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पवित्र ऋग्वेद में सृष्टि रचना का प्रमाण
सृष्टि किसने बनाई? यह प्रश्न हर धर्मग्रंथ में उठता है। पवित्र ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 90 (पुरुष सूक्त) में इसका स्पष्ट वर्णन है। इसमें तीन प्रकार के पुरुष (प्रभु) बताए गए हैं —
- क्षर पुरुष (ब्रह्म/काल)
- अक्षर पुरुष (परब्रह्म)
- पूर्ण पुरुष (परम अक्षर ब्रह्म, सतपुरुष कबीर साहेब)
इनका विवरण क्रमशः वेद मंत्रों में मिलता है।
क्षर पुरुष (काल ब्रह्म) – मंडल 10 सूक्त 90 मंत्र 1
“सहश्रीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्…”
अनुवाद – यह विराट पुरुष काल ब्रह्म है। जिसके हजार सिर, हजार आँखें और हजार पाँव बताए गए हैं। यही काल भगवान 21 ब्रह्माण्डों को पूर्ण नियंत्रण में रखता है और स्वयं इन सबसे अलग इक्कीसवें लोक (काललोक) में रहता है।
भावार्थ – यह वर्णन गीता अध्याय 11 में अर्जुन को दिखाए गए विराट रूप से मेल खाता है। यह काल (ब्रह्म) सब जीवों को अपने वश में रखता है, सबको जन्म–मृत्यु के बंधन में डालता है।
अक्षर पुरुष (परब्रह्म) – मंडल 10 सूक्त 90 मंत्र 2
“पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्…”
अनुवाद – यह अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म है। इसमें सब उत्पन्न और भावी प्राणी स्थित रहते हैं। यह कुछ प्रभु-लक्षणों वाला है, लेकिन यह भी पूर्ण मोक्ष नहीं दे सकता।
भावार्थ – परब्रह्म का लोक काल के लोक से ऊपर है। यहाँ जन्म–मृत्यु काल की तुलना में लंबी अवधि पर होती है, लेकिन फिर भी चौरासी लाख योनियों का बंधन बना रहता है।
पूर्ण पुरुष (सतपुरुष, कबीर परमेश्वर) – मंडल 10 सूक्त 90 मंत्र 3
“एतावानस्य महिमातो ज्यायांश्च पुरुषः…”
अनुवाद – अक्षर पुरुष की महिमा इतनी ही है, परंतु पूर्ण पुरुष (परम अक्षर ब्रह्म) इससे भी बड़ा है। यह समस्त ब्रह्माण्डों का स्वामी है। तीन लोक (सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक) इसी पूर्ण प्रभु के पवित्र धाम हैं।
भावार्थ – यह स्पष्ट हुआ कि काल और परब्रह्म भी पूर्ण परमात्मा से छोटे हैं। वे स्वयंभू नहीं, बल्कि उनकी उत्पत्ति भी उसी पूर्ण प्रभु से हुई है। यही कबीर परमेश्वर हैं।
कबीर साहेब का प्रमाण – मंडल 10 सूक्त 90 मंत्र 4-5
मंत्र 4 में बताया गया कि वही परम पुरुष तीन दिव्य लोकों (सत्यलोक, अलखलोक, अगमलोक) में स्वयं प्रकट होता है और सभी अन्य प्रभुओं (क्षर व अक्षर पुरुष) से ऊपर है।
मंत्र 5 में कहा गया कि उसी पूर्ण परमात्मा से विराट (काल ब्रह्म) की उत्पत्ति हुई। यही गीता अध्याय 3 श्लोक 15 और अथर्ववेद 4/1/3 में भी प्रमाणित है।
बंधन छुड़ाने वाला बंदी छोड़ – मंडल 10 सूक्त 90 मंत्र 15
“सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कताः…”
अनुवाद – सात संख्यक ब्रह्माण्ड परब्रह्म के हैं और इक्कीस ब्रह्माण्ड काल ब्रह्म के। इन लोकों में बंधे जीव कर्मों की आग में जलते रहते हैं। केवल वही परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) अपने भक्तों को काल के जाल से छुड़ाकर बंधनों से मुक्त करता है।
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में भी लिखा है –
“कविरंघारिसि…” — अर्थात् पापों का शत्रु, बंधनों का नाश करने वाला कबीर परमेश्वर है।
सत्यभक्ति से सत्यलोक की प्राप्ति – मंडल 10 सूक्त 90 मंत्र 16
यहाँ वर्णन है कि जो भक्त शास्त्रविहीन पूजा छोड़कर शास्त्रनुकूल सत्यभक्ति करते हैं, वे काल के ऋण से मुक्त होकर अपनी भक्ति की कमाई के बल पर उस पूर्ण सुखदायक परमात्मा को प्राप्त करते हैं और सत्यलोक में चले जाते हैं।
अन्य संतों की वाणी से पुष्टि
- गरीबदास साहेब जी:
“जाके अर्ध रूम पर सकल पसारा,
ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।” - दादू साहेब जी:
“जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सजनहार।।“ - गुरु नानक देव जी (गुरुग्रंथ साहेब पृष्ठ 721, राग तिलंग):
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।”
निष्कर्ष
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 90 और अन्य वेदों से सिद्ध हुआ कि –
- तीन प्रभु हैं – क्षर पुरुष (ब्रह्म/काल), अक्षर पुरुष (परब्रह्म) और परम अक्षर पुरुष (पूर्ण ब्रह्म, सतपुरुष कबीर)।
- ब्रह्म और परब्रह्म नाशवान और सीमित हैं, परंतु पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और जन्म-मृत्यु से परे हैं।
- वही सतपुरुष शिशु रूप में प्रकट होकर तत्वज्ञान (कबीर वाणी) देते हैं और जीवों को काल के बंधन से छुड़ाकर सत्यलोक ले जाते हैं।
।। सत साहेब ।।