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ठीक है। मैंने आपके दिए हुए पूरे टेक्स्ट को विस्तार से और ब्लॉग पोस्ट की तरह प्रवाहमयी भाषा में री-लिखा है। लंबाई बिल्कुल कम नहीं की गई है।
देखिए कैसे और क्यों डॉक्टर सहजाद खान ने छोड़ा इस्लाम और अपनाया ‘मानवता धर्म’
धर्म परिवर्तन की चर्चाएँ अक्सर समाज में हलचल पैदा करती हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति गहन अध्ययन, शोध और आत्मिक अनुभव के बाद यह निर्णय लेता है, तो उसका महत्व और भी बढ़ जाता है। ऐसी ही एक प्रेरणादायी घटना है डॉ. सहजाद खान की, जिन्होंने मुस्लिम धर्म से हटकर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर ‘मानवता धर्म’ अपनाया।
सहजाद खान की आध्यात्मिक खोज
डॉ. सहजाद खान बताते हैं कि उन्होंने इस्लाम में अल्लाह ताला को समझने के लिए वर्षों तक रिसर्च की। उन्होंने धार्मिक किताबों का गहन अध्ययन किया, विभिन्न विद्वानों से मुलाकात की और अलग-अलग मतों को परखा।
लेकिन जितना आगे बढ़ते गए, उतनी ही उलझनें बढ़ती चली गईं। उन्हें महसूस हुआ कि जिस अल्लाह को पाने के लिए वे प्रयासरत हैं, उसकी वास्तविकता उनके सामने स्पष्ट नहीं हो पा रही है।
मोहभंग से जागृति तक
धीरे-धीरे डॉ. खान का मोहभंग इस्लाम और अन्य रीति-रिवाजों से होने लगा। वे इस नतीजे पर पहुँचे कि जिस धर्म के नाम पर वे वर्षों से भटक रहे थे, उसमें वह सच्चाई नहीं थी जिसकी उन्हें तलाश थी।
इसी खोज ने उन्हें मानवता धर्म की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया। वे मानते हैं कि धर्म का असली उद्देश्य मानवता की सेवा, शांति और परमात्मा की सच्ची भक्ति है, न कि कट्टरता और अंधविश्वास।
संत रामपाल जी महाराज से प्रभावित होकर परिवर्तन
डॉ. सहजाद खान ने बताया कि वे संत रामपाल जी महाराज के विचारों और प्रवचनों से गहराई से प्रभावित हुए।
संत रामपाल जी ने उन्हें यह समझाया कि –
- परमात्मा एक ही है, और वह कबीर साहेब हैं।
- सभी धर्म, पंथ और मतभेद केवल काल के बनाए बंधन हैं।
- असली धर्म ‘मानवता धर्म’ है, जो पूरे विश्व को एक सूत्र में बांधता है।
यही कारण था कि उन्होंने न केवल इस्लाम को छोड़ा, बल्कि पूरे आत्मविश्वास के साथ मानवता धर्म में वापसी की।
वीडियो देखें – उनकी जुबानी
डॉ. सहजाद खान ने अपने अनुभवों और निर्णय के पीछे की पूरी सच्चाई एक वीडियो में स्वयं साझा की है।
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इस वीडियो में वे बताते हैं कि कैसे भटकने के बाद अंततः उन्हें संत रामपाल जी महाराज की शरण में वास्तविक शांति और सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।
निष्कर्ष
डॉ. सहजाद खान का यह निर्णय न केवल उनके जीवन में बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा है। उन्होंने यह साबित किया कि धर्म का असली सार मानवता है और यह तभी संभव है जब हम संत रामपाल जी महाराज के बताए मार्ग पर चलें।