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‘सत्यार्थ प्रकाश’ की पोल खोल: नियोग प्रथा पर गंभीर सवाल
‘सत्यार्थ प्रकाश’ में प्रश्न संख्या 149 में यह लिखा गया है कि अगर एक महिला गर्भवती हो और पुरुष उससे दूर हो, या अगर पुरुष लंबी बीमारी से पीड़ित हो और उसकी महिला साथी की ज़रूरतें पूरी न हो रही हों, तो ऐसी स्थिति में दोनों नियोग के माध्यम से संतान पैदा कर सकते हैं। हालाँकि, स्पष्ट रूप से वेश्यावृत्ति या व्यभिचार को पूरी तरह से निंदनीय और वर्जित बताया गया है।
‘सत्यार्थ प्रकाश’ के प्रश्न संख्या 142 में नियोग से जुड़े कुछ और नियमों का भी ज़िक्र है:
- वर्ण और जाति: नियोग केवल अपने ही वर्ण में या उससे बेहतर वर्ण में होना चाहिए।
- संभोग की सीमा: एक महिला 10 पुरुषों तक और एक पुरुष 10 महिलाओं तक से नियोग कर सकता है। अगर कोई व्यक्ति 10वें गर्भ से ज़्यादा बार ऐसा करता है, तो उसे ‘कामी’ और ‘निंदित’ माना जाता है।
- अविवाहित से नियोग: विवाहित पुरुष किसी कुंवारी कन्या से और विवाहित महिला किसी कुंवारे पुरुष से नियोग नहीं कर सकती है।
ये सभी नियम स्वामी दयानंद द्वारा बताए गए हैं। लेख के अनुसार, इन नियमों को वेद, मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों से प्रमाणित किया गया है। लेखक ने नियोग के पक्ष में कुछ ऐतिहासिक और तर्कसंगत सबूत भी पेश किए हैं।
पुनर्विवाह बनाम नियोग: एक विरोधाभासी तर्क
स्वामी दयानंद ने पुनर्विवाह को दोषपूर्ण माना है, जबकि नियोग को सही और तर्कसंगत ठहराया है। उन्होंने यह तर्क दिया है कि दूसरा विवाह करने से स्त्री का ‘पतिव्रत धर्म’ और पुरुष का ‘स्त्रीव्रत धर्म’ भ्रष्ट हो जाता है, जबकि 10 अलग-अलग पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने से यह धर्म शुद्ध और सुरक्षित रहता है। यह तर्क हास्यास्पद और बेतुका लगता है। यह कैसे संभव है कि पुनर्विवाह से पवित्रता भंग हो जाए, लेकिन नियोग जैसी प्रथा से वह बनी रहे?
विज्ञान और समाज के आईने में नियोग की प्रथा
- पुरुष की कामेच्छा का सवाल: अगर किसी पुरुष की पत्नी जीवित है, लेकिन वह संतान पैदा करने में असमर्थ है, तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि उसकी कामेच्छा खत्म हो गई है। ऐसे में, यदि उसकी पत्नी संतान के लिए किसी और पुरुष से नियोग करती है, तो वह पुरुष अपनी कामेच्छा को कैसे और कहाँ संतुष्ट करेगा?
- बेटियों का जन्म और विज्ञान: नियोग प्रथा में सिर्फ पुत्रोत्पत्ति की बात की गई है। जीव विज्ञान के अनुसार, बच्चे का लिंग निर्धारण पुरुष के गुणसूत्रों से होता है, न कि महिला के। यदि किसी दंपत्ति को बार-बार बेटियां ही हो रही हैं, तो इसके लिए पुरुष ज़िम्मेदार है, न कि महिला। इस प्रथा में बेटियों के जन्म को लेकर कोई स्पष्ट नियम नहीं दिए गए हैं।
- जातिगत भेदभाव: ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में नियोग के नियम केवल द्विज वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) के लिए बताए गए हैं। चौथे वर्ण, शूद्रों को इसमें छोड़ दिया गया है। क्या इसका मतलब है कि शूद्रों के लिए नियोग की अनुमति नहीं है? क्या उनके लिए यह प्रथा पाप या दोष मानी जाती है?
कुल मिलाकर, यह लेख नियोग की प्रथा पर तीखे सवाल उठाता है और इसे विज्ञान, तर्क, और सामाजिक न्याय की कसौटी पर परखता है।