कबीर साहेब V/s गोरखनाथ..


साहेब कबीर और गोरखनाथ की गोष्ठी – सिद्धियों से ऊपर तत्वज्ञान

गोरखनाथ का काशी आगमन

एक बार सिद्ध योगी गोरखनाथ काशी (वाराणसी) आए। उद्देश्य था – संत रामानंद जी से शास्त्रार्थ करना। उस समय बालक रूप में परमेश्वर कबीर साहेब भी अपने गुरु रामानंद जी के साथ वहाँ उपस्थित थे।

गोरखनाथ जी ने चर्चा की चुनौती दी। इस पर बालक कबीर जी ने कहा –
“नाथ जी! पहले चर्चा मेरे साथ करो, फिर मेरे गुरुजी से।”

गोरखनाथ चौंक गए –
“अरे! तू तो बालक है, कब से वैरागी बन गया?”


कबीर साहेब का उत्तर

कबीर जी ने बड़े शांत भाव से उत्तर दिया –

“नाथ जी! जब कोई सृष्टि नहीं थी, धरती-आकाश नहीं था, तब भी मैं था।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव का जन्म नहीं हुआ था, तब भी मैं विद्यमान था।
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग असंख्य बार बीत चुके, पर मेरी आयु कभी कम नहीं हुई।
मैं वही अजर-अमर परमात्मा हूँ।”


सिद्धियों की परीक्षा

गोरखनाथ ने अपनी सिद्धि दिखाते हुए कहा –
“यदि तू इतना महान है तो मेरे बराबर आकर दिखा।”
और वे अपने त्रिशूल के ऊपर बैठ गए।

तब कबीर साहेब ने अपनी पूर्ण शक्ति का प्रदर्शन किया। जेब से कच्चा धागा निकाला, उसे आकाश की ओर फेंका और धागा सीधा खड़ा हो गया। कबीर जी उसी धागे पर चढ़कर 150 फुट ऊँचाई पर बैठ गए और कहा –
“आओ नाथ जी! अब बराबर में बैठकर चर्चा करो।”

गोरखनाथ लाख प्रयत्नों के बाद भी ऊपर न जा सके। समझ गए कि यह कोई साधारण योगी या संत नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर हैं।


गोरखनाथ की शरणागति

गोरखनाथ ने कबीर जी के चरणों में गिरकर कहा –
“हे परमपुरुष! कृपा करके अपना परिचय दीजिए।”

कबीर साहेब ने अपना रहस्य बताया –

  • “मैं अविगत स्थान (सतलोक) से आया हूँ।”
  • “लहरतारा तालाब में कमल पर प्रकट हुआ।”
  • “न मेरा जन्म है, न मृत्यु।”
  • “मेरा वास्तविक नाम कबीर है।”

फिर उन्होंने गोरखनाथ को बताया कि अलख-निरंजन (काल) का जाल ही उनकी साधना है, जिससे मुक्ति असंभव है। केवल सतनाम और सारनाम से ही अमर लोक (सतलोक) प्राप्त हो सकता है।

गोरखनाथ ने कबीर जी को पूर्ण परमात्मा स्वीकार किया और शिष्यत्व ग्रहण किया। उन्होंने सिद्धियों पर आधारित साधना त्यागकर कबीर साहेब से सतनाम लेकर वास्तविक भक्ति मार्ग अपनाया।


गीता का प्रमाण

गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 और अध्याय 18 श्लोक 66 भी यही बताते हैं कि –

  • ब्रह्मा, विष्णु, शिव और ब्रह्म (काल) नाशवान हैं।
  • उन सबसे अलग एक उत्तम पुरुष (पूर्ण परमात्मा) है जो अविनाशी है।
  • वही परम गति देने वाला है।

निष्कर्ष

गोरखनाथ और कबीर साहेब की गोष्ठी यह सिद्ध करती है कि –

  • सिद्धियाँ भले ही चमत्कारी हों, पर वे मुक्ति नहीं देतीं।
  • पूर्ण मोक्ष केवल पूर्ण परमात्मा कबीर की शरण से ही संभव है।
  • कबीर साहेब ही अजर-अमर सतपुरुष हैं, जो स्वयं धरती पर आए और तत्वज्ञान देकर जीवों को काल जाल से छुड़ाते हैं।

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