैं, और इनके माता-पिता दुर्गा (प्रकृति) तथा ब्रह्म (काल/सदाशिव) हैं।
देवी महापुराण का प्रमाण
श्रीमद्देवी भागवत पुराण (तीसरा स्कंद, अध्याय 1, पृष्ठ 114-118, गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशन) में राजा परीक्षित ने व्यास जी से पूछा – “हे महामुने! यह ब्रह्माण्ड किसने रचा? ब्रह्मा, विष्णु या शिव?”
व्यास जी ने उत्तर दिया कि उन्होंने यह प्रश्न स्वयं नारद जी से किया था। नारद जी ने जब अपने पिता ब्रह्मा जी से पूछा तो ब्रह्मा जी ने कहा –
“बेटा, मैं तो कमल के फूल पर बैठा था, मुझे यह भी नहीं पता कि मैं कहाँ से उत्पन्न हुआ हूँ। हजारों वर्षों तक मैंने पृथ्वी का अन्वेषण किया लेकिन अंत नहीं मिला। फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो। मैंने तप किया, फिर सृष्टि करने का आदेश मिला। उस समय मधु और कैटभ नामक राक्षस आ गए। भयभीत होकर मैं कमल के डंठल से नीचे उतरा, जहाँ भगवान विष्णु शेष शैय्या पर अचेत पड़े थे। तभी उनमें से एक देवी प्रकट हुई — वह थीं प्रकृति दुर्गा।”
फिर विष्णु जी चेतना में आए और कुछ ही देर बाद शिव जी भी वहाँ उपस्थित हो गए। देवी दुर्गा ने तीनों को विमान पर बैठाया और ब्रह्मलोक ले गईं।
विष्णु जी का कथन
पृष्ठ 119-120 पर विष्णु जी ने ब्रह्मा और शिव जी से कहा –
“यह देवी हम तीनों की माता है। यही जगत जननी है, यही प्रकृति है। जब मैं छोटा बालक था तब यह मुझे पालने में झुला रही थी। हम तीनों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) इसी देवी की संतान हैं।”
पृष्ठ 123 पर विष्णु जी ने देवी की स्तुति करते हुए कहा –
“देवी, तुम शुद्ध स्वरूपा हो। यह सारा संसार तुमसे ही प्रकट हुआ है। मैं, ब्रह्मा और शंकर — हम सभी तुम्हारी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा जन्म और मृत्यु होता है, हम नाशवान हैं। केवल तुम ही नित्य हो, जगत जननी हो, प्रकृति देवी हो।”
शिव जी का स्वीकार
शिव जी ने कहा –
“यदि विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न हुए ब्रह्मा भी तुम्हारे बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हूँ?”
इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु और शिव — तीनों ने स्वीकार किया कि वे दुर्गा देवी की संतान हैं।
देवी का कथन
पृष्ठ 125 पर ब्रह्मा जी ने पूछा – “माता! वेदों में जो ब्रह्म कहा गया है, क्या वह आप ही हैं या कोई और?”
देवी ने उत्तर दिया – “मैं और ब्रह्म (काल/सदाशिव) दोनों एक ही हैं।”
फिर पृष्ठ 129 पर देवी ने कहा –
“जब भी कोई कठिन कार्य आएगा, तब तुम मुझे और ब्रह्म का स्मरण करना। हम दोनों की पूजा से ही कार्य सिद्ध होगा।”
निष्कर्ष : देवी भागवत पुराण के आधार पर
- दुर्गा (प्रकृति) और ब्रह्म (काल) – ये दोनों ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव के माता-पिता हैं।
- ब्रह्मा, विष्णु और शिव नाशवान हैं, अमर या सर्वशक्तिमान नहीं हैं।
- इन तीनों देवताओं का विवाह भी स्वयं दुर्गा (प्रकृति देवी) ने कराया।
- गीता (अध्याय 7, श्लोक 12) में भी कहा गया है कि सत्वगुण विष्णु, रजोगुण ब्रह्मा और तमोगुण शिव — ये सभी काल (ब्रह्म) के द्वारा नियन्त्रित हैं।
गीता अध्याय 7 श्लोक 12
“ये चैव सात्त्विकाः भावाः राजसाः तामसाश्च ये।
मत्त एवानि तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि।।
अर्थ:
सत्वगुण (विष्णु से स्थिति), रजोगुण (ब्रह्मा से उत्पत्ति) और तमोगुण (शिव से संहार) — ये सब मेरे (काल/ब्रह्म) से ही नियन्त्रित होते हैं, परन्तु वास्तव में मैं इनमें नहीं और ये मुझमें नहीं हैं।
सार
पवित्र श्रीमद्देवी भागवत पुराण और गीता के प्रमाण से स्पष्ट है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव स्वयं जन्म-मरण से बंधे नाशवान देवता हैं। उनके माता-पिता दुर्गा (प्रकृति) और ब्रह्म (काल/सदाशिव) हैं।
इसलिए इन्हें सर्वशक्तिमान न मानकर, उस परमेश्वर की भक्ति करनी चाहिए जो इनसे भी उच्च है — वही है पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब।
।। सत साहेब ।।