कबीर साहेब का चमत्कार : कटा हुआ सिर वापस जोड़ना जानिये कैसे..


सेऊ सम्मन की कथा – कबीर साहेब की अद्भुत लील

एक समय की बात है। पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब अचानक अपने भक्त सम्मन के घर पर पहुँचे। उनके साथ दो सेवक थे – कमाल और शेख फरीद

भक्त सम्मन का परिवार बहुत ही गरीब था। उसके घर में केवल तीन प्राणी रहते थे – स्वयं सम्मन, उसकी पत्नी नेकी, और उसका पुत्र सेऊ। गरीबी इतनी थी कि कई बार अन्न का दाना भी घर में नहीं होता था और पूरा परिवार भूखा सो जाता था। संयोग से उसी दिन भी घर में अन्न का अभाव था।


घर पर सतगुरु का आगमन और चिंता

जब कबीर साहेब घर आए तो भक्त सम्मन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने आदरपूर्वक पूछा –
“साहेब! खाने का विचार बताइए, भोजन कब करेंगे?”

कबीर साहेब ने कहा –
“भाई, भूख लगी है, भोजन बनाओ।”

यह सुनकर सम्मन भीतर गया और अपनी पत्नी नेकी से बोला –
“देखो, हमारे घर स्वयं परमात्मा पधारे हैं। जल्दी से भोजन तैयार करो।”

नेकी ने उत्तर दिया –
“घर पर तो अन्न का एक दाना भी नहीं है। मैंने पड़ोसियों से उधार माँगने की कोशिश की थी, पर किसी ने आटा नहीं दिया। सब कहने लगे – तुम्हारे गुरु जी अगर भगवान हैं तो वे ही तुम्हारा घर भर देंगे। हमें क्यों उधार देना? और लोग मजाक उड़ाने लगे।”


निराशा और नेकी का उपाय

सम्मन बहुत निराश हुआ। उसने सोचा –
“मैं कितना अभागा हूँ! आज मेरे घर स्वयं भगवान पधारे और मैं भोजन तक नहीं करवा पा रहा हूँ। क्या पाप किए होंगे मैंने, जो इतना नीच जीवन मिला!”

सम्मन रोने लगा। पत्नी नेकी ने उसे धैर्य बंधाया –
“हिम्मत रखो। रोओ मत। परमात्मा को ठेस लगेगी। वे सोचेंगे कि हमारे आने से ही दुखी हो गए।”

फिर नेकी ने सुझाव दिया –
“आज रात को तुम और बेटा सेऊ जाकर आटा ले आना। चोरी ही करनी पड़े तो कर लो, पर भोजन अवश्य बनाना है। वह भोजन हम खुद नहीं खाएँगे, केवल सतगुरु और उनके साथ आए भक्तों को ही प्रसाद देंगे।”


सेऊ का विरोध और माँ की ममता

तब बालक सेऊ बोला –
“माँ, गुरु जी तो कहते हैं कि चोरी करना पाप है। आप भी मुझे सिखाती थीं कि चोरी करने वाले का सर्वनाश होता है। अगर हम पाप करेंगे तो भजन नष्ट हो जाएगा और हमें चौरासी लाख योनियों में कष्ट भोगना पड़ेगा। यह मत कहो माँ।”

नेकी ने आँसुओं से भरी आँखों से उत्तर दिया –
“बेटा, हम अपने लिए नहीं, संतों के लिए करेंगे। नगर के लोग हमारे गुरु जी का मजाक उड़ा रहे हैं। अगर साहेब कबीर बिना भोजन किए यहाँ से चले गए तो यह नगर अनर्थ का भागी बनेगा। हमें यह पाप रोकना है। बेटा, तुम नाटियो मत। मेरी बात मानो।”

माँ की करुणा देखकर सेऊ बोला –
“माँ, रो मत। आपका पुत्र आपकी आज्ञा का पालन करेगा।”


चोरी की योजना

अर्धरात्रि में सम्मन और उसका पुत्र सेऊ एक सेठ की दुकान पर पहुँचे। दीवार में छेद कर अंदर जाने की कोशिश की।

सम्मन ने कहा –
“पुत्रा, मैं अंदर जाऊँगा। अगर कोई देख ले तो धीरे से कह देना कि मैं तुम्हें आटा पकड़ा दूँगा और तुम भाग जाना।”

सेऊ बोला –
“नहीं पिता जी, मैं अंदर जाऊँगा। अगर मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझकर मुझे माफ कर देंगे।”


सेऊ की गिरफ्तारी

सेऊ दुकान में घुसा और लगभग तीन सेर आटा चादर में बाँध लिया। पर अंधेरे में उसका पैर तराजू पर पड़ गया, जिससे तेज आवाज हुई। दुकानदार जाग गया और सेऊ को पकड़ लिया।

सेऊ ने तुरंत आटे से भरी चादर छेद से बाहर फेंक दी और पिता से कहा –
“पिता जी, मुझे पकड़ लिया गया है। आप आटा ले जाइए और सतगुरु को भोजन कराइए। मेरी चिंता मत कीजिए।”


बेटे का बलिदान

आटा लेकर सम्मन घर पहुँचा। पत्नी नेकी ने पूछा –
“बेटा कहाँ है?”

सम्मन ने बताया कि सेठ ने उसे बाँध दिया है।

यह सुनकर नेकी ने कहा –
“तुम तुरंत जाओ और बेटे का सिर काट लाओ। अगर नगर वाले पहचान कर उसे घर ले आएंगे तो सतगुरु को कलंक लगेगा कि उनके भक्त चोरी करवाते हैं। अपने बेटे का बलिदान ही सही होगा।”

सम्मन काँप उठा पर फिर छुरा लेकर दुकान पर पहुँचा। उसने बेटे से कहा –
“पुत्रा, गर्दन बाहर निकालो। तुमसे जरूरी बात करनी है।”

सेऊ ने सेठ से रस्सी ढीली करने को कहा। गर्दन बाहर आते ही बोला –
“पिता जी, मेरी गर्दन काट दो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो आप मेरे पिता कहलाने लायक नहीं हो।”

आँखों में आँसू लिए सम्मन ने छुरा चला दिया। बेटे का सिर काट कर घर ले आया।


कबीर साहेब की अद्भुत कृपा

सुबह नेकी ने भोजन तैयार किया और कबीर साहेब व दोनों सेवकों को परोसा।

साहेब ने कहा –
“भोजन छह पात्रों में परोसो और तुम भी साथ बैठो।”

पाँचों बैठ गए। तब साहेब कबीर ने पुकारा –

“आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।। ”

साहेब का इतना कहना था कि कटे हुए धड़ पर सिर पुनः जुड़ गया। सेऊ जीवित होकर पंगत में आ बैठा और भोजन करने लगा।

सम्मन और नेकी की आँखें आश्चर्य से भर गईं। अंदर देखा तो शव और सिर दोनों गायब थे, केवल रक्त के छींटे पड़े थे – यह प्रमाण देने के लिए कि घटना वास्तव में हुई थी।


निष्कर्ष

यह कथा सिद्ध करती है कि कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं। वे अपने भक्तों की परीक्षा भी लेते हैं और संकट में उन्हें ऐसे बचा लेते हैं जो किसी अन्य देवता या शक्ति के बस की बात नहीं।

पवित्र सामवेद मंत्र 822 में भी प्रमाण है कि कबीर परमेश्वर अपने सच्चे साधक की आयु बढ़ा देते हैं और उसे मृत्यु के मुख से बचा लेते हैं।

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