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कौन तथा कैसा है कुल का मालिक?
कुल के मालिक का स्वरूप
जिन-जिन महापुरुषों और संतों ने परमात्मा को प्राप्त किया है, उन्होंने एक ही सत्य बताया है –
कुल का मालिक एक है और वह मानव सदृश तेजोमय शरीरधारी है।
उसके शरीर से ऐसा दिव्य प्रकाश प्रस्फुटित होता है कि एक-एक रोमकूप का तेज़ करोड़ों सूर्यों और चंद्रमाओं से भी अधिक है। उसी परमात्मा ने संपूर्ण सृष्टि का निर्माण किया और नाना रूप रचे।
वह अलग-अलग भाषाओं और युगों में विभिन्न नामों से जाना गया –
- कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में)
- हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रंथ साहिब, पृष्ठ 721)
- सत कबीर (धर्मदास जी की वाणी)
- बंदी छोड़ कबीर (गरीबदास जी के ग्रंथ)
- कबीरा, खबीरा (कुरान शरीफ, सूरह फुरकान 25:19, 21, 52, 58, 59 में)
इसके अलावा उसे उपमात्मक नामों से भी पुकारा गया – अनामी पुरुष, अगम पुरुष, अलख पुरुष, सतपुरुष, अकाल मूर्ति, शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म आदि।
परमात्मा निराकार नहीं है
कई अपूर्ण ज्ञानी संत और ऋषि कहते हैं कि परमात्मा निराकार है और केवल उसका प्रकाश देखा जा सकता है। यह वैसा ही है जैसे कोई अंधा गुरु अपने शिष्यों से कहे कि चंद्रमा निराकार है, बस उसकी रोशनी ही दिखती है।
लेकिन वास्तविक सत्य यह है कि –
जैसे प्रकाश के बिना सूर्य-चंद्रमा नहीं हो सकते, वैसे ही परमात्मा भी निराकार नहीं बल्कि साकार है। उसका शरीर है, वह प्रकाशमय और मानव रूपधारी है।
यदि कोई केवल प्रकाश देखकर कहे कि यही परमात्मा है, तो यह अधूरा ज्ञान है।
उदाहरण:
- जैसे हलवे की खुशबू से पेट नहीं भरता, असली स्वाद तो हलवा खाने से ही आता है।
- उसी प्रकार परमात्मा का प्रकाश देखना ही परमात्मा की प्राप्ति नहीं है। असली प्राप्ति तब है जब तत्वदर्शी संत के मार्ग से साधना करके उस तेजोमय पूर्ण पुरुष के प्रत्यक्ष दर्शन हों।
कौन संत सत्य है और कौन असत्य?
यह प्रश्न भी उठता है कि इतने संतों के बीच सही मार्ग कौन-सा है?
जैसे किसी अपराध पर अलग-अलग वकील अलग धाराएं बताते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय संविधान से होता है।
इसी तरह –
सत्य-असत्य का निर्णय केवल शास्त्रों से होगा।
श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक 23–24 स्पष्ट कहते हैं कि शास्त्रविरुद्ध साधना व्यर्थ है।
अधूरी साधना के अनुभव
कुछ योगी और साधक हठयोग द्वारा ध्यान में प्रकाश देखते हैं। परंतु वह पूर्ण सत्य नहीं होता।
वह केवल प्रतिबिंब है – जैसे तालाब के जल में सूर्य का प्रतिबिंब दीवार पर दिखे, पर असली सूर्य न दिखे।
इसी तरह प्रकाश दिखना मात्र परमात्मा की प्राप्ति नहीं है।
पूर्ण संतों की गवाही
जिन संतों ने सच में उस तेजोमय पूर्ण परमात्मा को देखा और प्राप्त किया, वे हैं –
- धर्मदास साहेब जी
- दादू साहेब जी
- मलूकदास जी
- गरीबदास साहेब जी
- गुरु नानक देव जी
- घीसादास साहेब जी
इन सभी ने एक ही स्वर में कहा – कुल का मालिक साकार है, मानव सदृश तेजोमय शरीरधारी है और वही सतपुरुष कबीर साहेब हैं।
निष्कर्ष
परमात्मा को निराकार कहने वाले अज्ञान फैला रहे हैं।
पूर्ण परमात्मा साकार है, उसका स्वरूप मानव जैसा प्रकाशमय है, उसका नाम कबीर साहेब है।
तत्वदर्शी संत की शरण लेकर ही साधक वास्तविक दर्शन कर सकता है और शाश्वत लोक (सतलोक) में प्रवेश पा सकता है।