
हम सब एक भगवान की संतान हैं, फिर धर्म के नाम पर हम को किसने बाँट दिया?
आज अगर आप पर परमात्मा की दया हुई और उन्होंने इस पोस्ट को समझने की सद्बुद्धि दी, तो आज से आपका वास्तविक मानव जन्म शुरू होगा। दुनिया के लोग, भौतिक जीवन और इस कलयुगी साइंस ने मानव जाति के विनाश का सामान तैयार कर लिया है। अब इस विनाश को रोकना किसी भी वैज्ञानिक या भगवान के बस की बात नहीं है।
अगर बुद्धिमान हो तो अभी भी समय है, अपने परमपिता को पहचान लो। वह आज दुखी हैं, तो सिर्फ और सिर्फ तुम्हें सुखी देखने के लिए। समझदार वे होते हैं, जो दूसरों की ठोकर से सीख जाते हैं, क्योंकि खुद ठोकर खाकर तो जानवर भी समझ जाता है।
कबीर साहेब कहते हैं:
जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।
साम्प्रदायिक झगड़ों का कारण
- तो फिर आज ये धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक झगड़े क्यों? क्यों हिन्दू को मुसलमान और मुसलमान को हिन्दू दुश्मन समझता है? कौन है जो दोनों धर्मों को यह जहर दे रहा है?
- दाढ़ी रखने वाला मुसलमान, बाल रखने वाला सिक्ख, सफ़ाचट रखने वाला ईसाई, बाल और दाढ़ी दोनों रखने वाला हिन्दू क्यों? क्या आज इंसान को पहचानने की यही एक पहचान रह गई है? इसका जिम्मेदार कौन है?
- जाति-पाति के आधार पर इंसान के छोटेपन और बड़ेपन की पहचान क्यों? आखिर कौन है वह स्वार्थी जिसने समाज को ऊँच-नीच की गलत परिभाषा समझाई?
समाज और दुनिया को खोखला करने वाली और इंसानों के बीच द्वेष पैदा करने वाली इन भयंकर बीमारियों की जड़ हमारे हिंदुओं के अज्ञानी धर्मगुरु (आचार्य, शंकराचार्य, संत, महंत) और मुसलमानों के अज्ञानी मुल्ला और काजी हैं। इन्होंने हमारे धर्मग्रंथों का अध्ययन तो किया, लेकिन उन्हें समझने के लिए जो तत्व ज्ञान चाहिए था, उसके अभाव में वे इन्हें समझ नहीं पाए।
जिसके कारण इन्होंने अपने-अपने धर्म में उल्टा ज्ञान फैला दिया और इतना पाखंड किया कि अब इन धर्मों के श्रद्धालु मान चुके हैं कि हिंदुओं का भगवान और मुसलमानों का अल्लाह अलग-अलग हैं। इन मूर्खों ने भगवान की परिभाषा ही बदल डाली। जब इन्हें अपनी उलटी साधना से भगवान नहीं मिले, तो अंत में उसे निराकार साबित कर दिया। और हमने भी यही मान लिया कि हमारे धर्मगुरु ज्यादा विद्वान हैं, तो वे जो कह रहे हैं, वह सत्य ही होगा। उस समय हमारे पूर्वज अशिक्षित थे, इसलिए हमारे धर्मग्रंथों (वेद और कुरान) में क्या लिखा है, वे समझ नहीं सकते थे।
इस बात का इन पाखंडियों ने भरपूर फायदा उठाया, जिसका खामियाजा आज हम जाति-पाति और धर्म के नाम पर हो रहे झूठे झगड़ों के रूप में भुगत रहे हैं। मान लिया हमारे पूर्वज अनपढ़ थे, लेकिन आज हम पढ़े-लिखे होकर भी यह गलती क्यों कर रहे हैं?
