The Best Fluffy Pancakes recipe you will fall in love with. Full of tips and tricks to help you make the best pancakes.
गुरु महिमा – कबीर साहेब की वाणी और भावार्थ
संत कबीर साहेब ने अपनी अमृत वाणी में गुरु की महिमा का अद्भुत वर्णन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सच्चा गुरु ही वह पारस है जो शिष्य के जीवन को सोने से भी कीमती बना देता है। बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं, और बिना ज्ञान के मोक्ष असंभव है।
नीचे प्रस्तुत है कबीर साहेब की वाणी और उसका सरल भावार्थ –
1. गुरु से ज्ञान प्राप्ति का महत्व
“गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥”
भावार्थ: गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपना सिर तक अर्पित करना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। लेकिन जो जीव अभिमान में रह जाते हैं, वे भक्ति-पोत में बैठकर पार नहीं हो पाते।
2. गुरु की आज्ञा का पालन
“गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥”
भावार्थ: सच्चा संत वही है जो गुरु की आज्ञा अनुसार चलता है। ऐसा साधक जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
3. गुरु और पारस का अंतर
“गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥”
भावार्थ: पारस पत्थर लोहे को सोना बना सकता है, लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है।
4. गुरु का ज्ञान जल
“कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम-जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥”
भावार्थ: शिष्य जन्म-जन्मांतरों के दोषों से भरा हुआ है। गुरु का ज्ञान जल उन दोषों को पल भर में धो देता है।
5. गुरु कुम्हार, शिष्य घड़ा
“गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥”
भावार्थ: जैसे कुम्हार घड़े को आकार देता है, वैसे ही गुरु शिष्य की बुराइयों को निकालकर उसे श्रेष्ठ बनाता है।
6. गुरु ही सर्वोत्तम दाता
“गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥”
भावार्थ: गुरु से बड़ा दानी कोई नहीं। वह अपने शिष्य को वह अमूल्य ज्ञान देता है जो तीनों लोकों की संपत्ति से भी अधिक मूल्यवान है।
7. दूरी पर भी गुरु का साथ
“जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर।
एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर॥”
भावार्थ: चाहे गुरु काशी में हों और शिष्य समुद्र किनारे, यदि गुरु का गुण शिष्य के भीतर है तो वह पलभर भी गुरु को नहीं भूलता।
8. गुरु को सिर पर मुकुट मानो
“गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं॥”
भावार्थ: जो शिष्य गुरु की आज्ञा में चलता है, उसे तीनों लोकों से कोई भय नहीं होता।
9. प्रेम से निकटता
“गुरु सो प्रीतिनिवाहिये, जेहि तत निबहै संत।
प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत॥”
भावार्थ: गुरु के साथ प्रेम का निर्वाह करें। प्रेम से गुरु-शिष्य का संबंध गहरा होता है, प्रेम बिना निकट होते हुए भी दूरी बनी रहती है।
10. गुरु-मूर्ति का ध्यान
“गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर।
आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥”
भावार्थ: जैसे चकोर चन्द्रमा को निहारता है, वैसे ही शिष्य को हर समय गुरु-मूर्ति का ध्यान करना चाहिए।
11. गुरु में कोई भेद नहीं
“गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं।
उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं॥”
भावार्थ: गुरु की मूर्ति में कोई दूसरा भेद मत मानो। सच्ची सेवा और श्रद्धा से अज्ञान का अंधकार मिट जाता है।
12. गुरु सेवा से मिलते गुण
“ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास।
गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास॥”
भावार्थ: ज्ञान, भक्ति, प्रेम, दया और सच्ची श्रद्धा – ये सब गुरु की सेवा से ही प्राप्त होते हैं।
13. गुरु गुण अनंत
“सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥”
भावार्थ: चाहे पूरी धरती कागज बन जाए और सातों समुद्र स्याही बन जाएं, फिर भी गुरु के गुण लिखे नहीं जा सकते।
14. विद्वानों की सीमा
“पंडित यदि पढि गुनि मुये, गुरु बिना मिलै न ज्ञान।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सत्त शब्द परमान॥”
भावार्थ: बड़े-बड़े विद्वान भी गुरु के बिना वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। और ज्ञान के बिना मुक्ति असंभव है।
15. भ्रम छोड़ो, गुरु चरण पकड़ो
“कहै कबीर तजि भरत को, नन्हा है कर पीव।
तजि अहं गुरु चरण गहु, जमसों बाचै जीव॥”
भावार्थ: भ्रम और अहंकार छोड़कर शिशु समान सरल बनो और गुरु के चरणों की शरण लो, तभी यमराज से बचाव होगा।
16 से 26
कबीर साहेब आगे भी गुरु-शिष्य संबंध की गहराई बताते हैं –
- गुरु के प्रेम के बिना शिष्य का कल्याण संभव नहीं।
- गुरु शिष्य को अज्ञान से निकालकर दिव्य ज्ञान का प्रकाश देते हैं।
- गुरु ही वह पारस है जो साधक को जन्म-मरण से पार करता है।
- ब्रह्मा, देवता और ऋषि भी जिस मुक्ति की खोज में थक गए, वह केवल सतगुरु की शरण से मिलती है।
निष्कर्ष
कबीर साहेब की यह गुरु महिमा हमें यह सिखाती है कि –
- गुरु ही जीवन का असली मार्गदर्शक है।
- केवल गुरु ही भ्रम दूर करके सच्चे ज्ञान का प्रकाश देता है।
- सच्चे गुरु की आज्ञा, प्रेम और सेवा से ही जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है।
सतगुरु ही जीवन का सबसे बड़ा धन हैं।