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शेख फरीद (बाबा फरीद) की कथा और कबीर साहिब से साक्षात्कार
भारत की धरती पर जन्मे अनेक संतों और फकीरों ने अपनी भक्ति से समाज को मार्ग दिखाया। उन्हीं में से एक थे शेख फरीद, जिन्हें लोग बाबा फरीद के नाम से भी जानते हैं। उनका जीवन बचपन से ही असाधारण था और अंततः उन्हें सतगुरु कबीर साहिब की शरण प्राप्त हुई, जहाँ से उन्हें पूर्ण मोक्ष का मार्ग मिला।
बचपन की घटना और अल्लाह से खजूर
शेख फरीद बचपन में बहुत शरारती थे। उनकी माता उन्हें प्रतिदिन नमाज़ पढ़ने को कहतीं, लेकिन वे टालमटोल कर देते और कहते – “मुझे अल्लाह से क्या मिलेगा? मैं क्यों करूँ नमाज़?”
एक दिन माता ने उन्हें समझाने के लिए कहा – “अल्लाह तुझे खजूर देगा।” खजूर उनका प्रिय फल था। बालक फरीद ने जिद की कि अगर अल्लाह खजूर देगा तो ही नमाज़ करूँगा।
माता ने चादर बिछाकर उन्हें आँखें बंद कर नमाज़ पढ़ने को कहा और चुपके से खजूर रख दिए। जब उन्होंने आँखें खोलीं तो खजूर देखकर चकित हो गए और खुशी से नमाज़ करने लगे। कुछ समय तक माँ ही खजूर रखती रही, लेकिन एक दिन भूल गईं। आश्चर्य की बात यह हुई कि उस दिन भी चादर के नीचे खजूर पड़े थे। तब उनकी माता समझ गईं कि यह अल्लाह का करिश्मा है। यह संकेत था कि शेख फरीद विशेष आत्मा हैं, जिन्हें परमात्मा की खोज करनी है।
तपस्या और कठिन साधना
बड़े होकर शेख फरीद ने एक सूफी संत को गुरु बनाया। गुरु ने उन्हें कठोर तपस्या करने को कहा ताकि वे अल्लाह का दीदार पा सकें। फरीद ने तपस्या शुरू कर दी।
- कभी बैठकर, कभी खड़े होकर तप करते,
- यहाँ तक कि कुएँ में उल्टा लटककर साधना करने लगे।
वर्षों तक कठिन तप करने से उनका शरीर अस्थि-पिंजर रह गया। 12 वर्षों में उन्होंने केवल लगभग 50 किलो अन्न खाया। उनकी अवस्था ऐसी हो गई कि कौए उन्हें मृत समझकर उनकी आँखें नोचने आ गए। उस समय वे रो पड़े – “मेरी आँखें मत निकालो, शायद मुझे अभी अल्लाह के दर्शन हो जाएं।”
कबीर साहिब का प्रकट होना
शेख फरीद की तड़प देखकर सतगुरु कबीर साहिब स्वयं सतलोक से प्रकट हुए। उन्होंने फरीद से पूछा – “तुम कुएँ में उल्टा लटककर क्या कर रहे हो?”
फरीद ने कहा – “मैं अल्लाह के दीदार के लिए तप कर रहा हूँ।”
कबीर साहिब ने कहा – “मैं ही अल्लाह हूँ।”
फरीद चकित हुए और बोले – “अल्लाह तो निराकार है, आप कैसे हो सकते हैं?”
तब कबीर साहिब ने समझाया –
“यदि अल्लाह निराकार है तो उसके दर्शन के लिए इतनी कठिन साधना क्यों कर रहे हो? सच्चा परमात्मा साकार है और अपने भक्तों को प्रकट होकर दर्शन देता है।”
यह सुनते ही शेख फरीद के हृदय में ज्योति प्रकट हुई। वे कबीर साहिब के चरणों में गिर पड़े और बोले – “मुझे सही मार्ग दिखाइए।”
नाम दीक्षा और मोक्ष की प्राप्ति
कबीर साहिब ने उन्हें समझाया –
“तपस्या से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। तप से केवल अस्थायी सुख, स्वर्ग या राज-पाट मिलता है, फिर आत्मा चौरासी लाख योनियों में घूमती रहती है। मुक्ति केवल सच्चे नाम उपदेश से ही संभव है।”
शेख फरीद ने कबीर साहिब से सतनाम और सारशब्द प्राप्त किया। उन्होंने पूरी श्रद्धा से भक्ति की और अंततः अपना जीवन सफल बनाकर सतलोक चले गए।
शिक्षा
शेख फरीद की कथा हमें यह सिखाती है कि –
- परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग कठोर तपस्या नहीं, बल्कि सत्य नाम की साधना है।
- जब आत्मा तड़प कर परमात्मा को पुकारती है, तब सच्चा भगवान स्वयं प्रकट होकर मार्ग दिखाता है।
- केवल पूर्ण संत ही हमें वास्तविक साधना और मोक्ष का रास्ता बता सकता है।
“कबीर, ज्ञान हीन जो गुरु कहावे, आपन डूबे औरों डुबावे।”
शेख फरीद को जब कबीर साहिब का सतज्ञान मिला, तभी उन्हें वास्तविक अल्लाह प्राप्त हुआ और पूर्ण मुक्ति मिली।