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पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी का ज्ञान किसने कहा?
महाभारत का युद्ध केवल एक धर्मयुद्ध नहीं था, बल्कि कौरव और पाण्डव परिवारों के बीच सम्पत्ति–विवाद था। कौरव पाण्डवों को आधा राज्य तक देने के लिए तैयार नहीं थे। जब हालात युद्ध की ओर बढ़ने लगे, तब प्रभु श्री कृष्ण जी ने शांति स्थापित करने के लिए तीन बार प्रयास किए।
उन्होंने दोनों पक्षों को समझाया कि युद्ध से केवल विनाश ही होगा—अनगिनत महिलाएँ विधवा होंगी, बच्चे अनाथ होंगे और समाज में महापाप फैलेगा। परंतु दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे।
पाँच गाँव का प्रस्ताव
अंततः श्री कृष्ण जी ने कौरवों से कहा –
“पाण्डव केवल पाँच गाँव मांग रहे हैं। यदि यह दे दिए जाएँ तो युद्ध टल सकता है।”
परंतु दुर्योधन ने अहंकार में कहा –
“पाण्डवों को सुई की नोक बराबर भी भूमि नहीं मिलेगी। यदि राज्य चाहिए तो कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध करके लेना होगा।”
यह सुनकर श्री कृष्ण जी नाराज हुए और दुर्योधन को चेतावनी दी कि यह निर्णय विनाशकारी सिद्ध होगा। इतना ही नहीं, दुर्योधन ने तो यहाँ तक कह दिया कि श्री कृष्ण जी को पकड़कर कारागार में डाल दिया जाए। उसी समय श्री कृष्ण जी ने अपना विराट रूप दिखाया, जिससे समस्त कौरव और उनकी सेना भयभीत हो गई।
गीता का उपदेश और “काल” का प्रकट होना
जब कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में अर्जुन ने अपने ही सगे-संबंधियों को सामने देखकर युद्ध से इंकार कर दिया, तब गीता का ज्ञान कहा गया।
अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता बोलने वाला प्रभु कहता है:
“अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ और अब सभी लोकों का संहार करने के लिए प्रकट हुआ हूँ।”
विचार करें—
यदि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने स्वयं कहा होता, तो वे “अब प्रकट हुआ हूँ” नहीं कहते, क्योंकि वे तो पहले से ही अर्जुन के सामने खड़े थे।
अध्याय 11 श्लोक 47 में स्पष्ट कहा गया है:
“यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा।”
इससे सिद्ध होता है कि गीता का उपदेश काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने प्रेतवत प्रवेश करके श्री कृष्ण जी के माध्यम से दिया था।
गीता अध्याय 7 श्लोक 24–25 का प्रमाण
गीता ज्ञानदाता कहता है:
“बुद्धिहीन लोग मुझे घटिया रूप में समझते हैं। मैं कभी मनुष्य की तरह किसी के सामने प्रकट नहीं होता। मैं योगमाया से छिपा रहता हूँ।”
जबकि श्री कृष्ण जी तो साक्षात् सबके सामने थे और कभी उन्होंने यह नहीं कहा कि वे योगमाया से छिपे रहते हैं। अतः गीता ज्ञानदाता श्री कृष्ण नहीं, बल्कि काल है।
विराट रूप का रहस्य
हर मनुष्य का भी एक विराट रूप होता है। भक्ति शक्ति से यह अधिक तेजस्वी होता जाता है। श्री कृष्ण जी ने भी अपने पूर्व जन्म की भक्ति शक्ति से विराट रूप दिखाया, परंतु वह काल ब्रह्म के विराट रूप से कम तेजस्वी था।
गीता अध्याय 11 में जो विराट रूप दिखाया गया, वह काल ब्रह्म का वास्तविक रूप था। श्री कृष्ण जी केवल माध्यम थे।
क्यों नहीं बोले श्री कृष्ण पुनः गीता?
महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से प्रार्थना की कि वही गीता ज्ञान पुनः कहें। तब श्री कृष्ण जी ने कहा –
“वह सब पुनः उसी रूप में कहना मेरे वश की बात नहीं है। उस समय मैंने योगयुक्त होकर वह परमात्म तत्व का वर्णन किया था।”
(महाभारत, आश्रवः 1612.13)
यह भी प्रमाण है कि गीता ज्ञान स्वयं श्री कृष्ण जी का नहीं था, बल्कि काल ब्रह्म ने प्रवेश करके कहा था।
निष्कर्ष
- गीता ज्ञानदाता “काल ब्रह्म” है, श्री कृष्ण जी नहीं।
- श्री कृष्ण जी साक्षात् विष्णु अवतार थे, वे युद्ध विरोधी और शांति प्रिय थे।
- काल ने प्रेतवत प्रवेश करके गीता का उपदेश दिया, ताकि युद्ध हो सके और अधिक प्राणियों का विनाश हो।
- गीता ज्ञान के श्लोकों में स्वयं प्रमाण है कि बोलने वाला “काल” है।
इसलिए हमें गीता का सही रहस्य समझना चाहिए और यह जानना चाहिए कि मुक्ति केवल पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की शरण से ही संभव है।
।। सत साहेब ।।