पितर पूजा गीता के खिलाफ जानिये कैसे ?


पितर पूजा क्यों है शास्त्रविरुद्ध? – गीता और संत वाणी से प्रमाण

आज के समय में अनेक लोग पितरों और भूत-प्रेत की पूजा करते हैं, श्राद्ध आदि कर्मकाण्ड करते हैं। परंतु क्या वास्तव में इनसे आत्मा का कल्याण होता है? शास्त्र और संत वाणी स्पष्ट कहते हैं कि यह सब व्यर्थ है और पूर्ण मोक्ष का मार्ग नहीं है।

गीता का स्पष्ट आदेश

भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गीता में पितर पूजा और भूत पूजा का खंडन किया है।
गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा गया है:

“यान्ति देवव्रता देवान् पितॄन्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।”

भावार्थ:

  • देवताओं की पूजा करने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं।
  • पितरों की पूजा करने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं।
  • भूतों की पूजा करने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं।
  • और मतानुसार पूजा करने वाले केवल काल-ब्रह्म से ही लाभान्वित होते हैं, पर मोक्ष से वंचित रह जाते हैं।

संत वाणी में चेतावनी

बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज और कबीर साहेब जी ने भी यही कहा है:

“गरीब, भूत रमै सो भूत है, देव रमै सो देव।
राम रमै सो राम है, सुनो सकल सुर भेव।।”

स्पष्ट है कि पितर या देवताओं की पूजा आत्मा को मुक्ति नहीं देती, बल्कि वही लोक पुनः प्राप्त होता है।

परमेश्वर की भक्ति ही है कल्याणकारी

गीता अध्याय 18 श्लोक 46 और 62 में यह उद्घोष है कि जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है, उसी की भक्ति करने से ही परम सिद्धि और सनातन धाम की प्राप्ति होती है।

गीता 18:62

“तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।”

अर्थात् – उस परमेश्वर की शरण में जा, जिसकी कृपा से ही परम शांति और शाश्वत धाम की प्राप्ति होती है।

अनन्य भक्ति का महत्व

गीता अध्याय 8 श्लोक 22 कहता है:

“पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया।
यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्।।”

यहां “अनन्य भक्ति” का तात्पर्य है – केवल पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष कबीर) की भक्ति करना, न कि त्रिगुणी देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) या पितरों की।

संसार रूपी पीपल का रहस्य – गीता अध्याय 15

गीता अध्याय 15 में संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष का वर्णन है:

  • श्लोक 1: इस वृक्ष की जड़ ऊपर है (पूर्ण परमात्मा) और शाखाएँ नीचे (संसार)।
  • श्लोक 2: इसकी शाखाएँ गुणों (ब्रह्मा – रजोगुण, विष्णु – सतोगुण, शिव – तमोगुण) और विकारों से फैली हुई हैं।
  • श्लोक 3-4: इस वृक्ष की सही जानकारी किसी को नहीं है। केवल तत्वज्ञान रूपी शस्त्र से इसे काटकर उस परम पद की खोज करनी चाहिए, जहाँ से आत्मा फिर लौटकर नहीं आती।

भगवान श्रीकृष्ण का उदाहरण – इन्द्र पूजा छुड़वाना

श्रीमद्भगवद गीता के अनुसार स्वयं भगवान कृष्ण ने भी इन्द्र की पूजा छुड़वाई और गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों को सच्चे परमात्मा की ओर मोड़ा।

संत गरीबदास जी कहते हैं:

“गरीब, इन्द्र चढ़ा ब्रिज डुबोवन, भीगा भीत न लेव।
इन्द्र कढ़ाई होत जगत में, पूजा खा गए देव।।”

निष्कर्ष

पितरों और भूतों की पूजा करना शास्त्रविरुद्ध है। इससे केवल क्षणिक लाभ या लोक प्राप्त होता है, मोक्ष नहीं।
पूर्ण मोक्ष और शाश्वत सुख केवल उसी परमात्मा की भक्ति से संभव है, जिसे वेद और गीता “सतपुरुष” और “कबीर परमेश्वर” कहकर प्रमाणित करते हैं।

Share your love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *