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1. तीनों गुण कौन हैं?
- रजोगुण (सृजन शक्ति) – ब्रह्मा जी
- कार्य: सृष्टि का निर्माण करना।
- स्वभाव: कामना, वासना, इच्छा की प्रधानता।
- सत्वगुण (पालन शक्ति) – विष्णु जी
- कार्य: सृष्टि का पालन करना।
- स्वभाव: धर्म, दान, पुण्य, नियम पालन, लेकिन लोक सुख की आसक्ति।
- तमोगुण (संहार शक्ति) – शिव जी
- कार्य: संहार (विनाश) करना।
- स्वभाव: क्रोध, मद, नाशकारी वृत्ति।
ये तीनों गुण काल (ब्रह्म/ज्योति निरंजन) और उसकी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए तीनों ही नाशवान हैं।
2. शास्त्र प्रमाण
(क) शिव महापुराण (रुद्र संहिता, अध्याय 9, पृष्ठ 110 – गीताप्रेस गोरखपुर)
“ब्रह्मा-विष्णु-शंकर तीनों देवताओं में गुण हैं, और ये त्रिगुणी देव ही जीवों को जन्म-मरण में बाँधते हैं।”
(ख) देवी भागवत महापुराण (स्कंध 3, अध्याय 5, पृष्ठ 123)
- विष्णु बोले: “मैं, ब्रह्मा और शिव – हम सब तुम्हारी (दुर्गा) की कृपा से विद्यमान हैं। हम जन्म-मृत्यु वाले हैं, केवल तुम ही सनातनी हो।”
- शिव बोले: “हे मात! मुझे तमोगुणी, ब्रह्मा को रजोगुणी और विष्णु को सत्वगुणी क्यों बनाया?”
3. गीता का प्रमाण (अध्याय 7 श्लोक 15–23)
- श्लोक 15: त्रिगुणमयी माया से मोहित होकर मूर्ख लोग मुझ (काल-ब्रह्म) की भक्ति नहीं करते।
- श्लोक 20: जिनका ज्ञान हर लिया गया है वे त्रिगुणमयी देवताओं की पूजा करते हैं।
- श्लोक 21–22: भक्त जिस देवता की पूजा करता है, मैं (काल) उसकी श्रद्धा उसी देवता में स्थिर करता हूँ और वही देवता मेरी दी हुई थोड़ी शक्ति से उसकी इच्छाएँ पूरी करता है।
- श्लोक 23: “परंतु उन मंदबुद्धि लोगों का फल नाशवान है। देवताओं की पूजा करने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, परंतु वे मोक्ष नहीं पाते।”
4. निष्कर्ष
- ब्रह्मा = रजोगुण
- विष्णु = सत्वगुण
- शिव = तमोगुण
तीनों गुण जीव को भोग-वासनाओं, लोक-लालसाओं और पुनर्जन्म के चक्र में बाँधे रखते हैं।
गीता अध्याय 7 और 15 सिद्ध करते हैं कि इनकी भक्ति से केवल स्वर्ग या थोड़े बहुत लाभ तो मिलते हैं, परंतु पूर्ण मोक्ष नहीं मिलता।
मोक्ष केवल तीनों गुणों से परे – उस पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष कबीर साहेब) की भक्ति से ही संभव है, जिनका उल्लेख गीता अध्याय 18 श्लोक 66 और अध्याय 15 श्लोक 17 में किया गया है।