- हम शिक्षित होकर भी सड़क किनारे गंदे नाले के पास फटी बोरी बिछाकर बैठे, दिन भर धूल मिट्टी खाकर खांसते हुए उस अनपढ़ ज्योतिषी के पास जाकर अपना भविष्य बताने की प्रार्थना करते हैं, जिसका अपना भविष्य गोते खा रहा है।
- हम शिक्षित होकर भी उन अभिनेताओं द्वारा बेचे गए साबुन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे वे अपने कुत्ते को भी नहीं नहलाते, क्योंकि वे टीवी पर हमें गुमराह कर रहे हैं।
- हम शिक्षित होकर भी गारंटी के साथ लंबाई बढ़ाने वाली महंगी-महंगी दवाइयाँ और कैप्सूल मँगवाते हैं, जबकि आमिर खान, सलमान खान और सचिन जैसे सितारे, जो इनके बारे में जानते हैं, आज भी पाँच-पाँच फुट के ही दिखते हैं।
आज हमारे इसी वहम का फायदा कि ‘मैं शिक्षित हूँ’, ये नकली गुरु उठा रहे हैं।
कबीर साहेब कहते हैं:
कोई कहै मेरा राम बड़ा है कोई कहे खुदाई रे।
कोई कहे ईसा मसीह बड़ा है ये बाटा रहे लड़ाई रे।।
इन अज्ञानी धर्मगुरुओं ने आज हमें ही नहीं, बल्कि हमारे भगवान को भी बाँट दिया है कि हिंदुओं का राम है, मुसलमानों का अल्लाह है और ईसाइयों का गॉड है। हिंदुओं को वेद दे दिए, मुसलमानों को कुरान शरीफ, ईसाइयों को बाइबिल और सिखों को गुरु ग्रंथ साहेब।
ऐसा लगता है कि अंग्रेजों ने भी भारत-पाकिस्तान को अलग-अलग करके ‘फूट डालो और राज करो’ की गंदी राजनीति हमारे इन आदरणीय धर्मगुरुओं से ही सीखी होगी, जिसका परिणाम विनाश के अलावा और कुछ नहीं हो सकता।
हम सब एक ही पिता की संतान हैं
लेकिन आज वास्तव में यदि हम शिक्षित हैं, तो हमें समझना होगा कि हिन्दू और मुसलमान दो नहीं हैं, हम एक ही पिता की संतान हैं, हम भाई-भाई हैं। हमारा भगवान भी एक ही है, जिसके नाम अनेक हैं—चाहे उसे राम कहो, अल्लाह कहो, गॉड कहो या प्रभु कहो, वह वास्तव में एक ही है।
जैसे एक व्यक्ति के चार छोटे पुत्र हैं। जब वह शाम को घर लौटता है, तो बाहर खेलते हुए बच्चे जब उसे दूर से देखते हैं, तो एक कहता है: “देखो मेरा पापा आ रहा है।” दूसरा कहता है: “नहीं, यह तेरा पापा नहीं, यह तो मेरा अब्बू है।” तीसरा कहता है: “नहीं, यह तो मेरा डैडी है।” और चौथा कहता है: “नहीं, यह तो मेरा फादर है।”
अब उन नादान बच्चों को कैसे समझाया जाए कि वह तो उन सबका ही पिता है और उन्होंने ही अपनी मूर्खता से उसे बाँट लिया है। चलिए, वे बच्चे तो नादान हैं, अभी इतने समझदार नहीं हुए, लेकिन हम तो आज अपने आप को बहुत बड़ा शिक्षित और समझदार समझते हैं, फिर इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं? इसका मुख्य कारण आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव है, जिसकी डिग्री हमारे अज्ञानी धर्मगुरु देने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि उनके पास स्वयं वह डिग्री नहीं है।
देश के शिक्षित नागरिको और दोनों धर्मों के भाई-बहनों, विचार करो। कलियुग से पहले न कोई हिंदू था, न मुसलमान, न सिक्ख, न ईसाई। अगर ये आज भगवान ने बनाए होते, तो पहले भी होते।
- तो फिर क्यों पहले हिंदू धर्म, 2500 साल पहले ईसाई धर्म, 1600 साल पहले मुस्लिम धर्म, 550 साल पहले जैन धर्म और 300 साल पहले सिक्ख धर्म बना?
यह काल के प्रभाव से इन अज्ञानी धर्मगुरुओं द्वारा समाज को दी हुई एक ऐसी चक्की है, जिसमें हम शिक्षितों को रोज़ पीसा जाता है, फिर भी हमारी बुद्धि ठिकाने नहीं आ रही है।
- एक हिंदू अगर सिर पर जालीदार टोपी और दाढ़ी के ऊपर हल्की सी मूँछें कटवाकर बाहर घूमने जाए, तो लोग कहेंगे, “वालेकुम सलाम भाई जान।”
- एक मुसलमान यदि दाढ़ी-मूँछ साफ़ करवाकर पैंट-शर्ट पहनकर बाहर निकले, तो लोग कहेंगे, “राम-राम भाई साहब।”
बस इतनी ही पहचान है हिन्दू और मुसलमान की। अरे भाई, कब तक धर्म के नाम पर ये बच्चों जैसे नाटक करके हम यूँ ही लड़ते रहेंगे और इन पाखंडी धर्मगुरुओं के हाथ की कठपुतली बनकर नाचते रहेंगे। इस आध्यात्मिक तत्व ज्ञान का एकमात्र सतगुरु आज पूरे विश्व में केवल एक ही है।
उनका नारा है:
जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिख-ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।
इन्होंने आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के सभी धर्मगुरुओं और शंकराचार्यों को टीवी चैनलों और समाचार पत्रों के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के लिए आमंत्रित कर रखा है। लेकिन उनके सामने आना तो दूर, उनके आमंत्रण का जवाब तक देने की आज तक किसी ने हिम्मत नहीं की।
जब कोई भी धर्मगुरु उनके सामने ज्ञान चर्चा के लिए नहीं आया, तो उन्होंने उन सभी के ज्ञान की DVD बनाकर समाज को दे रखी है, जिसे देखने के बाद उनके झूठे ज्ञान की पोल तुरंत खुल जाती है। ये सभी DVD आप नीचे दी हुई वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं।
सत्संग और अन्य जानकारियों के लिए www.jagatgururampalji.org पर जाएँ।
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इस महापुरुष को समझने के लिए, पहले अपना झूठा अभिमान, मान-बड़ाई और अपने आप को कुछ समय के लिए इन धर्मों और जातियों के बंधनों से बाहर निकाल कर उनका ज्ञान समझना होगा, उनके सत्संग सुनने होंगे। और अगर समझ में आ गई तो आप स्वयं कहोगे कि वास्तविक अर्थों में मेरा जीवन तो इनसे जिस दिन नाम-दीक्षा लूँगा, उसी दिन से शुरू होगा।
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॥ सत् साहेब ॥
